ब्रिक्स बैंकों के विकास का रास्ता

2012 के मार्च माह में ब्रिक्स देशों के दिल्ली शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स देशों के नव विकास बैंक की स्थापना करने का आह्वान पेश किया गया, जिसका मकसद “मौजूदा बहुपक्षीय व क्षेत्रीय वित्तीय संस्थाओं के वैश्विक समृद्धि व विकास को आगे बढ़ाने की आपूर्ति के रूप में ब्रिक्स देशों और अन्य विकासमान देशों की बुनियादी संरचनाओं और अनवरत विकास परियोजनाओं के लिए पूंजी एकत्र करना है।” दो सालों की वार्ता के बाद नव विकास बैंक की स्थापना का समझौता 2014 के जुलाई माह में औपचारिक रूप से हस्ताक्षरित हुआ। एक साल बाद यह बैंक चीन के शांगहाई शहर में औपचारिक रूप से स्थापित हुआ।
नव विकास बैंक की स्थापना के दो कारण है- पहला, विश्व में बुनियादी संरचनाओं के निर्माण के लिए भारी वित्तपोषण का अभाव है। आर्थिक सहयोग व विकास संगठन के अनुमान के मुताबिक 2030 से पहले वैश्विक बुनियादी संरचनाओं का वित्तपोषण 500 खरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा, जो पिछले 20 सालों की वास्तविक आय-व्यय की तुलना में 60 प्रतिशत ऊंचा होगा। वार्षिक पूंजी अभाव कम से कम 5 खरब अमेरिकी डॉलर होगी। दूसरा, परंपरागत बहुपक्षीय विकास बैंक का विस्तार राजनीतिक नियंत्रण का सामना करता है। वित्तीय संकट के बाद जी-20 द्वारा आगे बढ़ायी गयी पूंजी के बढ़ने और मतदान अधिकार के सुधार में सीमित रहा, जिससे बुनियादी संरचनाओं के निर्माण के लिए वित्तपोषण की क्षमता गंभीर रूप से अपर्याप्त है। पिछले आधी सदी में विश्व बैंक आदि संस्थाओं के मिशन में परिवर्तन आया है, संस्थाओं का निरंतर विस्तार किया जाता है, जबकि उपलब्धियों में निरंतर गिरावट बनी रहती है।
नव विकास बैंक इसलिए नया है, कारण यह है कि इसने ब्रिक्स नवोदित बाजार देशों के लिए नये इक्विटी प्रोत्साहन की नीति बनायी है, ताकि वह विकासमान देशों की बुनियादी संरचनाओं के लिए नयी पूंजी, अनुभव व ज्ञान देने को तैयार है। नव विकास बैंक खुद की सामरिक अभिलाषा के मुताबिक इसका “नया संबंध, नयी ईवेंट व वित्तीय माध्यम और नया रास्ता है।” परम्परागत बहुपक्षीय विकास बैंक से भिन्न है, नव विकास बैंक समान निर्णय की प्रणाली अपनाता है, जबकि एक मत से वीटो देने को अनुमति नहीं दी गयी है। यह ब्रिक्स पाँच देशों के सहयोग के लिए हितकारी है। ब्रिक्स देशों के भीतर भारी पूंजी का भंडार है। विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि 2014 में चीन में कुल बचत दर 49 प्रतिशत है, जो विश्व की प्रमुख आर्थिक इकाइयों के प्रथम स्थान पर रहा था और विश्व के 24 प्रतिशत के औसत स्तर से भी ऊँचा रहा था। भारत में यह संख्या 33 प्रतिशत थी। ब्रिक्स देशों की विदेशी मुद्रा का भंडार भी विश्व के अग्रिम में रहा है। सिर्फ़ चीन का विदेशी मुद्रा भंडार विश्व के कुल विदेशी मुद्रा भंडार के एक तिहाई से ज्यादा भी होता है। आधुनिक वित्तीय माध्यमों और प्रशासन ढांचे के सहारे इन पूंजी के “इनर लूप” को साकार किया गया, और कारगर रूप से विकासमान देशों की बुनियादी संरचनाओं का निर्माण करके उत्पादन शक्ति को उन्नत किया गया है। जबकि पश्चिमी वित्तीय सिस्टम में प्रवेश कर अंतर्राष्ट्रीय विकास के असंतुलन की स्थिति को तीव्र नहीं किया जाता है। यह निकोलस स्टर्न और जोसेफ़ स्टिगलिज़ आदि मशहूर अर्थशास्त्रियों द्वारा नव विकास बैंक की स्थापना करने का मकसद ही है।
प्रारंभिक उपलब्धि मिली है
नव विकास बैंक के खोलने के पिछले दो सालों में विकास की बेहतर प्रगति मिली है। बाजार में इसके स्थान की प्रारंभिक स्थापना की जा चुकी है।
पहला, बैंक का ढांचा व सामरिक कार्यक्रम तैयार हो चुका है। नव विकास बैंक के पहला पंचवर्षीय कार्यक्रम(2017-2021年)परिषद द्वारा पारीत किया गया और इस साल के जुलाई माह की शुरूआत में औपचारिक रूप से जारी किया गया था। संगठन के प्रशासन, भ्रष्टाचार विरोधी, कर्ज लेने, खरीदारी, वातावरण एवं सामाजिक मापदंड आदि अनेक क्षेत्रों के बुनियादी नीतिगत ढांचे की तैयारी हो चुकी है। हाल में नव विकास बैंक में करीब 100 कर्मचारी हैं। 2017 में यह संख्या 125 से 130 तक पहुंचने की संभावना है। योजनानुसार 2021 में नव विकास बैंक में कर्मचारियों की संख्या 400 तक जा पहुंचेगी। बैंक युवा कर्मचारियों को बढ़ावा देने पर बड़ा ध्यान देता है, ताकि नवाचार विकास को प्रोत्साहित किया जा सके।
दूसरा, ब्रिक्स पाँच देशों की मुद्राओं की वित्तपोषण प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। नव विकास बैंक की पूंजी सर्वप्रथम शेयरधारक देशों से आयी है। समझौते के मुताबिक इस बैंक में प्रारंभिक सदस्यता पूंजी 50 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो ब्रिक्स पाँच देशों द्वारा औसत वितरण किया जाता है। शुरू में पाँच देशों ने कुल 10 अरब अमेरिकी डॉलर की पूंजी दी, बाकी पैसे भावी पाँच सालों में दिए जाऐंगे। चूंकि सिर्फ़ शेयरधारक देशों की पूंजी से नव विकास बैंक की मांग की आपूर्ति नहीं की जा सकती है। साथ ही इस बैंक को छोटे समय में ऊंचे अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेंटिंग नहीं मिल पाता है, इसलिए स्थानीय वित्तपोषण नव विकास बैंक की प्राथमिकता रणनीति बन गया है। 2016 में नव विकास बैंक ने सफलतापूर्वक 3 अरब चीनी युआन के ग्रीन बांड जारी किए, जिससे वह चीन में चीनी मुद्रा के ग्रीन बांड जारी करने वाला पहला अंतर्राष्ट्रीय संगठन बन गया। इसके अलावा इस बैंक ने 30 करोड़ से 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर के भारतीय रूपये के बांड(“मसाला बांड”)भी जारी करने की योजना बनायी है।
तीसरा, अनवरत विकास और बुनियादी संरचनाओं के निर्माण के बाजार के स्थान को निश्चित किया गया। 2016 में नव विकास बैंक के निदेशक मंडल ने कुल 7 ईवेंटों की पुष्टि की, जिनकी कुल रकम 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर थी। ब्रिक्स पाँच देशों में चीन व भारत के दो-दो ईवेंट्स हैं। इन 7 ईवेंटों में भारत के मध्य प्रदेश की एक सड़क ईवेंट को छोड़कर बाकी सब ईवेंट्स पुनरुत्पादनीय ऊर्जा की ईवेंट्स हैं। आगामी दो-तीन सालों में नव विकास बैंक ने हर साल ऋण के पैमाने को बढ़ाने की योजना बनायी है। सामाजिक व आर्थिक लाभांश के मद्देनज़र दो तिहाई पूंजी को अनवरत बुनियादी संरचनाओं, यानी वातावरण व समाज के लिए सक्रिय ढांचागत लाभांश लाने वाली ईवेंटों में दिया जाएगा। अन्य एक तिहाई पूंजी को “परम्परागत बुनियादी संरचनाओं” में इस्तेमाल किया जाएगा और बाहरी जोखिम से बचाने या कम करने की हरसंभव कोशिश की जाएगी।
चौथा, व्यावसायीकरण, सुव्यवस्थित और कुशल संचालन पर ध्यान दिया जाता है। नव विकास बैंक का संचालन वाणिज्य बैंक से काफी नज़दीक है। वह सॉफ्ट लोन नहीं देता है, लेकिन वित्तपोषण के लचीले तरीके हैं, यानी ऋण देने, शेयर होल्डर के अधिकार, गारंटी और संयुक्त वित्तपोषण आदि अनेक तरीके हो सकते हैं। भावी उधारकर्ता सार्वभौम देशों तक सीमित नहीं हैं। नव विकास बैंक में स्थायी निदेशक मंडल नहीं है और सैद्धांतिक रूप से उधार लेने वाले देश की खुद की नीति और सिस्टम क्षमता से ऋण का प्रबंध कर सकते हैं, जो बड़े हद तक प्रशासन के खर्च को कम किया जा सकता है। हरेक ईवेंट के बारे में नव विकास बैंक सर्वप्रथम उधार लेने वाले देशों का माहौल, समाज, क्रेडिट व खरीदारी सिस्टम की गुणवत्ता को सुनिश्चित करेगा। जब वह देश इस बैंक की मांग को पूरा कर पाता है, तो उस देश खुद के कानून, नियम व निगरानी प्रक्रिया का इस्तेमाल करने की कोशिश करता है। सिर्फ़ उस देश की सिस्टम बैंक की मांग को नहीं पूरा कर पाती, तब नव विकास बैंक ठोस ईवेंटों की स्थिति के मुताबिक अतिरिक्त मापदंड अपनाएंगे विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक आदि संस्थाएं भी देश के सिस्टम के इस्तेमाल पर जोर देती हैं। लेकिन उनके सदस्य देशों का विकास स्तर और नीचा रहा है, इसलिए मुश्किल रूप से इसका कारगर कार्यान्वयन किया जा सकता है।
स्थानीयकरण विकास को प्रोत्साहन
ब्रिक्स देशों का नव विकास बैंक और एशियाई आधारभूत संस्थापन निवेश बैंक (एआईआईबी) अकसर लोगों की चर्चा का विषय है। दोनों बैंक मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सिस्टम की कमियों को दूर करने की कोशिश करते हैं, नवोदित देशों के बचत धनों का कारगर प्रयोग करते हैं, विकासमान देशों को आधारभूत संस्थापनों के निर्माण का समर्थन करते हैं और लचीले व उच्च गुणवत्ता वाले प्रशासन तरीकों पर ध्यान देते हैं। लेकिन दोनों बैंकों के खुलने के बाद वे धीरे-धीरे विभिन्न विकास के रास्ते पर चलने लगे हैं।
ब्रिक्स देशों द्वारा दक्षिण-दक्षिण सहयोग को आगे बढ़ाने के प्लेटफार्म होने के नाते नव विकास बैंक स्थानीयकरण विकास पर ज्यादा ध्यान देता है, जबकि एआईआईबी ज्यादातर चीन के नेतृत्व और दक्षिण-उत्तर सहयोग के मकसद को प्रतिबिंबित करता है। उसका अंतर्राष्ट्रीयकरण की विशेषता और उल्लेखनीय है। नए विकास बैंकों के विकास, वित्तपोषण के अलावा, पहले स्थानीयकरण का उल्लेख किया गया है, लेकिन यह निम्नलिखित क्षेत्रों में भी दिखाई देता है :
पहला, स्टाफ़ भर्ती और खरीदारी नीतियों का स्थानीयकरण। नव विकास बैंक के स्टाफ़ सब ब्रिक्स पाँच देशों से आए हैं, जबकि एआईआईबी विश्व में स्टाफ़ भर्ती करता है। हाल में एआईआईबी के 5 उपगर्वनरों में 3 व्यक्ति विकसित देशों के नागरिक हैं, जो अलग-अलग तौर पर ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी से आए हैं। खरीदारी की नीतियों में नव विकास बैंक सैद्धांतिक रूप से सिर्फ़ सदस्य देशों से खरीदता है, जबकि एआईआईबी की खरीदारी नीति विश्व के लिए खुली है। इसलिए हालांकि अमेरिका व जापान एआईआईबी के सदस्य देश नहीं हैं, फिर भी उनके नागरिक व कारोबार समान रूप से एआईआईबी के मौके का उपभोग कर सकते हैं।
दूसरा, साझेदारी संबंध और मापदंड का स्थानीयकरण। विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक आदि 9 बहुपक्षीय विकास बैंकों के हितकारी अनुभव से सीखने के लिए नव विकास बैंक उनके साथ मेमोरेंडम पर हस्ताक्षर कर चुका है। लेकिन गर्वनर कामथ ने कहा कि हालांकि नव विकास बैंक संयुक्त वित्तपोषण ढूंढने की कोशिश करता है, फिर भी इस भाग के व्यवसाय का बहुत बड़ा अनुपात नहीं है। चूंकि नव विकास बैंक सर्वप्रथम अपना ईवेंट करेगा, ताकि अपनी क्षमता का विकास कर सके। खुद की क्षमता को परिपक्व करने के बाद नव विकास बैंक अन्य बहुपक्षीय विकास बैंक के संसाधनों को इकट्ठा करने की कोशिश करेगा। अभी तक नव विकास बैंक की पहले 7 ईवेंट्स बिलकुल एकता वित्तपोषण की ईवेंट्स हैं, जो मुख्यतः सदस्य देशों की सरकारों के समर्थन पर निर्भर है। नव विकास बैंक ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह सदस्य देशों के विकास बैंकों को अपना “सामरिक साझेदारी” मानता है, ताकि उनके “लचीलेपन संचार फार्मूले” से सीख सके। इसके विपरीत 2017 के जून माह के अंत तक एआईआईबी द्वारा पुष्टि की गयी 16 ईवेंटों में 12 ईवेंट्स विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और यूरोपीय पुनरुत्थान व विकास बैंक आदि के साथ संयुक्त वित्तपोषण की ईवेंट्स हैं।
चुनौतियों में विकास
नव विकास बैंक एक नई संस्था, संगठन, प्रशासन और नीति है जो कि चलने, परीक्षण और परिष्कृत रहती है, और इसकी बाज़ार स्थिति को सुरक्षित करने में पांच से दस साल लगेंगे। इस दौरान नव विकास बैंक को निम्नलिखित मुख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
पहला, अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग और वित्तपोषण लागत। एशियन इनवेस्टमेंट बैंक ने डेढ़ साल पहले मूडी की रेटिंग एजेंसियों को 3 ए के सबसे ज्यादा क्रेडिट रेटिंग देने की घोषणा की। यह उसकी पूंजी की पर्याप्त दर और विकसित देशों के व्यापक समर्थन पाने से संबंधित है। वर्तमान में, नए विकास बैंक को चीन रेटिंग एजेंसियों का उच्च दर्जा मिला है, लेकिन उच्चतम अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग प्राप्त करना अभी भी मुश्किल है। ब्रिक्स पांच देशों की पूंजी बाज़ार परिपूर्ण नहीं है, स्थानीय वित्तपोषण का खर्चा अपेक्षाकृत ऊंचा रहा है। इधर के सालों में ब्रिक्स देशों की आर्थिक व राजनीतिक परिस्थिति में डांवाडोल की स्थिति बनी हुई है, मुद्रा मूल्य में भी तीव्र परिवर्तन आया है। ये सब नव विकास बैंक के वित्तपोषण में भारी चुनौती हैं।
दूसरा, देश की प्रशासन प्रणाली की खामियां जोखिम पैदा कर सकती हैं। नव विकास बैंक मुख्यतः उधार देश की राष्ट्रीय सिस्टम पर निर्भर है। यह कार्यवाई सचमुच परियोजनाओं की गुणवत्ता को उन्नत कर सकती है, लेकिन चूंकि ब्रिक्स पांच देशों की भिन्न-भिन्न स्थितियां हैं और सब विकास के ढांचागत चरण में रहे हैं, इसलिए उनकी बाज़ार की निगरानी नियमों को परिपक्व होने की आवश्यक्ता है। नव विकास बैंक ने वातावरण और समाज के मापदंड के कार्यान्वयन के कर्तव्य को उधार देश को सौंपा है। हालांकि उसकी खुद बाहरी निगरानी भी की जाती है, फिर भी सूचना के असंतुलन और निगरानी की कमी की स्थिति भी नज़र आ सकती है, जिससे जोखिम का फैलाव हो सकेगा। यदि नव विकास बैंक को सदस्य का विस्तार करते समय कमजोर प्रशासन प्रणाली वाले देश मिलते हैं, तो संबंधित समस्याएं और उल्लेखनीय होंगी।
तीसरा, ब्रिक्स पांच देशों के सहयोग को मज़बूत किया जाना चाहिए। यूरोपीय एकीकरण प्रक्रिया को आगे बढ़ाने से यूरोपीय पूंजी निवेश बैंक के विकास के लिए दृढ़ राजनीतिक आधार प्रदान किया गया है। जबकि यूरोपीय पूंजी निवेश बैंक ने नये व पुराने यूरोप के बीच आधारभूत संरचनाओं के आपसी संबंध व संपर्क का समर्थन किया है, जिसने यूरोपीय एकीकरण को आगे बढ़ाने में मदद दी है। यदि ब्रिक्स पांच देशों के बीच मज़बूत राजनीतिक शक्ति पैदा होती है, तो प्रबल रूप से नव विकास बैंक के खुद के संसाधन की खोज करने को आगे बढ़ाकर श्रेष्ठताओं का विकास किया जा सकेगा। लेकिन आजकल ब्रिक्स पांच देशों के बीच प्रतिस्पर्द्धा की स्थिति तीव्र होती रही है। लाभांश का बंटवारा भी प्रमुख समस्या बन चुकी है। पांच देशों के संसाधनों का अनुकूलन कॉन्फ़िगरेशन मुश्किल रूप से साकार नहीं किया जा सकता है, जिससे नव विकास बैंक के प्रचलन के खर्चे को उन्नत किया गया है।
एआईआईबी के सदस्यों के विस्तार की प्रवृत्ति से प्रेरित होकर नव विकास बैंक सदस्यों के विस्तार में कोशिश कर रहा है, ताकि उपरोक्त सीमित तत्वों को दूर कर सके और इस बैंक के और तेज़ी से विकास को आगे बढ़ावा दे सके। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के नवोदित व विकासमान देशों पर फोकस करने से भिन्न है, नव विकास बैंक के सदस्यों के विस्तार का मापदंड और यथार्थ व लचीला होता है।
शुरुआती “एक नए विकास बैंक की स्थापना के लिए समझौते” के पक्ष में बैंकों के विकास के साथ, “गैर-उधार लेने वाले देशों” को न मानने से इनकार किया जाएगा, जो विकसित देशों का परिग्रहण है। इस बैंक के पांच सालों की रणनीति से जाहिर है कि बैंक के सदस्यों का विस्तार करते समय विकसित देशों, मध्यम व कम आय वाले देशों के उचित अनुपात को बरकरार रखने की ज़रूरत है। इससे विकसित देशों की भागीदारी के लिए खुलेपन की नीति देखी जाती है। साथ ही, हालांकि, यह विस्तार नए विकास बैंकों को और अधिक अंतर्राष्ट्रीय बना सकता है।
लेखक शांगहाई अंतर्राष्ट्रीय मामलों के अनुसंधान संस्थान के उप अनुसंधानकर्ता हैं।