एक सशक्त अर्थव्यवस्था

वह समय अब बहुत दूर नहीं जब चीन और भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करेंगे।
by प्रसाद खाके
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25 मई, 2017: पहली उरुमछी-लिआनयुनगांग-नई दिल्ली, रोड-रेल-समुद्र मल्टी मोडल एक्सप्रेस, पूर्वी चीन के च्यांगसू प्रांत के लिआनयुंगांग में पहुँच चुकी है। यह एक्सप्रेस पॉलीविनाइल क्लोराइड के प्रॉडक्ट लेकर आई है। उत्तर पश्चिम चीन के शिनच्यांग उइगुर स्वायत्त प्रदेश की राजधानी उरुमछी से शुरू होकर, माल को पहले लिआनयुनगांग पोर्ट ले जाया जाता है, फिर उसे समुद्र के रास्ते भारत के न्हावा पोर्ट पर लाया जाता है, जहाँ से वह रोड के रास्ते आखिरकार नई दिल्ली पहुँचता है। (चाइना न्यूज़ सर्विस)

भारत और चीन, दोनों के पास विशाल उपभोक्ता बाज़ार और जनसंख्या है, जो अपनी जीवन शैली में बदलाव करके अपने जीवन स्तर को बेहतर करना चाहते हैं।

चीन को राष्ट्रीय आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए 14वीं पंचवर्षीय योजना (2021-2025) और साल 2035 के लिए दीर्घकालिक लक्ष्य निर्धारित करने के लिए प्रस्ताव जारी करते हुए देखना, अपने-आप में बहुत आकर्षक दृश्य था। यह प्रस्ताव चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 19वीं केंद्रीय समिति के पाँचवें पूर्णाधिवेशन की समाप्ति पर जारी किया गया। कोविड-19 महामारी के खतरनाक और लंबे समय तक रहने वाले परिणामों के बीच जारी किए जाने के कारण यह योजना बेहद अहम हो जाती है।

14वीं पंचवर्षीय योजना में यह लक्ष्य रखा गया है कि चीन आर्थिक विकास के क्षेत्र में नई उपलब्धियाँ हासिल करेगा। मुक्त अर्थव्यवस्था और सुधारों की दिशा में नए कदम बढ़ाकर, चीन अपनी समाजवादी-बाज़ार अर्थव्यवस्था को और मज़बूत बनाएगा और उच्च-स्तर के बाजार सिस्टम के निर्माण का काम जारी रखेगा।

यहाँ गौर किया जाना चाहिए कि इस समय सीपीसी के दो शताब्दी लक्ष्य हैं: 2021 में सीपीसी की स्थापना के सौ साल पूरे होने पर, एक ऐसे समाज के रूप में खुद को विकसित कर लेना जो सभी मामलों में कम से कम मध्यम रूप से समृद्ध हो; और 2049 में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना की स्थापना के सौ साल पूरे होने पर, एक ऐसे आधुनिक समाजवादी देश के रूप में खुद को विकसित कर लेना, जो समृद्ध, सक्षम, लोकतांत्रिक, सांस्कृतिक रूप से उत्कृष्ट, और एक राष्ट्र के रूप सुसंगत हो।

प्रस्ताव में 60 प्रमुख बिंदुओं को सामने रखा गया है। हर बिंदु एक खास क्षेत्र और विषय से जुड़ा हुआ है, जिनमें नागरिकों के जीवन स्तर को बेहतर करने से लेकर ग्रामीण पुनरोद्धार को प्राथमिकता देने, और बेल्ट एंड रोड पहल की गुणवत्ता को बेहतर करने जैसे तमाम विषय शामिल हैं।

चीन ने पिछले कुछ दशकों में बहुत तेज़ी से विकास किया है। दुनिया का विनिर्माण पावर हाउस बनना, देश की एक बड़ी उपलब्धि है। सावधानी से चुने गए चीन के महानगरों को एक लंबे समय के दौरान इस तरह विकसित किया गया है कि अब उन्होंने अलग-अलग उत्पादों के विनिर्माण में भौगोलिक विशेषज्ञता हासिल कर ली है। वैश्विक स्तर के विनिर्माण और आपूर्ति शृंखला की पहली पसंद बनकर, इन शहरों नें चीन की अर्थव्यवस्था को खूब मज़बूत किया है। कारखानों में किए गए बदलावों की वजह से, चीनी आपूर्तिकर्ताओं के लिए वैश्विक बाज़ार की ज़रूरतों और किसी भी स्तर की माँग को पूरा करना आसान हो गया है।

प्रस्तावों में शामिल एक प्रमुख बिंदु है घरेलू परिसंचरण को आसान बनाना और एक दोहरी परिसंचरण रणनीति को लागू करना, जिसमें विदेशी और घरेलू, दोनों बाज़ार शामिल होंगे। इस बिंदु से हमें चीन की उस रणनीति की झलक मिलती है जिसके तहत वह वैश्विक ज़रूरतों को पूरा करते हुए घरेलू बाज़ार को मज़बूत करना चाहता है। चीन द्वारा उठाए जाने वाले कदमों को बाहर से देखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए यह लाज़िमी है कि वह यह सोचे कि क्या ये कदम उनके देश में भी लागू किए जा सकते हैं। आइए इस पर विचार करते हैं और देखते हैं कि भारत ने अब तक क्या-क्या किया है।  

भारत और चीन की हमेशा एक-दूसरे से तुलना की जाती रही है। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह यह है कि दोनों देशों ने अपनी शुरूआत 1940 के दशक में विकासशील देशों के रूप की थी। हालाँकि, चीन भू-भाग के मामले में भारत से बहुत बड़ा है, दोनों की जनसंख्या और उसमें कामकाजी लोगों का अनुपात लगभग एक जैसा है।

आज़ादी के बाद, भारत समाजवादी आर्थिक विचारधारा के साथ आगे बढ़ा, 1965-1968 के बीच उसने अकाल जैसी स्थिति का सामना किया और 1990-1991 के दौर में विदेशी मुद्रा संकट का सामना किया। आखिरकार, 1991 में भारत ने विदेशी कंपनियों, निवेशकों, और सेवा प्रदाताओं के लिए अपनी अर्थव्यवस्था के दरवाज़े खोल दिए, और इस तरह समाजवादी दौर को समाप्त करते हुए, भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था की राह ली। आज़ादी के बाद के साल बहुत शांतिपूर्ण नहीं रहे, चूँकि भारत ने युद्ध, आंतरिक उथल-पुथल, राजनीतिक अस्थिरता, क्षेत्रीय विवाद, और प्राकृतिक आपदाएँ जैसे संकटों का भी सामना किया।

इस समय, भारत के पास दुनिया की सबसे नौजवान आबादी और शिक्षित युवाओं के सबसे बड़े टैलेंट पूल मौज़ूद हैं। भारत ने एक तरफ़ जहाँ करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला, तो वहीं दूसरी तरफ़ बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा के अधिकार को सुरक्षित किया। देश अपनी आबादी की खाद्य ज़रूरतों को पूरा करने के मामले में आत्मनिर्भर बना, और कुछ खाद्यानों के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया। उदारवाद के युग के बाद हुए तेज़ विस्तार ने भारत के मध्य वर्ग को ज़्यादा खर्च करने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि अब उसके पास खरीदने के लिए पहले से ज़्यादा विकल्प और खर्च करने के लिए पहले से ज़्यादा पैसे थे। दूसरी ओर, सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक ऐसी क्रांती आई जिसने देश के सेवा क्षेत्र को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। आउटसोर्सिंग ने महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा प्रदान करते हुए, भारत को दुनिया का बैक-ऑफ़िस बना दिया। अभी हाल के दिनों में, भारत में वैश्विक कंपनियों और स्टार्टअप को उभरते हुए देखा जा रहा है, जो भारत से संचालित होकर, वैश्विक बाज़ारों में माल बेच रहे हैं। इन बदलावों ने इस विश्वास को मज़बूत किया है कि भारत भी विश्व स्तरीय उत्पाद और सेवाएँ बना सकता है और उपलब्ध करा सकता है।  

चीन की तरह ही, भारत के भी अपने महानगर हैं। हालाँकि, भारत के महानगरों को उतने बेहतर तरीके से नियोजित या बसाया नहीं गया है। इन महानगरों में देश के अधिकांश महत्वाकांक्षी लोग रहते हैं, जो देश के अलग-अलग हिस्सों से अपने सपने पूरे करने के लिए आते हैं। जबकि देश की बड़ी आबादी अब भी कृषि पर निर्भर है, स्मार्टफ़ोन और आसानी से मिल जाने वाले सस्ते डेटा की उपलब्धता की वजह से देश भर में तकनीकी को तेजी से अपनाया जा रहा है।

ऐसे में, जब हम भारत और चीन को साथ-साथ रखकर देखते हैं, तो उनकी विकास यात्रा में कुछ समानताएँ और कुछ असमानताएँ नज़र आती हैं। जहाँ चीन के पास कार्यक्रमों और पहलों को कुशल तरीके चलाने और लागू करने की अधिकार शक्ति है, वहीं भारत में ज़्यादा विकेंद्रीकृत और आपसी सहयोग से चलने वाली व्यवस्था है,  जिसमें केंद्रीय और राज्य सरकारें मिलकर काम करती हैं। चीन ने कुशल श्रम शक्ति और समर्पित भौगोलिक विशेषज्ञता वाले अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करके खुद को दुनिया के विनिर्माण पावरहाउस के रूप में विकसित किया, तो भारत विश्व स्तरीय आईटी सेवाओं, आईटी प्रॉडक्ट और बहुत-सी दूसरी चीज़ों की आउटसोर्सिंग करके सेवा क्षेत्र का ग्लोबल पावरहाउस बना, जिसका सबसे बड़ा श्रेय भारत के विशाल टैलेंट पूल को जाता है। 

भारत और चीन, दोनों के पास विशाल उपभोक्ता बाज़ार और जनसंख्या है, जो अपनी जीवन शैली में बदलाव करके अपने जीवन स्तर को बेहतर करना चाहती है। चीन और भारत, दोनों अमेरिका को पीछे छोड़कर, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ बनने की संभावनाओं से भरे हुए हैं।  हालाँकि, चीन आँकड़ों के हिसाब से भारत से बहुत आगे नज़र आता है, मुझे लगता है कि ऐसे बहुत-से क्षेत्र हैं जहाँ दोनों देश एक-दूसरे से बहुत कुछ सीख सकते हैं, खासकर तब, जब भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक रूप से दोनों देश एक-दूसरे के इतने नज़दीक और समान हैं। वह समय अब बहुत दूर नहीं जब चीन और भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करेंगे।

लेखक भारत के पुणे में एक उद्यमी हैं, जिन्होंने चीन के शनजन में चीनी विनिर्माण पेशेवरों के साथ काम किया है। वह हमेशा वैश्वीकरण के रुझान, आपूर्ति श्रृंखला, विनिर्माण और व्यापार को लेकर कुछ कुछ सीखते रहते हैं।