चीन-भारत आर्थिक सहयोग के लिए नए अवसर और प्रयास

चीन और भारत, विकास से जुड़ी एक जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और विकास के लिए दोनों के लक्ष्य भी एक जैसे हैं। सीपीसी की 19 वीं केंद्रीय समिति के पांचवें पूर्णाधिवेशन ने दुनिया के सामने दोनों देशों के बीच, आने वाले दशक में सकारात्मक तालमेल स्थापित करने की एक नीतिगत रूपरेखा रखी है।
by लान जियानशुए
1vcg31n1230234024
20 दिसम्बर, 2020: पेइचिंग के शॉपिंग मॉल के खुले मैदान में मौज-मस्ती करते हुए लोग। कोविड-19 महामारी और वैश्विक आर्थिक मंदी जैसी तमाम मुश्किलों के बावजूद, 2020 में चीन की अर्थव्यवस्था में सकारात्मक विकास दर देखने को मिली। (वीसीजी)

29 अक्टूबर, 2020 को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 19वीं केंद्रीय समिति के पांचवें पूर्णाधिवेशन का आधिकारिक संदेश जारी किया गया। पूर्णाधिवेशन में केंद्रीय समिति के प्रस्तावों, राष्ट्रीय आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए 14वीं पंचवर्षीय योजना (2021-2025) और साल 2035 तक के लिए दीर्घकालिक लक्ष्यों को भी स्वीकार किया गया।

14वीं पंचवर्षीय योजना, अगले पांच सालों और उसके बाद के दिनों लिए चीन के आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों के समावेशी विकास को दिशा देने वाली शीर्ष स्तरीय नीतिगत रूपरेखा का काम करेगी। उम्मीद है कि 13वीं नेशनल पीपल्स कांग्रेस(एनपीसी) के चौथे पूर्णाधिवेशन में इस पर चर्चा होगी और इसे मंजूरी मिल जाएगी। 14वीं पंचवर्षीय योजना और साल 2035 के लक्ष्य, चीन के दीर्घकालिक व्यापक नज़रिए की झलक देते हैं। इनके उद्देश्यों में, घरेलू बाज़ार को मज़बूत करना, वैश्विक आर्थिक उतार-चढ़ावों के असर को झेलने की चीन की क्षमता को बढ़ाना, और भू-राजनीतिक संकटों और अनिश्चितताओं से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को सुरक्षित करना शामिल है। निश्चित तौर पर यह रूपरेखा, आर्थिक, व्यापार, और निवेश के क्षेत्रों में चाइना और भारत के बीच सहयोग के नए अवसर पैदा करेगी और उन्हें गति प्रदान करेगी।

चीन-भारत सहयोग को नई गति प्रदान करना

आने वाले समय में, चीन पांच क्षेत्रों पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा। ये क्षेत्र अनगिनत अवसरों से भरे हुए हैं, और उम्मीद है कि ये चीन-भारत सहयोग को नई गति प्रदान करेंगे।

पहला, निजी मामलों को अच्छी तरह से संभालना। चीन इस समय ऐसे अंतरराष्ट्रीय बदलावों का सामना कर रहा है जो पिछली एक सदी में पहले कभी नहीं देखे गए। ऐसे में, चीन को अपने समाज के अंतर्विरोधों और बदलावों को गहराई से समझने के साथ-साथ जटिल अंतरराष्ट्रीय वातावरण से पैदा हुए नए अंतर्विरोधों और चुनौतियों की भी गहरी समझ विकसित करनी होगी। इससे, राष्ट्र के सामने उपस्थित संभावनाओं और संकटों की समझ पैनी होनी चाहिए, घरेलू बाज़ार में पकड़ मज़बूत होनी चाहिए, रणनीतिक संकल्प बने रहने चाहिए,  और नए अवसरों का चुनाव करते समय तथा नई दिशाओं में कदम बढ़ाते समय, देश के न्यूनतम हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए। कुछ ही समय पहले, भारत की सरकार ने “आत्मनिर्भर भारत” बनाने की घोषणा की। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, “आत्मनिर्भर भारत” के लक्ष्य से, भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था को ज़्यादा सहयोग दे पाएगा। चीन हमेशा से इस बात पर जोर देता रहा है कि “एक अच्छा राजा ही, अच्छे नागरिकों को प्रेरित कर सकते हैं”; लेकिन, देश इससे भी ज़्यादा महत्व देता है मुक्त और समावेशी घरेलू बाज़ार को बढ़ावा देने को, ताकि देश के भीतर नए दौर के सुधारों की शुरुआत हो सके और मुक्त बाज़ार असल मायनों में देश के अंदरूनी हिस्सों तक पहुँच सके। उम्मीद की जा रही है कि चीन, तकनीक के मामले में स्वायत्तता हासिल करने और घरेलू माँग को बढ़ावा देने पर जोर देगा। आत्मनिर्भरता, मौलिक शोध और विकास कार्यों को मज़बूत करने, और घरेलू माँग को बढ़ावा देने के अपने प्रयासों के बावजूद, चीन अपने बाज़ारों को विदेशी निवेश और पूंजी के लिए खुला रखने को प्रतिबद्ध है।

दूसरा, दोहरे आर्थिक विकास के प्रतिमान स्थापित करना। चीन, अपने घरेलू बाज़ार को मज़बूत करने और विकास के नए प्रतिमान स्थापित करने की कोशिश करेगा। देश, घरेलू माँग को बढ़ावा देने की रणनीतिक ज़रूरत पर जोर देगा, पूरी तरह से घरेलू माँग पर आधारित सिस्टम को तैयार करने पर बल देगा, और घरेलू माँग और आपूर्ति तंत्र के संरचनागत सुधारों को गहराई तक ले जाएगा। साथ ही, चाइना नवाचार और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों की आपूर्ति के ज़रिए, बाज़ार में नई माँग पैदा करेगा। इसके अलावा, चीन को घरेलू अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी गति देनी होगी, वस्तुओं और सेवाओं के उपभोग को प्रोत्साहन देना होगा, और निवेश के अवसरों को बढ़ाना होगा। चीन अपने आयातों को और बढ़ाएगा और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने की दिशा में काम करेगा। इससे, भारत की वस्तुओं और सेवाओं को चीन के बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का मौका मिलेगा, और चीन-भारत के बीच की आर्थिक, व्यापार और निवेश से जुड़ी विषमताओं को संतुलित करने में मदद मिलेगी।

तीसरा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मौलिक नवाचार और नवाचार पोषित विकास के लिए प्रतिबद्ध रहना। सीपीस की 19वीं केंद्रीय समिति के पांचवें पूर्णाधिवेशन में नवाचार को चीन की आधुनिकीकरण की मुहिम के केंद्रीय तत्त्व के रूप में परिभाषित किया गया। पूर्णाधिवेशन में यह भी कहा गया कि देश, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में स्वतंत्र नवाचार को राष्ट्रीय विकास के रणनीतिक सहयोग के रूप में इस्तेमाल करने के लिए प्रतिबद्ध है। दुनिया की विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सीमाओं, प्रमुख आर्थिक चुनौतियों, चाइना की ज़रूरतों और अपने नागरिकों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं को देखते हुए, चीन को एक ऐसी रणनीति लागू करने की ज़रूरत है जो ज्ञान-विज्ञान के ज़रिए देश में एक नई ऊर्जा भर दे। इस रणनीति के तहत चीन को कौशल के मामले में एक शक्तिशाली देश बनाने पर जोर दिया जाएगा और देश का विकास नवाचार से चालित होगा। इस तरह, चीन अपने राष्ट्रीय नवाचार तंत्र को बेहतर कर पाएगा और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक महाशक्ति बन पाएगा।  रणनीतिक रूप से अहम, वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमता का विकास करने,  तकनीकी विकास के लिए उद्यमों की क्षमता बढ़ाने, और पेशेवर लोगों की रचनात्मक क्षमताओं को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ वैज्ञानिक और तकनीकी नवाचार तंत्र और प्रक्रियाओं को बेहतर करना आज की ज़रूरत बन चुका है। वर्तमान में, चीन नवाचार से चालित विकास को ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ावा दे रहा है, जो विज्ञान और तकनीक, स्मार्ट सिटी निर्माण, विनिर्माण उद्योग के साथ-साथ हरित और सतत विकास जैसे व्यापक क्षेत्रों में चीन-भारत सहयोग की अभूतपूर्व संभावनाओं को जन्म देता है।

चौथा, अपनी वास्तविक अर्थव्यवस्था (वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन पर आधारित अर्थव्यवस्था) और आपूर्ति श्रृंखला को सुरक्षित करना। पूर्णाधिवेशन में इस बात पर जोर भी दिया गया कि चीन को देश में आधुनिक औद्योगिक तंत्र के निर्माण कार्य को तेज करना होगा और अपनी अर्थव्यवस्था को उन्नत करने की गति को भी बढ़ाना होगा। ऐसे में, देश को विकास के मुख्य इंजन के रूप में अपनी वास्तविक अर्थव्यवस्था को चुनना होगा। सीधे तौर पर, उसे खुद को एक विनिर्माण शक्ति, गुणवत्तापूर्ण उत्पादों की महाशक्ति, साइबर शक्ति, और डिजिटल अर्थव्यवस्था के रूप में तैयार करना होगा। चीन को अपने औद्योगिक आधार को और उन्नत स्तर तक लेकर जाना होगा और औद्योगिक श्रृंखला का आधुनिकीकरण करना होगा, ताकि अर्थव्यवस्था की गुणवत्ता, उससे मिलने वाले फ़ायदे और उसकी मूल प्रतिस्पर्धा क्षमता को बेहतर बनाया जा सके।

चीन को औद्योगिक और आपूर्ति श्रृंखलाओं को आधुनिक बनाने, उभर रहे लेकिन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उद्योगों को विकसित करने, आधुनिक सेवा उद्योग के विकास की गति को तेज करने, मूलभूत ढांचे को समन्वित रूप से विकसित करने, परिवहन क्षमता के निर्माण की गति को तेज करने, ऊर्जा क्रांति को और आगे बढ़ाने, और डिजिटल तकनीक के विकास को प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है। चाइना की पिछली रणनीति ने यह साबित कर दिया है कि इसका विनिर्माण उद्योग इतना लचीला है कि वह अमेरिका द्वारा  एकतरफा रूप से चलाए गए ट्रेड और टैरिफ़ वॉर को झेल सके। आगे ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए, देश ने सावधानी बरतनी शुरू कर दी है। साथ ही, चीन ने कई उत्पादों के विनिर्माण में अग्रणी देश बनने की भी तैयारियां शुरू कर दी हैं। महामारी के बाद, क्षेत्रीय औद्योगिक शृंखला, आपूर्ति श्रृंखला, और मूल्य श्रृंखला को आकार देने व उसकी दिशा तय करने में चीन की भागीदारी और बढ़ जाएगी। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में इन सभी श्रृंखलाओं की स्थिरता को बनाए रखना, चीन और भारत, दोनों देशों के साझा हितों के लिए बहुत ज़रूरी है।

पाँचवाँ, उच्च स्तर की मुक्त अर्थव्यवस्था का विकास करना। आने वाले समय में, चीन, बाहरी दुनिया के लिए ज़्यादा संभावनाओं के साथ बड़े और व्यापक स्तर पर, अपनी अर्थव्यवस्था को खोलने जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने, पारस्परिक लाभ और सबके लिए फ़ायदेमंद नतीजे हासिल करने के लिए, देश अपने बड़े बाज़ार का पूरा लाभ उठाएगा। चीन, उच्च स्तर की मुक्त अर्थव्यवस्था का विकास करेगा, मुक्त अर्थव्यवस्था की पहुंच को और व्यापक करेगा, व्यापार और निवेश के क्षेत्रों में उदारीकरण और सरलीकरण को बढ़ावा देगा, और व्यापार संबंधी नवाचार और विकास को आगे ले जाने पर बल देगा। देश, “बेल्ट और रोड पहल” के तहत, उच्च स्तर के विकास को और प्रोत्साहित करेगा और वैश्विक आर्थिक संचालन तंत्र के सुधारों में सक्रिय भागीदारी निभाएगा। जैसे-जैसे चीनअपनी अर्थव्यवस्था को खोलता जाएगा, भारतीय लोगों और कंपनियों के सामने व्यापार के नए अवसर खुलते जाएँगे।

चीन और भारत की अर्थव्यवस्था को बलपूर्वक अलग करने से भारतीय उपभोक्ताओं को नुकसान होता है

हालाँकि, अर्थतंत्र, व्यापार और निवेश के क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को चीन-भारत संबंध का मुख्य उद्घोषक कहना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन यही वे क्षेत्र हैं जहाँ दोनों देशों के बीच सबसे बड़ी संख्या में और कारगर सहयोग कार्य संपन्न होते हैं।

15 सितम्बर, 2020: भारत की राजधानी नई दिल्ली में, माल ढुलाई करते मज़दूर। इसी दिन, एशियाई विकास बैंक ने एशियन डेवलपमेंट आउटलुक (एडीओ) अपडेट 2020 जारी किए। अपडेट के मुताबिक, साल 2020 के दौरान एशिया की लगभग तीन-चौथाई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर नकारात्मक रहने की उम्मीद है। (विज़ुअल पीपल)

जून 2020 में, गलवान घाटी में हुए गतिरोध के बाद, भारत ने एकतरफा तौर पर चीन के साथ आर्थिक और व्यापार रिश्तों से खुद को अलग कर लिया, चीनी मूल के कई मोबाइल ऐप्लिकेशन बैन कर दिए, और चीनी उत्पादों का बहिष्कार किया। इसके साथ ही, भारत ने अपनी औद्योगिक शृंखला को भी चीन से अलग करना चाहा। भारत की ओर से उठाए गए इन कदमों ने, भारत में चीनी पूंजी और चीनी कारोबारी वर्ग के विश्वास को गहरी क्षति पहुँचाई है और भारतीय बाज़ार के सामने खड़े भू-राजनीतिक खतरों को लेकर वैश्विक समुदाय की चिंताओं को बढ़ा दिया है। सोसाइटी जनरल के अर्थशास्त्री, कुणाल कुंडू का मानना है कि भारत के चीनी पूंजी निवेश को सीमित करने के पीछे दो देशों के बीच चल रहा तनाव है। चीन को लेकर भारत के बदले हुए रुख ने, निवेशकों को अनिश्चितता में डाल दिया है, जिससे भारत जैसे उभरते हुए बाज़ार के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपनी ओर आकर्षित करना और भी मुश्किल हो गया है। उम्मीद जताई जा रही है कि विश्व बैंक की व्यावसायिक वातावरण से जुड़ी वैश्विक रैंकिंग में भारत को काफ़ी नुकसान हो सकता है। 

राष्ट्रवाद से प्रेरित, कुछ भारतीय, भारत को चीनी अर्थव्यवस्था से पूरी तरह अलग करने की बात कर रहे हैं। हालाँकि, उन्हें समझना चाहिए कि “चीन का बहिष्कार” करके नई दिल्ली अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकती। बजाय इसके, इससे भारतीय उद्योगों की लागत में इजाफ़ा होगा, जिसका खामियाजा अंत में भारत के उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ेगा। चीन मुख्य तौर पर भारत से कच्चा माल आयात करता है, जिसे वह दूसरे चैनलों से भी जुटा सकता है। जबकि, चीन से आने वाले भारत के आयातों में  इलेक्ट्रॉनिक सामग्री, सोलर पैनल, एक्टिव फ़ार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स, बैट्री, इलेक्ट्रिक गाड़ियों के पार्ट्स वगैरह शामिल हैं। यह लगभग असंभव है कि इन उत्पादों के ऐसे निर्यातक मिल जाएँ जो समय, मात्रा, और कीमत के मामले में चीन का मुकाबला कर पाएँ।

चीन से आने वाले एक्टिव फ़ार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट्स, भारत के फ़ार्मास्यूटिकल उद्योग के लिए जीवन रेखा की तरह हैं। चीन के उच्च-स्तरीय और सस्ते सोलर पैनल,  भारत में अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रहे हैं और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में देश की मदद कर रहे हैं। भारत को अपनी डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास के लिए चीन के इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की ज़रूरत है। डिजिटल अर्थव्यवस्था, भारत में अच्छी आय वाली नौकरियां देने वाले गिने-चुने उद्योग क्षेत्रों में से एक है।

साल 2019 में, वीडियो शेयर करने वाले चीन ऐप्लिकेशन टिक-टॉक की पैरेंट कंपनी बाइटडांस ने भारत में अगले तीन सालों में 1 बिलियन डॉलर निवेश करने का निर्णय लिया। यह एक ऐसा कदम था जिससे 2000 स्थानीय कर्मचारियों और 2000 भारतीय परिवारों को बड़े पैमाने पर प्रभावित करने की उम्मीद जताई जा रही थी। इंडोनॉमिक्स कंसल्टिंग के मुख्य अर्थशास्त्री, रीतेश कुमार सिंह के अनुसार, भारतीय विनिर्माताओं को सस्ते चीनी उत्पादों और सामग्री से वंचित रखने से कई भारतीय उद्योगों जैसे कि खुदरा व्यापार, रियल स्टेट, होटल और कैटरिंग को नुकसान होगा और उनकी लागत बढ़ जाएगी। नतीजतन, भारत में उत्पादों और सेवाओं की कीमतें बहुत ज़्यादा बढ़ जाएँगी और इनका सबसे बुरा असर भारत के उसी उपभोक्ता समुदाय पर होगा जो “चीन के बहिष्कार” का सबसे बड़ा समर्थक था।

हकीकत यह है कि मई 2020 में जब से भारत ने “चीन के बहिष्कार” नामक अभियान की शुरूआत की है, तब से चीन से आने वाले भारतीय आयात में इजाफ़ा हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि चीन अब भी भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और आयात का स्रोत है। अप्रैल 2020 से सितंबर 2020 के बीच, पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले भारत के कुल आयात में चीन की भागीदारी 13.7 प्रतिशत से बढ़कर 18.3 प्रतिशत हो गई है। इसका बड़ा कारण भारत के आयात की प्रकृति है। दरअसल, चीन से आने वाले आधे से अधिक आयात भारत में अंतिम उत्पाद बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। जहाँ तक चीन को जाने वाले भारत के निर्यात की बात है, तो अप्रैल से सितंबर 2020 के बीच, चीन, भारत से सबसे ज़्यादा स्टील खरीदने वाला देश है। भारत के लगभग 30 प्रतिशत स्टील उत्पाद चीन को निर्यात किए गए, जिसने कोविड-19 महामारी के चलते भारत की घरेलू माँग में आई कमी को कुछ हद तक संभाला।

इस दौरान, भारत ने कुल 65 लाख टन तैयार स्टील का निर्यात किया, जिसमें से 19 लाख टन चीन को गया। यह, कुल निर्यात का 29 प्रतिशत था। विश्व का सबसे बड़े स्टील उपभोक्ता होने के नाते, चीन को मूलभूत ढांचे में अपने भारी-भरकम निवेश का  बहुत फ़ायदा हुआ है। वैश्विक स्तर पर स्टील की माँग में कमी के चलते, चीन की स्टील  माँग में इजाफ़ा देखा गया है।  इसीलिए, भारतीय उत्पादकों ने अपने उत्पादों को बेचने के लिए चीनी बाज़ार का रुख किया है। ध्यान देने की बात है कि चीन के खिलाफ़ कई आर्थिक और वाणिज्यिक प्रतिबंध लगाने के बावजूद, चीन जाने वाले भारतीय स्टील निर्यात पर इन प्रतिबंधों का कोई असर नहीं हुआ है।

किसी भी बाज़ार अर्थव्यवस्था में, उपभोक्ता हमेशा सबसे अच्छे उत्पाद सबसे अच्छे दामों पर खरीदना चाहते हैं। किसी भी उत्पादक के लिए ज़रूरी है कि वह उपभोक्ताओं की माँग पूरी करने के लिए, उचित दामों में उच्च-गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाए। इसी से उसका कारोबार चलता है। यही वजह कि महज राजनीतिक हस्तक्षेप, भारत के विदेशी व्यापार ढाँचे को नहीं बदल सकता। 

साझा हितों की रक्षा करना

नई दिल्ली और पेइचिंग के बीच संबंध न केवल महत्वपूर्ण हैं बल्कि इनके दूरगामी रणनीतिक आयाम भी हैं। फ़िलहाल, ये दोनों देश एक-दूसरे के आमने-सामने खड़े हुए हैं। ज़रूरी है कि दोनों पक्ष आपसी संबंधों को आगे ले जाने वाले साझा रास्तों की पहचान करें, पारस्परिक विश्वास, सहयोग, और सबके लिए फ़ायदेमंद नतीजों वाले सही रास्ते पर बने रहें। साथ ही, दोनों देश एक-दूसरे पर संदेह करने वाले या तनाव पैदा करने वाले रास्ते पर कभी न चलें, और रिश्तों में दरार पैदा करने वाले रास्तों पर चलने से पूरी तरह बचें। दोनों पक्ष, दीर्घकालिक दृष्टिकोण लेकर चलें और एक दूसरे की रणनीतिक आकांक्षाओं को ठीक से समझें। दोनों देशों को अपने नेताओं की इस मूल समझ को भी स्वीकार करना होगा कि चीन और भारत एक दूसरे के लिए खतरा पैदा नहीं करते हैं, बल्कि एक-दूसरे के लिए विकास के अवसर उत्पन्न करते हैं। यही कारण है कि दोनों पड़ोसियों को साझा समृद्धि तक ले जाने वाले नए रास्तों की तलाश करनी होगी।  

सीपीसी की 19वीं केंद्रीय समिति के पांचवें पूर्णाधिवेशन ने दुनिया के सामने चीन और बाकी दुनिया के बीच, सकारात्मक तालमेल स्थापित करने की एक नीतिगत रूपरेखा रखी है। वर्तमान में, चीन और भारत, विकास से जुड़ी एक जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और दोनों के विकास लक्ष्य भी एक जैसे हैं। दोनों के साझा हित, आपसी मतभेदों से कहीं ज़्यादा और महत्त्वपूर्ण हैं। ज़रूरी है कि दोनों देश, कोविड-19 महामारी से लड़ने, आर्थिक संकट से उभरने, बहुपक्षीयता, और वैश्विक व्यवस्था के संचालन जैसे क्षेत्रों में एक दूसरे का सहयोग करें। दोनों देशों को द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने वाले हर अवसर का लाभ उठाना चाहिए और  सीमा से लगे देशों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय वातावरण को अनुकूल बनाने के प्रयास करने चाहिए। राष्ट्रीय कायाकल्प के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अनुकूल वातावरण बहुत ज़रूरी होता है। अंत में, दोनों देशों को वैश्विक शांति और स्थितरता को बनाए रखने तथा साझा विकास को प्रोत्साहित करने के लिए अपना योगदान देना चाहिए। 

 

लेखक चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ में एशिया-प्रशांत अध्ययन विभाग के उप-निदेशक हैं।