संवाद द्वारा एकमत साधने का महत्व: समस्याओं का समाधान
भारत में मेरी पहली यात्रा 2016 में शुरू हुई। कई महीनों लंबी अपनी इस यात्रा के दौरान मैंने कई विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों का दौरा किया, जैसे नई दिल्ली में चीनी अध्ययन संस्थान, दिल्ली विश्वविद्यालय, मुंबई विश्वविद्यालय, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) मद्रास, जम्मू और कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय (अब केंद्रीय कश्मीर विश्वविद्यालय), केरल राज्य में महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्वभारती विश्वविद्यालय, और बैंगलोर में क्रिश्चियन कॉलेज।
इस यात्रा के दौरान, मुझे बहुत से नए दोस्तों से मिलने का अवसर मिला और मैं हर साल एक-दो सप्ताह के लिए भारत यात्रा करने लगा। इस दौरान मैंने जाना कि भारतीय माता-पिता, अपने चीनी समकक्षों की ही तरह, हमेशा यही आशा करते हैं कि उनके प्रतिभाशाली बच्चे समाज में अपना योगदान दें। पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में, गाँव वालों को उनकी जीवनशैली सुधारने के लिए कठिन प्रयास किए जा रहे हैं, भारत के शहर जीवंतता से भरे हुए हैं लेकिन वहां बहुत ज्यादा भीड़-भाड़ है। भारतीय सरकार ने मज़बूत आशावाद दिखाया है, लेकिन हर बार वो अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकी।
2022 के अक्टूबर में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 20वीं राष्ट्रीय कांग्रेस में, राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने इस शताब्दी के मध्य तक चीन को एक महान आधुनिक समाजवादी देश बनाने के काम के महत्व पर ज़ोर दिया है। उसी तरह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के उत्सव में घोषणा की कि देश अपनी स्वाधीनता की 100 वीं वर्षगांठ तक विकसित देश बनेगा। मुझे विश्वास है कि ऐसा होगा हालांकि चीन और भारत बहुत अलग-अलग दिखाई देते हैं, लेकिन वास्तव में वे कई मायनों में समान हैं। दोनों देशों के पास कई सामान्य विषय और दृष्टिकोण हैं।
पिछले तीन वर्षों से, कोविड-19 महामारी ने मेरी भारत यात्रा की योजनाओं पर रोक लगा दी। मेरे जैसे ही, चीन के कई विद्यार्थी भारत और चीन के बीच तुलनात्मक अध्ययन में जुटे हुए अपने भारतीय समकक्षों के साथ मौखिक वार्ता नहीं कर पाए क्योंकि दोनों देशों के बीच एक दूसरे देश के लोगों की आवाजाही ठंडे बस्ते में बंद हो गई थी।
दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों ने कई परीक्षणों को भी सफलतापूर्वक पार किया। सीमा पर घटी घटनाओं ने जहां वर्षों से बनी हुई शांति व्यवस्था को नुकसान पहुंचाया तो वहीं इसकी वजह से संघर्ष और कई लोगों की हताहती को भी अंजाम दिया। सामान्य व्यापार और आर्थिक आदान-प्रदान को धीरे-धीरे राजनीतिक रूप दिया गया और इसे अधिकांशतः सुरक्षा मुद्दों से जोड़ा गया। भारत में, "चीन से ख़तरे" वाली बात को बढ़ाया गया, जबकि चीन में भारत के प्रति अविश्वास और सतर्कता की भावना प्रबलता से आगे बढ़ने लगी। दोनों देश जिन्हें एक ही दिशा में चलना चाहिए था, वे अपने सामान्य लक्ष्यों से और दूर होते चले गए।
भारतीय अध्ययन का एक विद्यार्थी होने के नाते और एक दीर्घकालिक अवलोकनकर्ता के रूप में, मेरे पास भारत आने जाने का लंबा अनुभव है, मुझपर इन परिवर्तनों ने अपना असर डाला है, और इससे मैं परेशान भी हुआ। सबसे पहले और प्रमुख तौर पर हज़ारों वर्षों से चीन और भारत के बीच शांतिपूर्ण आवाजाही ने चीनी और भारतीय सभ्यताओं के बीच आपसी सीख को सतत रूप से आगे बढ़ाया है और दोनों की उत्कृष्ट संस्कृतियों को पोषित किया है, इस कारण आज भी दोनों सभ्यताएं जीवंत हैं।
हालांकि, छोटे-मध्यम अवधि के संघर्ष ने घृणा और द्वेष को पैदा किया है और ये भविष्य की पीढ़ी के हित को भी नुकसान पहुंचा सकती है। मुझे भी यह ज्ञात है कि चीन और भारत के बीच का अधिकांश अविश्वास और द्वेष पूर्वाग्रह और गलतफहमी से पैदा हुआ है, इसे दूर किया जा सकता है, अगर दोनों पक्षों के लोग आपसी संपर्क और विश्वास को बढ़ाएँ।
चीन और भारत की सरकारों और दोनों देशों की जनता को, इस बात पर सहमति बनानी चाहिए कि दोनों पक्षों को संघर्ष और मुठभेड़ से बचना चाहिए और किसी दूसरे देश का उपयोग एक दूसरे को निशाना बनाने के लिये नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि सद्भावपूर्ण और सहकारी संबंधों को बनाए रखना चाहिए। दोनों देशों को आपसी सीख को बढ़ाने के लिए अवसरों का विस्तार करना चाहिए ताकि गलतफ़हमी को दूर किया जाए, सहमति को पोषित किया जाए और आपसी मतभेदों का समाधान किया जा सके।
वर्ष 2023 चीन-भारत संबंधों के विकास के लिए महत्वपूर्ण है, और कई लोग आशा करते हैं कि दोनों महान देशों को अपने संबंधों पर प्रभाव डालने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों को सही ढंग से निपटाने की कार्रवाई करनी चाहिए, जो लोगों के लिए बेहतर हो और जो वैश्विक प्रशासन के ज्ञान के लिये एक दिशा निर्धारित करे। मैं अपने शोध पर आधारित कुछ सुझाव देना चाहूँगा।
इसके लिये पहले मेरी आशा चीन सरकार से है कि वो भारतीयों के लिये चीन में अध्ययन, काम और यात्रा करने के लिये अपने द्वार खोले। हमें उन भारतीय विद्यार्थियों और विद्वानों की आवश्यकता है जो चीन अध्ययन के काम में जुटे हुए हैं, चीन के विकास के बारे में चीनी विद्वानों के साथ चीन जाकर बातचीत करें, जहां चीन और भारत के अनुभव और सर्वसाधारण कानून पर चर्चा हो सकें। दोनों पक्षों को द्विपक्षीय संबंधों से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक दूसरे के विचारों को सुनना चाहिए।
इस प्रकार से, वे दोनों देशों में नीति निर्माताओं के साथ आम जनता को तार्किक राय दे सकते हैं। जिससे भारतीयों को चीन में यात्रा करने और व्यापार करने के लिये प्रोत्साहन मिले, वास्तविक चीनी समाज का अनुभव करें और चीन के लोगों से व्यक्तिगत तौर पर मिलें।
दूसरी बात, मैं भारत सरकार से अपील करूँगी कि वह चीनी लोगों की भारत यात्रा पर नियंत्रण न लगाए और उसे आसान बनाए। एक दूसरे से सीखने और समझने के अवसरों को नकारने से केवल संदेह बढ़ेगा। चीन के साथ साझे विनिमय की आवश्यकता को अनदेखा करने से चीन और भारत को प्रभावित करने वाली परिस्थितियां अपने आप मतभेदों और संघर्ष को खत्म नहीं हो सकती।
आपसी संपर्क और बातचीत से गलतफ़हमियां दूर होंगी और इससे आपसी मतभेद कम होंगे। इस समय द्विपक्षीय संबंधों की संवेदनशीलता को समझते हुए चीनी विद्वानों, उद्यमियों और पर्यटकों को सभी चीन-भारत संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, और इसलिए उनकी भारत यात्रा का सम्मान करना चाहिए और उनकी अच्छी तरह देखभाल करनी चाहिए।
चीन और भारत दोनों ही आधुनिकीकरण के लिए अद्वितीय विकास पथ की खोज कर रहे हैं, संस्थागत विरोधों को एक दूसरे से दूर होने का कारण नहीं बनाना चाहिए और न ही गुटबंदी वाली सोच रखना चाहिए। प्रगति के रास्तों के अंतर का सम्मान करना चाहिए, दोनों देश के लोगों को समान लक्ष्य, अवसरों की तलाश और आपसी समझ पर बातचीत करनी चाहिए।
लेखक शांगहाई इंटरनेशनल स्टडीज विश्वविद्यालय के भारतीय अध्ययन केंद्र की कार्यकारी निदेशक हैं। यह लेख चीन-भारत मीडिया और थिंक टैंक फोरम में उनके भाषण के एक अंश से लिया गया है।