भारत और चीन करेंगे वैश्विक आर्थिक सुधार का नेतृत्व

साल 2023 में, वैश्विक विकास में अकेले भारत और चीन की हिस्सेदारी आधी होगी, जिसकी वजह से वे वैश्विक आर्थिक संभावनाओं के केंद्र में रहेंगे।
by पी.के. वासुदेव
Xiamen
2017 में श्यामन, फूच्येन प्रांत में आयोजित बीआरआईसीएस व्यापारिक मंच में 1,000 से अधिक चीनी और विदेशी अतिथि व्यापार समुदायों से संबंधित विषयों पर चर्चा करते हैं, जिनमें वाणिज्य और निवेश, वित्तीय सहयोग और विकास, कनेक्टिविटी और “समुद्री अर्थव्यवस्था” शामिल हैं। (कुओ शाशा/ चीन सचित्र)

वैश्विक अर्थव्यवस्था अगले साल रिबाउंडिंग से पहले, साल 2023 में धीमी होने की ओर अग्रसर है। विकास, ऐतिहासिक मानकों के हिसाब से कमज़ोर रहेगा, क्योंकि मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई के साथ-साथ यूक्रेन संकट भी आर्थिक गतिविधियों पर भारी पड़ रहा है। इन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, संभावना कम निराशाजनक दिखाई देती है और एक महत्वपूर्ण मोड़ बहुत करीब दिखाई देता है, जिसमें विकास का नीचे जाना रुक रहा है और मुद्रास्फीति गिर रही है। वैश्विक नेता बनने के लिए अपना व्यापार बढ़ाना भारत और चीन दोनों के हित में है। चीन की जीडीपी 179 खरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई है और तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है।

 

उज्जवल भविष्य

कोविड-19 प्रतिबंध हटाए जाने के साथ, चीन की आर्थिक गतिविधियों में संभवतः तेजी से रिबाउंड देखने को मिलेगा। वैश्विक वित्तीय स्थितियों में भी सुधार हुआ है क्योंकि मुद्रास्फीति के दबाव कम होने लगे हैं। इसके और अमेरिकी डॉलर के नवंबर 2022 के उच्च स्तर से कमजोर होने से, उभरती अर्थव्यवस्थाओं और विकासशील देशों को कुछ मामूली राहत मिली है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के अनुसार, साल 2022 में वैश्विक विकास 3.4 प्रतिशत से धीमा होकर साल 2023 में 2.9 प्रतिशत हो जाएगा और फिर साल 2024 में 3.1 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में, मंदी और बढ़ेगी, यह साल 2022 के 2.7 प्रतिशत से गिरकर, इस साल 1.2 प्रतिशत और अगले साल 1.4 प्रतिशत हो जाएगी।

भारत एक इन सभी गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है। दो प्रमुख विकासशील देशों के रूप में, वैश्विक विकास में अकेले भारत और चीन की हिस्सेदारी आधी होगी, जबकि अमेरिका और यूरोज़ोन की हिस्सेदारी संयुक्त रूप से सिर्फ दसवें हिस्से की होगी। आईएमएफ़ ने साल 2023 के लिए चीन के विकास के अनुमान को संशोधित कर 5.2 प्रतिशत कर दिया। इसी समय, भारत के लिए यह अनुमान मजबूत बना हुआ है, साल 2023 में 6.1 प्रतिशत की गिरावट का अपरिवर्तित पूर्वानुमान है, लेकिन साल 2024 में 6.8 प्रतिशत की वापसी के साथ साल 2022 के अपने प्रदर्शन को वापस पाने का अनुमान है।

चीन और भारत वैश्विक आर्थिक सुधार का नेतृत्व करना जारी रखेंगे, जबकि यूरोप की उन्नत अर्थव्यवस्थाएं साल 2023 में संघर्ष करना जारी रखेंगी, हालांकि ज़्यादातर मंदी से बच जाएंगी। साल 2023 के लिए, आईएमएफ़ द्वारा फ्रांस को 0.7 प्रतिशत, इटली को 0.6 प्रतिशत और जर्मनी की अर्थव्यवस्था को केवल 0.1 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। अमेरिका के लिए यह संख्या 1.4 प्रतिशत है। इस साल वैश्विक मुद्रास्फीति में गिरावट आने की उम्मीद है, लेकिन फिर भी साल 2024 तक, दुनिया भर के 80 प्रतिशत से अधिक देशों में अनुमानित औसत सालाना कोर मुद्रास्फीति महामारी से पहले के स्तर से ऊपर है।

 

भारत और चीन का प्रभाव

दो दशक पहले तक चीन, भारत का 10वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था और साल 2002 से ऊपर की ओर बढ़ रहा है। साल 2011-12 में चीन, भारत का शीर्ष व्यापारिक भागीदार था। वहीं, साल 2013-14 से 2017-18 तक, 2020- 21 में, और 2021-22 में भारत, अमेरिका के बाद, चीन का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था। साल 2021-22 में, भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार 1.16 खरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जो भारत के 1,035 अरब अमेरिकी डॉलर के कुल मर्चेंडाइज़ व्यापार का 11.2 प्रतिशत था, लेकिन चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 73.31 अरब अमेरिकी डॉलर था।

राजनीति और सुरक्षा के दृष्टिकोण से, भारत सरकार चीन से आयातित उत्पादों और सेवाओं पर निर्भरता से चिंतित है। उदाहरण के लिए, भारत अपने फार्मास्युटिकल उद्योग में उपयोग होने वाली ज़्यादातर सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (एपीआई) का आयात चीन से करता है और कोविड-19 महामारी के दौरान, जब भारत में चीनी एपीआई के निर्यात को अस्थायी रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया था, भारत को एपीआई के अपने आयात में कटौती करनी पड़ी थी। इसके अतिरिक्त, भारत में कोयले से उत्पन्न लगभग 24 प्रतिशत ऊर्जा चीन से आयातित महत्वपूर्ण उपकरणों का उपयोग करने वाले संयंत्रों से आती है। भारत के लिए एक विकल्प अन्य व्यापारिक साझेदारों को खोजने के लिए निर्भरता में विविधता लाना है, लेकिन चीन से इस तरह के आयात को सीमित करने से भारत की निजी बिजली कंपनियों को उच्च लागत को अवशोषित करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने जनवरी में विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ़) में कहा था कि यह सोचना जल्दबाजी होगी कि वैश्विक आर्थिक विकास पर चीन के प्रभाव को देखते हुए भारत, चीन की जगह ले लेगा, हालांकि यह देखते हुए स्थिति बदल सकती है कि भारत पहले से ही पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इसमें आगे बढ़ने और विस्तार करते रहने की क्षमता है। साल 2023 में वैश्विक मंदी की भविष्यवाणी करने वाले मुख्य अर्थशास्त्री आउटलुक पर, डब्ल्यूईएफ की प्रेस वार्ता में राजन ने कहा कि चीनी अर्थव्यवस्था में कोई भी सुधार निश्चित रूप से वैश्विक विकास की संभावनाओं को बढ़ावा देगा।

सभी डेटा इंगित करते हैं कि भारत और चीन दोनों को अपने मतभेदों को सुलझाना चाहिए और वैश्विक नेताओं के रूप में उभरने के लिए व्यापार बढ़ाने के अवसर का भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए।

 

लेखक भारत के चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के पूर्व वरिष्ठ प्रोफेसर हैं। उन्होंने  “विश्व व्यापार संगठन: भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभावसहित कई किताबें लिखी हैं।