सहयोग के लिए नए मौके

महामारी के असर के खिलाफ चीन ने चुनौतियों का सामना किया और अपने घरेलू सुधारों को गहरा किया। भारत के लिए, यह आर्थिक सुधारों को प्रोत्साहन देने और विकास के रास्ते से अड़चनों को हटाने का मौका है।
by वांग हाईश्या द्वारा
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7 सितम्बर, 2018: चीन के क्वांगतोंग शहर में आयोजित अंरतराष्ट्रीय पर्यटन उद्योग प्रदर्शनी (इंटरनेशनल टूरिज़्म इंडस्ट्री एक्स्पो) के दौरान, क्वांगशी पवेलियन में, ज़ुआंग स्वायत्त प्रदेश की मिआओ स्वायत्त काउंटी की ये ज़िवन, दो भारतीयों को अपने शहर का टूरिज़्म ब्रोशर दिखाते हुए। ये ज़िवन, मिआओ जातीय समूह की महिला हैं। (वीसीजी)

हाल ही में, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 19वें केंद्रीय समिति के पांचवें पूर्णाधिवेशन ने 14वें पंचवर्षीय योजना (2021-2025) और साल 2035 के माध्यम से दीर्घकालीन लक्ष्यों के सूत्रीकरण के प्रस्ताव की समीक्षा कर उसे मंजूरी दी। यह प्रस्ताव जीत के सहयोग को हासिल करते हुए आपूर्ति क्षेत्र में सुधार को बढ़ाते और घरेलू मांग को प्रोत्साहित करने के साथ चीन को उच्चस्तर पर खुलने की जरुरत पर जोर देता है। यद्यपि चीन में आर्थिक और व्यापार सहयोग के माध्यम से भारत के साथ विकास को हासिल करने की नेकनीयता है, अब भी दोनों देशों के बीच आर्थिक और व्यापारिक सहयोग के रास्ते में कई अड़चनें हैं। महामारी के भयंकर प्रभाव का सामना करते हुए, चीन और भारत को आर्थिक और व्यापारिक विकास पर प्रतिबंध लगाने के बजाय, सहयोग को मजबूत करना और कठिनाईयों को साथ मिलकर पार लगाना चाहिए।   

सुधार,खुलापन और नवप्रवर्तन

14वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत आने वाली कालावधि सिर्फ चीन के आर्थिक प्रणाली के सुधार के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि यह कालावधि उच्चस्तरीय खुलने को प्रोत्साहित करने के लिए मौकों की है। वैश्विक कोविड-19 महामारी और दुनिया में हो रहे बड़े बदलावों के समक्ष, शताब्दी में एक कुछ ऐसा है जो दिखा नहीं, 14वीं पंचवर्षीय योजना सुधार, खुलने और नवप्रवर्तन पर जोर देती है जो कि काम का केंद्र आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना और एक बेहतर जीवन के लिए लोगों की जरूरतों को पूरा करना है। 

घरेलू तौर पर, चीन उच्च गुणवत्ता के विकास पर ध्यान देता है। चीन आपूर्ति क्षेत्र में ढांचागत सुधार को गहरा करने के लिए वचनबध्द है जो नवप्रवर्तन से भरा होगा। इसका लक्ष्य लोगों के बेहतर जीवन के लिए बढ़ती मांगों को पूरा करना है। पहला, चीन सुधारों और नवप्रवर्तन को प्रोत्साहित करना जारी रखेगा। इसका उद्देश्य आपूर्ति क्षेत्र में ढांचागत सुधार और घरेलू मांग के विस्तार की रणनीति के माध्यम से तीव्र विकास से उच्चस्तरीय विकास में रूपांतर करना है। दूसरा है "दोहरा प्रसारण" नाम की एक नयी विकास पद्धति को स्थापित करना जिसमें घरेलू बाजार को मुख्य आधार रखकर घरेलू और विदेशी बाजार एक-दूसरे को सुदृढ़ कर सकें।  

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, चीन उच्चस्तरीय खुलेपन के लिए संघर्ष कर रहा है और जीत के सहयोग को लेकर दूसरे देशों के साथ काम कर रहा है। चीन दुनिया के उपभोक्ता बाजार का महत्वपूर्ण अंग है, और इसे "दोहरे प्रसारण" को अन्य देशों के साथ आर्थिक संबंधों के माध्यम से और विकास के लाभांश को बांटकर प्रोत्साहित करने की जरुरत है। 14वीं पंचवर्षीय योजना बड़े, विस्तृत और गहरी मुक्तता को जारी रखने का प्रस्ताव रखती है। यह चीन के बड़े बाज़ार के फायदों के आधार पर अन्य देशों के साथ जीत के सहयोग का संकल्प करती है। चीन विश्व के बिना विकसित नहीं हो सकता, और दुनिया की समृद्धि के लिए चीन की जरूरत है। वर्तमान में, चीन के औद्योगिक श्रृंखला और आपूर्ति श्रृंखला विश्व के साथ गहराई से एकीकृत हैं। चीन वैश्विक आर्थिक और व्यापार सहयोग के माध्यम से सिर्फ घरेलू आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने की ही उम्मीद नहीं करता, बल्कि विकास के लाभों को अन्य विकासशील देशों के साझा करता है।

भारत सरकार स्टील, रसायन, फार्मास्यूटिकल, घरेलु सामान और खिलौने जैसे क्षेत्रों से 371 तरह के आयातित सामानों पर अनिवार्य रूप से प्रमाणीकरण मापदंड के प्रतिपादन की तैयारी कर रही है। भारत अन्य देशों के साथ औद्योगिक श्रृंखला सहयोग के माध्यम से भी चीन पर निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रहा है। एक तरफ़, चीन-यूएस व्यापारिक टकराव से भारत लाभ के लिए आँखें लगाए हुए है। दूसरी ओर, भारत ने आपूर्ति श्रृंखला सहयोग को मजबूत बनाते हुए चीन का बहिष्कार किया है। सितम्बर 2020 में, आपूर्ति श्रृंखला सहयोग को मजबूत करने और परिपूर्ण प्रतिस्पर्धापन को बेहतर करने पर जोर देते हुए, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत ने "आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन उपक्रम" (एससीआरआई) की शुरुआत की। वास्तव में, भारत का वर्तमान आत्मनिर्भर होने पर जोर देना चीन के घरेलू चक्र को प्रोत्साहित करने के प्रयास जैसा है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार कहा था कि (आत्मनिर्भरता) इससे विश्व की अर्थव्यवस्था पर भारत की निर्भरता कम करना और भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए नई आपूर्ति जोड़ने के योग्य बनाना है।

लेकिन स्वायत्तता और उदारता एक दूसरे के अंतर्विरोधी नहीं हैं। वर्तमान में, भारत आर्थिक संचालन में कठिनाईयों का सामना कर रहा है, अत्यधिक राजकोषीय घाटा, ब्याज दर में ऐतिहासिक कमी, और महामारी अब भी प्रभावी ढंग से नियंत्रित नहीं की जा सकना, सरकार के लिए प्रभावशाली ढंग से कार्रवाई मुश्किलें खड़ा कर रही है। ऐसी परिस्थिति में, चीनी कंपनियों और उत्पादों की एकतरफा अस्वीकृति लाभ पर भारी पड़ रहा है।

कोविड-19 महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था की गिरावट को बदतर कर दिया है। बड़ी संख्या में लघु और मध्यम उद्योग दिवालियेपन की कगार पर जद्दोजहद कर रहे हैं, और गरीबों की मूलभूत जरूरतों के प्रावधान के वादे को पूरा करना भी मुश्किल हो रहा है। राजनीतिक विचारों की वजह से भारत और चीन के बीच आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को प्रतिबंधित करने के बजाय, भारत का पहला कर्तव्य महामारी को जल्द से जल्द नियंत्रण में लाना है, जिससे लोगों का जीवन बचाया जा सके और आर्थिक बहाली संभव हो सके।

आँख मूंद कर अपनी अर्थव्यवस्था से "चीन से मुक्ति" सिर्फ उत्पादन विकास की झलक को ही नहीं बर्बाद करेगा बल्कि लोगों का जीवन और उद्यमियों के संचालन को और कठिन बना देगा। उदाहरण के लिए, भारत की भू-सीमा से जुड़े देशों से आने वाले निवेश पर प्रतिबंध लगाने से सिर्फ चीनी निवेश ही नहीं बंद होगा, बल्कि यह भारत के प्रौद्योगिक स्टार्ट-अप्स के महत्वपूर्ण निधिकरण के स्रोत बंद हो जाएंगे। पिछले कुछ सालों में, चीनी उद्यम पूंजी और प्रौद्योगिक निवेशकों ने भारत के प्रौद्योगिकी के तेज विकास को प्रोत्साहित किया है। वर्तमान में, निवेशक अपनी रूचि इंडोनेशिया जैसे देशों में बढ़ा रहे हैं और उसे विकल्प के तौर पर देख रहे हैं। इंडोनेशिया में चीनी दूतावास के आंकड़ों के अनुसार, चीन का इंडोनेशिया में निवेश 2020 के पहले नौ महीनों में 79% तक बढ़ गया है।

जीत के विकास को सहयोग की जरूरत

चीन और भारत दोनों प्रमुख विकासशील देश हैं। उनके पास एक जैसी महत्वकांक्षा और दूरदृष्टि है अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने और लोगों के जीवन में सुधार करने के लिए। वर्तमान में, चीन ने गरीबी उन्मूलन के अपने उपक्रम को पूरा कर लिया है और 14वीं पंचवर्षीय योजना (2021-2025) और साल 2035 के माध्यम से दीर्घकालीन लक्ष्यों को सामने रखा है। भारत ने भी 2017 में पंद्रह साल के विकास की परिकल्पना को आगे रखा है और साल 2022 तक गरीबी उन्मूलन का प्रयास, किसानों की कमाई को दोगुना करने, उत्पादन और सेवा उद्योगों में तेजी लाना तथा इन सबके साथ अधिक लाभ और कमाई वाली नौकरियों का निर्माण करना शामिल है।

सन् 2019 में, प्रधानमंत्री मोदी भारत को अगले पांच सालों में 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनाने का वादा किया। महामारी की वजह से वैश्विक आर्थिक मंदी के साथ, सभी देशों को कठिनाईयों को दूर करने के लिए, जीत के परिणाम हासिल करने, और बेहतर जीवन के लिए लोगों की उम्मीदों को पूरा करने में सहयोग करना चाहिए। चीन और भारत अलग-अलग संसाधनों में समृद्ध हैं और उनके पास अलग-अलग तुलनात्मक लाभ हैं, और इसलिए इनके भीतर सहयोग की अच्छी संभावनाएं हैं। चीन दुनिया के सबसे बड़े उत्पादकों में से है, एक महत्वपूर्ण उपभोक्ता बाजार, और एक प्रमुख देश जो विदेशों में निवेश कर रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से उसके घरेलू खपत से संचालित होती है। यह बहुत बड़े स्तर पर अपने खुद के बाजार और सेवा क्षेत्र पर निर्भर है।

12 सितम्बर, 2019: आठवीं छोंगछिंग अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक उद्योग प्रदर्शनी (इंटरनेशनल कल्चरल इंडस्ट्री एक्स्पो) में दिखाया जा रहा भारतीय फ़र्नीचर। आज ही के दिन, छोंगछिंग इंटरनेशनल एक्स्पो सेंटर में प्रदर्शनी की शुरुआत की गई है। (वीसीजी)

भारत से चीन कच्चा माल और प्राथमिक उत्पादों को आयात करता है, जो फिर दूसरे देशों में तैयार उत्पाद के तौर पर निर्यात किया जाता है। चीन से भारत बड़ी मात्रा में मध्यवर्ती उत्पादों और औद्योगिक उत्पादों को आयात करता है, और फार्मास्यूटिकल, ऑटोमोटिव, और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योगों के लिए चीन कच्चे मालों और उपकरणों पर निर्भर है। दोनों देशों में मूलभूत सुविधा, अक्षय ऊर्जा, दवाईयां, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, दूरसंचार, इंटरनेट, और डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे क्षेत्रों में सहयोग की बड़ी संभावनाएं है। "मेक इन इंडिया", जो गहन श्रम पर आधारित उद्योगों पर ध्यान केंद्रित करता है, चीन के विकास की परिकल्पना से कोई अलग नहीं है।

चीन और भारत के पास व्यापार के माहौल को सुधारने का अनुभव है। दोनों देश महामारी से बचाव और नियंत्रण, स्वास्थ्य से संबंधित आपूर्तियों, और वैक्सीन शोध व निर्माण पर गहराई से सहयोग कर सकते हैं। महामारी से बचाव और नियंत्रण में चीन की सफलता तथा "दोहरा आर्थिक चक्र" योजना तीव्र आर्थिक बहाली में बेहद शक्तिशाली आवेला सकता है तथा और भारत के दीर्घकालीन और पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का विकास कर सकता है। महामारी के प्रभाव के खिलाफ़, चीन इस चुनौती का सामना करने के लिए उभर के सामने आया है और अपने घरेलू सुधारों को गहरा कर दिया है। भारत के लिए भी आर्थिक सुधारों को प्रोत्साहित कर विकास के रास्ते की अड़चनों को हटाने का एक मौका है।

 

लेखक चाइनीज़ इंस्टीटूट्स ऑफ़ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशन्स में सहभागी शोधकर्ता हैं।