बेहतर भविष्य के लिए ड्रैगन-हाथी टैंगो
5 मार्च को, पेइचिंग में विचार-विमर्श के लिए चीन की शीर्ष विधायिका, 14वीं नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के पहले सत्र में एक सरकारी कार्य रिपोर्ट सौंपी गई। इसने 2023 में चीन के विकास के लिए प्रमुख लक्ष्यों का खुलासा किया।
देश का लक्ष्य लगभग 5 प्रतिशत तक अपनी अर्थव्यवस्था का विस्तार करना है, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के लिए अपने मुद्रास्फीति लक्ष्य को लगभग 3 प्रतिशत पर सेट करना, लगभग 1.2 करोड़ शहरी रोजगार सृजित करना और इस वर्ष शहरी बेरोजगारी दर को लगभग 5.5 प्रतिशत तक कम करना है। जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है, चीन सरकार ने अर्थव्यवस्था को स्थिर किया, विकास की गुणवत्ता में लगातार वृद्धि की, और 2022 में समग्र सामाजिक स्थिरता को बनाए रखा, विकास में नई और कठिन उपलब्धियों को हासिल किया।
उन लक्ष्यों का अनावरण करके, चीन सरकार अपने लोगों के लिए आर्थिक सुधार और समृद्धि में वृद्धि में अपने विश्वास का प्रदर्शन कर रही है।
भारत में, खबर उतनी खुशनुमा नहीं थी। वित्तीय वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर गिरकर 4.4 प्रतिशत पर आ गई, जो बैंक ऑफ बड़ौदा अर्थशास्त्र दल के 4.6 प्रतिशत के अनुमान से कम है। दल के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने विनिर्माण क्षेत्र में समग्र नकारात्मक वृद्धि को जिम्मेदार ठहराया, जिसने कमजोर मुनाफ़ा कमाया है। दूसरी तिमाही के नतीजे उच्च इनपुट लागत के कारण मुनाफ़े में गिरावट का संकेत देते हैं।
बढ़ती हुई जनसंख्या अधिक तीव्र विकास के लिए ईंधन उत्पन्न करेगी। भले ही भारत की जीडीपी चीन की तुलना में तेजी से बढ़ती है, यह चीनी अर्थव्यवस्था का एक अंश ही रहेगा। भारत और चीन में वैश्विक आबादी का 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है। यदि दोनों देश मिलकर काम करते हैं तो वैश्विक बाजार में उनका योगदान अद्वितीय होगा।
वास्तव में, जैसा पहले कभी नहीं हुआ, चीन और भारत दोनों देशों के बीच अच्छे संबंधों की अत्यावश्यकता को समझने लगे हैं। क्वाड में भारत की भागीदारी के बावजूद कोई भी देश नहीं चाहता कि पश्चिम एशिया के मामलों में दखल दे। भारत की जरूरतें बढ़ रही हैं क्योंकि यह पश्चिम के दबावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो गया है।
बहुत कुछ भारत पर निर्भर करते हैं। भारत को प्रशुल्क कम करना सीखना चाहिए, जैसे चीन ने अपनी उच्च इनपुट लागत को कम करने में मदद के लिए किया है। चीन ने पिछले पांच वर्षों में अपने समग्र प्रशुल्क स्तर को 9.8 प्रतिशत से 7.4 प्रतिशत तक गिरते देखा है। भारत को भी चीन के साथ व्यापार घाटे के बारे में इतनी चिंता करना बंद कर देना चाहिए, क्योंकि अधिकांश आयात दवा उद्योग के लिए कच्चा माल है जो बड़े पैमाने पर देश को निर्यात के रूप में छोड़ देता है। चीन से आयात के बिना, भारत का निर्यात लड़खड़ा जाएगा।
इस बीच, चीन से भारत की सीमा संबंधी चिंताओं के प्रति अधिक चौकस होने की उम्मीद है, आंशिक रूप से क्योंकि तनाव से स्थिति में मदद नहीं मिलती है और तथ्य यह है कि भारत की सरकार को अपने चुनावी आधार से सावधान रहना चाहिए।
दोनों देश बेहतर संबंध बनाने की दिशा में काम करने में सक्षम हैं। दुनिया की दो सबसे बड़ी आबादी का कल्याण दांव पर है। बहुत से लोग मानते हैं कि वैश्विक शक्ति का संतुलन तेजी से पूर्व की ओर बढ़ रहा है। पश्चिम को एशिया के मामलों में अपनी टाँग अड़ाने से रोकने की आवश्यकता बढ़ रही है। अच्छी खबर यह है कि भारत और चीन दोनों ने इसे महसूस कर लिया है। कई मायनों में दोनों सभ्यताओं का भविष्य भारत और चीन की आपसी समृद्धि पर निर्भर करेगा।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फ्री प्रेस जर्नल के सलाहकार संपादक हैं।