अवसरों का संपूर्ण उपयोग

साल 2023 भारत के घरेलू राजनायिकता का वर्ष है। जी-20 शिखर सम्मेलन और वार्षिक शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) सम्मेलन दोनों देशों के नेताओं को बैठक के ढेर सारे अवसर देंगे। ऐसे में इस साल द्विपक्षीय रिश्तों के प्रगतिशील होने की संभावनाएं बढ़ गयी हैं।
by चांग चातोंग
Mongolia
उत्तरी चीन के अंदरूनी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश में स्थित एक निजी खाद्य उद्यम में आलू रोपण के नमूनों की जांच करते हुए। विश्व ने हाल ही में आर्थिक मंदी का सामना किया है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, इस वर्ष चीन और भारत संयुक्त रूप से वैश्विक आर्थिक विकास के आधे विकास के लक्ष्य को पा सकेंगे। (कुओ शाशा / चीन सचित्र)

भारत और चीन के बीच का रिश्ता बेहद जटिल है। चीन-भारत रिश्तों का तर्क और आधार बदल रहा है और एक नया रिश्ता बन रहा है। दोनों देशों के विकास के लिए नई परिस्थिति नई चुनौतियों के साथ अवसर भी ला रही है। 

द्विपक्षीय रिश्तों की यथास्थिति

साल 2020 से कोविड-19 महामारी के प्रभाव और गलवान घाटी में टकराव ने चीन-भारत रिश्तों को धीरे-धीरे बिगाड़ दिया है। दोनों देशों के बीच अंतरसरकारी गतिविधियों और सैन्य बल, संस्कृति, और कई क्षेत्रों में विनिमय घट कर 40 साल पहले के स्तर पर आ गया।  

जून 2020 के गलवान घाटी टकराव से लेकर दिसंबर 2022 में भारत-चीन कॉर्प्स कमांडर स्तर की 17वीं बैठक तक दोनों पक्षों ने अभूतपूर्व रूप से कई बार सैन्य बातचीत की। इन कठिन संवादों ने कुछ हद तक आपसी सहमति बनाई और दोनों के बीच कई विषयों पर संघर्ष थोड़ा कम हुआ, जिसकी वजह से सीमा क्षेत्र में स्थिति थोड़ी स्थिर हुई। हालांकि यह चीनी-भारतीय रिश्तों को पूरी तरह से सामान्य करने में नाकामयाब रही। पिछले साल इंडोनेशिया में एससीओ के राज्य आयोग के प्रमुखों के वार्षिक शिखर सम्मेलन और जी20 शिखर सम्मेलन में चीन और भारत ने कई देशों के साथ द्विपक्षीय बातचीत की, लेकिन दोनों एशियाई पड़ोसी एक-दूसरे से प्रत्यक्ष रूप से नहीं मिले। साल 2022 में जी20 शिखर सम्मेलन में भारत और चीन के नेता बेहद थोड़े समय के लिए एक दूसरे से बातचीत की, लेकिन कोई औपचारिक द्विपक्षीय संवाद नहीं आयोजित किया गया।   

भारत अब भी सीमा प्रश्न को चीन-भारत रिश्तों के लिए निर्धारक मानता है। नई दिल्ली का मानना है कि सीमा प्रश्न को सफलतापूर्वक हल करने के बाद ही चीन-भारत रिश्ते स्वस्थ विकास की राह पर चल पायेंगे। भारत के विदेश मामलों के मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर स्पष्ट रूप से कह चुके हैं कि भारत-चीन रिश्तों की स्थिति पर सीमा प्रश्न पर निर्भर है। भारत द्वारा सीमा प्रश्न को निर्णायक कारक बताना यह सुझाता है कि द्विपक्षीय संबंधों को दोबारा ठीक करना मुश्किल होगा।  

भारत एक रणनीति के तहत चीन के विरुद्ध जाकर अमेरिका और पश्चिम से अपने रणनीतिक सहयोग को मजबूत कर रहा है। पिछले कुछ सालों में भारत ने सक्रियता से अमेरिका के साथ अपनी रणनीतिक भागीदारी विकसित की, क्वाड सुरक्षा संवाद जैसी इंडो-पसिफ़िक रणनीति, और जापान व ऑस्ट्रेलिया के साथ आधुनिक सैन्य सहयोग जैसे मंचों में हिस्सा लिया। जनवरी 2023 में भारत और जापान ने पहली बार अपना संयुक्त लड़ाकू जेट अभ्यास किया। भारत की विदेश नीति में बदलाव ने चीनी-भारतीय रिश्तों को नुकसान पहुंचाया और रणनीतिक आपसी विश्वास को और कमजोर किया। 

 नई दिल्ली ने चीनी कपंनियों को लक्ष्य बनाया। भारत ने चीनी कंपनियों पर श्रृंखलाबद्ध तरीके से कार्रवाई की। जिसकी वजह से चीनी कंपनियों के सामान्य उत्पाद और संचालन के लिए खतरा बन गया है। जून 2020 से फरवरी 2023 तक भारत ने कुल 414 चीनी एप्स को प्रतिबंधित किया। अगस्त 2020 से संबंधित विभागों ने भारत में काम कर रही चीनी कंपनियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक दुराचार, कर की चोरी और अवैध धन लेनदेन के नाम पर अक्सर छापे मारे और प्रतिबंध लगाए। जेडटीई, हुआवेई, वीवो और ओप्पो को बहुत भारी नुकसान हुआ। इन भेदभाव भरी कार्रवाइयों ने दोनों लोगों के बीच के अपनेपन को नुकसान पहुंचाया।

द्विपक्षीय व्यापार चीनी-भारतीय रिश्तों में से एक है। चीन के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ़ कस्टम्स के आंकड़ों के अनुसार, चीन और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार साल 2021 में पहली बार 1 खरब यूएस डॉलर को पार करते हुए 1.26 खरब यूएस डॉलर पहुंच गया। वहीं 2022 में यह आंकड़ें लगभग 1.36 खरब यूएस डॉलर के साथ रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। लेकिन इन वृद्धियों ने रिश्तों के सुधार में बहुत कम योगदान किया। साल 2022 में चीन से भारत में निर्यात 1.19 खरब यूएस डॉलर के पार चला गया जो कि 2021 में 97.5 अरब यूएस डॉलर से 20 फीसदी अधिक है। वहीं चीन भारत से चीन में होने वाला निर्यात 2021 में 28.14 अरब यूएस डॉलर से कम होकर 2022 में 17.48 अरब यूएस डॉलर हो गया। इसके परिणामस्वरूप, दोनों के बीच आर्थिक और व्यापार रिश्ते कम संतुलित दिखते हैं। ऐसे में द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग का उपयोग संबंधों को सुधारने में करना कठिन हो गया। 

दोनों देश जानते हैं कि उनके वर्तमान रिश्ते अहम मोड़ पर हैं जहां तुरंत बदलाव की आवश्यकता है। सितंबर 21, 2022 को सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने न्यू यॉर्क शहर के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में कहा कि भारत और चीन का एक-दूसरे के साथ सामंजस्य बिठाना दोनों के हित में है। चीन के साथ रिश्तों को पहले जैसा करना भारतीय राजनैतिकता का प्रमुख मुद्दा है। दिसंबर 5, 2022 को जर्मन विदेश मंत्री अन्नालेना बैरबौक के साथ एक प्रेस कांफ्रेंस में जयशंकर ने कहा कि भारत वैश्विक रिश्तों में चीन को बतौर भागीदार सम्मान करता है और पड़ोसी के साथ सहयोग को अधिक बढ़ाना चाहते हैं। 

मार्च 7, 2022 को 13वें नेशनल पीपल्स कांग्रेस के पांचवें सत्र के दौरान पूर्व चीनी विदेश मंत्री और विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि चीन-भारत रिश्तों में हाल की बढ़ाएं दोनों में से किसी के भी मूलभूत हितों के लिए फायदेमंद नहीं है। हालांकि, चीनी और भारतीय नौकरशाहों की प्रतिक्रियाओं का रिश्तों में सुधार को लेकर प्रोत्साहन नहीं दिखा। 

केंद्रीय विशेषताएं

यद्यपि चीनी-भारत रिश्ते पिछले दो सालों से तूफान का सामना कर रहे हैं, मूल गुण में बदलाव नहीं आया है। दोनों ही प्रमुख देश हैं जिसकी वजह से चीन-भारत संबंध सहज रूप से कई अन्य द्विपक्षीय रिश्तों का बोझ उठा पाते हैं। चीन-भारत संबंध रणनीतिक तौर पर अधिक महत्वपूर्ण, संवेदनशील और सामान हैं। भौगोलिक करीबी के चलते का शताब्दियों पुराना संवाद रहा है। इतिहास में दोनों के बीच धार्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय विनिमय निरंतर रहा है और राजनीतिक संवाद थांग राजवंश (618-907) से चला आ रहा है। इसलिए दोनों के रिश्ते अनोखे हैं और न कि आसानी से नष्ट नहीं होगा। यह चीन-अमेरिका या अमेरिका-भारत के रिश्तों से काफी भिन्न है। चीन और भारत दोनों विकासशील देश हैं। रणनीतिक युद्धाभ्यास के बजाय विकास, विशेष रूप से आर्थिक उन्नति दोनों के राष्ट्रीय रणनीति का प्रमुख लक्ष्य हैं।  

एक जैसे विकास के लक्ष्य सैन्य टकराव और रणनीतिक अस्थिरता मुख्य लक्ष्य से काफी दूर हैं और द्विपक्षीय रिश्तों को संभालने का पसंदीदा तरीका है। दोनों पक्ष एक अहम रणनीतिक सहमति पर आ गये हैं कि उन्हें अब अपना विवाद शांतिपूर्ण ढंग से हल करना चाहिए। संबंधों के माध्यम से विकास लक्ष्य को पूरा करें। यद्यपि चीन-भारत रिश्तों के तीन बुनियादी हिस्से बदले नहीं हैं, चीन और भारत के चरित्र बतौर प्रमुख देश 21वीं शताब्दी में अधिक अहम हो गए हैं। विशेष रूप से पिछले दशक में। इस उद्भव ने चीनी-भारतीय संबंधों को ठीक करने में प्रमुख किरदार निभाया है। दोनों देशों का रिश्ता पहले बतौर पड़ोसी और दो विशाल विकासशील देशों का है। पड़ोसी देशों के लिए भू विवाद बेहद आम बात है।

सात दशक से भी पहले जब दोनों देशों ने कूटनीतिक रिश्ते स्थापित किए तब भी सीमा प्रश्न बेहद अहम् मुद्दा था। बतौर एक विकासशील देश का जोड़ा दोनों शीत युद्ध के दौरान तीसरी दुनिया के देशों के लिए साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के खिलाफ खड़े हुए। इन समानताओं की वजह से दोनों देशों ने 1950 और 1960 के दशक में गुटनिरपेक्ष आंदोलन को बढ़ावा देने और बांडुंग सम्मेलन की शुरुआत में एक साथ काम किया।

हालांकि, शीत युद्ध के बाद के समय में विशेष रूप से 21वीं शताब्दी के दौरान चीनी-भारत रिश्तों के प्रमुख मुद्दों की तत्कालीनता बदल गई। जब दोनों देश अंतरराष्ट्रीय मंच पर आये द्विपक्षीय रिश्तों में भूगोलिक करीबी का महत्व घट गया और चीन व भारत की पड़ोसी देश की परिभाषा अलग हो गयी है। चीन ने पड़ोस की नयी कूटनीति अपनायी, वहीं भारत अब क्षेत्र से बाहर के देश अमेरिका और जापान को अब बाहरी नहीं मानता। शीत युद्ध के अंत के बाद तीसरी दुनिया का राजनीतिक महत्व धीरे-धीरे ख़त्म हो गया और सिर्फ "विकासशील देश" की अवधारणा रह गयी है। इस बीच, दोनों देशों के सामानांतर उदय और तेज आर्थिक विकास ने चीनी-भारतीय रिश्तों का केंद्र बना। 

आर्थिक परिपेक्ष्य में देखें तो, 2000 में चीन की जीडीपी 12 खरब यूएस डॉलर के साथ विश्व में छठी सबसे बड़ी थी, वहीं भारत 4.77 खरब यूएस डॉलर के साथ 13वें स्थान पर था। दोनों की संयुक्त जीडीपी जर्मनी से भी कम, जापान के आधे से भी कम और अमेरिका की 20 फीसदी से भी कम थी। साल 2022 में, चीन की जीडीपी विश्व में दूसरे स्थान पर है और अमेरिका से काफ़ी करीब है जबकि यूनाइटेड किंगडम को पीछे छोड़ते हुए भारत पांचवें स्थान पर है। चीन और भारत की संयुक्त जीडीपी जर्मनी से 4.5 गुना ज्यादा, जापान से 3.4 गुना और अमेरिका की 83 फीसदी के बराबर है।

चीन और भारत पहले से ही विश्व अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं। सैन्यबल के मामले में भी चीन और भारत सबसे अधिक तेजी से बढ़ने वाले देश हैं। चीन और भारत ने सैन्यबलों ने सैन्य उपकरणों और बेहतर रणनीतिक क्षमता में स्थानीय दर में तीव्र तेजी देखी है।  आर्थिक और सैन्य क्षमताओं में बढ़ोतरी के साथ दोनों के राष्ट्रीय गर्व में भी तेजी से विकास हुआ है। यह दोनों को अपनी विदेश नीतियों में समन्वय करने की ओर ढकेल रहा है। चीन ने चीनी चरित्र के साथ देश-कूटनीति का उपयोग किया है, जिसका उपयोग वह अपने विकास के लिए अनुकूल अंतरराष्ट्रीय माहौल का निर्माण कर सके। भारत भी अपने स्वंय के महान-शक्ति रणनीति को लेकर आया है और उसने चीन पर रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने की नीति को बदल कर रणनीतिक अगुवाई के पालन का फैसला किया।

 

2023 के प्रचलन

 

वर्तमान में चीन-भारत के संबंधों में परस्पर पूरकता की कमी ने उनके रिश्ते में हल्कापन ला दिया है। हालांकि दोनों देश एक दूसरे से रणनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में तीक्ष्ण प्रतिस्पर्धा नहीं रखते, ऐसे में दोनों पड़ोसियों के लिए अप्रत्यक्ष रणनीतिक टकराव की संभावना असंभव है। लंबे समय तक लोगों ने सायनो-भारतीय रिश्तों को लोगों ने "उतना अच्छा नहीं या बुरा भी नहीं" बोलकर परिभाषित किया। साल में 2020 में गलवान घाटी घटना के बाद लोगों को यह संशय हुई कि क्या पारंपरिक अवधारणा अब भी लागू है। अब लगभग तीन साल बाद ऐसा प्रतीत होता है कि गलवान घाटी जैसी घटनाएं चीनी-भारतीय रिश्तों के स्वाभाव व बुनियाद को मूलभूत रूप से बदल नहीं सकते।

पहला, चीन-भारत के रिश्ते अब भी बदलाव और पुनर्निर्माण के चरण में होने की वजह से अनिश्चितताओं से भरे हैं। दोनों देश तेजी से विकास कर रहे हैं और विश्व एंव उनके स्वंय के बारे में उनकी समझ निरंतरता से बदल रही है। वे अब भी एक-दूसरे के साथ आगे बढ़ने के रास्ते ढूंढ़ रहे हैं। एक बड़े देश के उदय विश्व और उसके स्वंय के लिए एक चुनौती है। ऐसे में एक साथ कई ताकतों का उदय अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में खतरा और जटिलता बढ़ा देगा। कुछ अन्य तरीकों में एक-दूसरे के साथ आना आत्म-अवधारणा बनाने की तुलना में कठिन हो सकता है। 

दूसरा, चीन और भारत के अंतरराष्ट्रीय रणनीति में सह-अस्तित्व के कई अवसर हैं। यद्यपि चीन और भारत एक साथ विश्व मंच पर आगे बढ़ रहे हैं, उनके शुरुआती बिंदु और लक्ष्य अलग-अलग हैं। यह चीन की अंतरराष्ट्रीय रणनीति और भारत की क्षेत्रीय रणनीति के सह-अस्तित्व के लिए वास्तविक संभावना तैयार कर रहा है। चीन की नज़र विश्व क्रम पर है और वह बहु-ध्रुवीकरण और जनतांत्रिक अंतरराष्ट्रीय क्रम के निर्माण को लेकर समर्पित है। भारत को चीन के अंतरराष्ट्रीय लक्ष्यों से कोई आपत्ति नहीं है,

क्योंकि उसके विचार भी ऐसे ही हैं। रणनीतिक तौर पर, भारत का ध्यान एशिया पर है और उसका रणनीतिक लक्ष्य क्षेत्रीय है। वह स्वंय को केंद्र में रखकर एशिया में बहु-ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रहा है। इसलिए, दोनों देशों के लिए क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सह-अस्तित्व और प्रतिस्पर्धा के बहुत सारे अवसर हैं। 

तीसरा, चीन और भारत के सीमा क्षेत्रों में संघर्ष और संवाद नए सिरे से चीनी-भारतीय रिश्तों के लिए स्थिति का निर्माण कर रहे हैं। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के कुछ विवादित क्षेत्रों में दोनों देशों के सैन्य बलों की तैनाती के साथ कॉर्प्स कमांडर स्तर की बैठकें बढ़ती जा रही हैं। अतीत में, इन बैठकों का प्रमुख उद्देश्य विवादित क्षेत्रों में गतिरोध तोड़ना और शांति व स्थिरता को दोबारा स्थापित करना था। लेकिन अब इन बैठकों का काम एलएसी को जांचना और कभी-कभी रेखा के बजाय एक क्षेत्र या इलाके को सत्यापित करता है।

इसका यह अर्थ है कि चीन और भारत के बीच सीमा प्रश्न को संवाद के जरिये विवाद को हल करने का एक नया तरीका आ गया है। ज्यादा से ज्यादा चीनी-भारतीय सीमा क्षेत्र वास्तव में गैर-विवादित और कम-विवादित क्षेत्र बन जायेंगे। यह भविष्य में टकराव के मौकों को कम करेगा और सीमा क्षेत्र में संवेदनशीलता लेकर आएगा। यह दोनों के रिश्तों को लंबे समय के लिए स्थिर करने में सकारात्मक कारक है।

चौथा, चीन-भारत रिश्तों के लिए 2023 में सुधार के लिए अवसर आ रहे हैं। जनमत के नजरिये से देखें तो दोनों देशों ने एक-दूसरे को सबसे महत्वपूर्ण और तत्काल खतरा कभी नहीं माना है। यह दिखता है कि जनमत की बुनियाद दोनों देशों के बीच फ़िलहाल ठोस नहीं है लेकिन रिश्ता स्थिर है तथा और अधिक ख़राब नहीं होगा। साल 2023 भारत की घरेलू कूटनीति का वर्ष है। 

भारत जी20 और एससीओ  शिखर सम्मेलनों की मेजबानी करेगा। दोनों ही अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम हैं। रूस-यूक्रेन संघर्ष, ऊर्जा सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय वित्त जैसे प्रमुख विषयों पर चीन और भारत सहमति रखते हैं। यह दोनों सम्मेलन दोनों देशों के नेताओं को बैठकों का अवसर प्रदान करेगा। इसलिए, 2023 में चीन और भारत के संबंधों में सुधार की अधिक संभावना है।

 

 

लेखक फुतान यूनिवर्सिटी के सेण्टर फॉर साउथ एशियन स्टडीज के प्राध्यापक और निदेशक हैं।