कोविड-19 के बाद भारत-चीन संबंधों के लिए रचनात्मक दृष्टिकोण

पिछले आर्थिक क्रियाकलापों में कमियों का पता लगाना भारत और चीन के लिए एक अच्छे शुरुआती बिंदु के रूप में काम कर सकता है, जिससे कोविड-19 के बाद के युग में संभावित तालमेल बन पाएगा।
by संतोष पाई
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भारत के चेन्नई शहर में, मास्क की मूर्ति के साथ फ़ोटो खिंचाते हुए स्वास्थ्य कर्मचारी। नए साल के जश्न के दौरान भीड़ इकट्ठा होने से रोकने के लिए, भारत के कुछ राज्यों नें सख्त पाबंदियाँ लगाईं, ताकि कोविड-19 को फैलने से रोका जा सके। (शिन्हुआ)

वर्ष 2020 दुनिया भर में अभूतपूर्व चुनौतियों से भरा रहा। साथ ही, भारत-चीन द्विपक्षीय संबंध भी कठिनाइयों से गुजरे। संयुक्त प्रभाव ने भारत और चीन दोनों देशों के अपने आर्थिक नीति निर्धारण के जोर को अंदर की ओर स्थानांतरित कर दिया। इन दो एशियाई दिग्गजों की जनसांख्यिकीय विशेषताएं अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के सापेक्ष उनके आर्थिक सुधारों के लिए एक बड़ी वृद्धि के रूप में काम कर सकती हैं। राजनीतिक तनावों के बावजूद, देखना यह है कि क्या कोविड-19 के बाद के युग में, भारत और चीन के बीच आर्थिक क्रियाकलापों के एक नए मॉडल की संभावनाएं हैं, जो अपने संबंधित समाजों को लाभान्वित करेगा? 2020 के दौरान दोनों देशों में प्रमुख नीतिगत घोषणाओं से कुछ तालमेल का पता चलता है जिसका लाभ उठाया जा सकता है।

रूपरेखा का प्रतिचित्रण

भारत सरकार ने "आत्मनिर्भर भारत अभियान" की घोषणा एक श्रृंखला के माध्यम से शुरू की: 1. लघु व्यवसाय (एमएसएसईज, यानी सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम सहित); 2. गरीबी आबादी (प्रवासियों और किसानों सहित); 3. कृषि; 4. विकास के नए क्षितिज (औद्योगिक आधारभूत संरचना, खनन, रक्षा, विमानन, ऊर्जा और अंतरिक्ष सहित); और 5. सरकारी सुधार और समर्थन (रोजगार, स्वास्थ्य, व्यवसाय में आसानी और राज्य सरकारों को समर्थन)। एक आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए पाँच प्रमुख स्तंभ हैं- अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढाँचा, प्रणाली, जनसांख्यिकी, और माँग।

भारत ने 200 खरब रुपये के एक विशेष व्यापक आर्थिक पैकेज की भी घोषणा की जो कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 10 प्रतिशत के बराबर है। नियामक मोर्चे पर, कृषि आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित करने के लिए सुधार किए गए, कर कानूनों को नियमित किया गया, कानूनी अनुपालन मांगों को सरल बनाया गया, श्रम की उत्पादकता में वृद्धि की गई और वित्तीय क्षेत्र को मजबूत किया गया।

विनिर्माण क्षेत्र के विस्तार को प्राथमिकता दी गई है। परिणामी लाभ जैसे कि रोजगार सृजन, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह में वृद्धि, आयात पर निर्भरता में कमी और वैश्विक निर्यात में वृद्धि से वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की स्थिति मजबूत होने की उम्मीद है। भारत द्वारा उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं के अनावरण में 10 क्षेत्रों को सम्मिलित किया गया- उन्नत बैटरियां, इलेक्ट्रॉनिक/ प्रौद्योगिकी उत्पाद (सेमीकंडक्टर फैब, डिस्प्ले फैब, लैपटॉप, सर्वर, आईओटी यंत्र और निर्दिष्ट कंप्यूटर हार्डवेयर सहित), ऑटोमोबाइल और ऑटो घटक, फार्मास्युटिकल दवाएं, दूरसंचार उत्पाद (कोर ट्रांसमिशन उपकरण सहित), कपड़ा उत्पाद, खाद्य उत्पाद, उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल, एयर-कंडीशनर और एलईडी जैसे सफेद वस्तुएं, और विशेष इस्पात उत्पाद (जैसे लेपित स्टील, उच्च क्षमता स्टील, स्टील छड़ें, और मिश्र धातु इस्पात सलाखें व छड़ें)। इन योजनाओं में पांच साल की अवधि में 1,45,980 करोड़ रुपये का परिव्यय होगा। ये उन क्षेत्रों के अतिरिक्त हैं जहां पीएलआई योजनाएं पहले से ही संचालित थीं जैसे कि मोबाइल यंत्र विनिर्माण और निर्दिष्ट इलेक्ट्रॉनिक घटक, महत्वपूर्ण शुरुआती सामग्री/ मध्यवर्ती दवाएं और सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री, और चिकित्सा उपकरणों का निर्माण।

चीन ने अपनी 14वीं पंचवर्षीय योजना तैयार करने और 2035 देश के विकास का खाका तैयार करने के लिए प्रस्तावों का अनावरण किया। प्रस्तावों में 60 प्रमुख बिंदुओं को 15 भागों में उल्लिखित किया गया। परिवर्तन के चार महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं- स्वायत्त प्रौद्योगिकियां, शहरीकरण के नए तरीके, सार्वजनिक सेवाओं का संतुलित प्रावधान और हरित उत्पादन। स्वायत्त प्रौद्योगिकियों पर जोर देने से प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अमेरिका पर निर्भरता को कम करने में मदद मिलेगी। वर्ष 2035 तक शहरीकरण दर 75 से 80 प्रतिशत तक पहुंचने की उम्मीद के साथ, चीन पूरे देश में आर्थिक गतिविधियों के वितरण को बदलने के लिए पर्याप्त सुधारों को लागू करेगा। अगले 15 वर्षों में आधुनिकीकरण को आगे बढ़ाने का चीन का उद्देश्य सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र को भी बढ़ाएगा। समग्र मांग में वृद्धि जारी रहने से देश के ऊर्जा मिश्रण में भी समान परिवर्तन होगा। इन सभी रुझानों से निर्विवाद रूप से वस्तुओं और सेवाओं की मांग को बढ़ावा मिलेगा जिनकी पूर्ति चीन में घरेलू प्रदाता अकेले करने में सक्षम नहीं हो सकेंगे। इससे उन विदेशी कंपनियों को फायदा मिलेगा जो चीन की गहरी समझ और चीनी उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को भली-भांति समझती हैं।

चीन ने तकनीकी नवाचार, औद्योगिक विकास, घरेलू बाजार, गहन सुधार, ग्रामीण पुनरुद्धार, क्षेत्रीय विकास, सांस्कृतिक निर्माण, हरित विकास, खुलापन, सामाजिक निर्माण, सुरक्षा विकास और राष्ट्रीय रक्षा निर्माण सहित विकास के अगले चरण के लिए कई प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की है। घरेलू परिसंचरण को मुख्य आधार बनाते हुए एक नए विकास प्रतिमान को अपनाया गया है। यह पिछले 30 वर्षों में चीन के वैश्विक अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय संचलन पर अधिक ध्यान देने के बदलाव को दर्शाता है। अब यह आशा की जाती है कि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय परिसंचरण एक दूसरे को सुदृढ़ करेंगे। इस दृष्टि से, भारत और अन्य देश चीन के साथ अपने आर्थिक क्रियाकलापों को अनुकूलित कर अधिकतम लाभ हासिल कर पाएंगे।

31 दिसम्बर, 2020: भारत की नई दिल्ली में नए साल की सजावट का सामान लगाता हुआ एक विक्रेता। (शिन्हुआ)

सहक्रियता की खोज

पिछले आर्थिक क्रियाकलापों में कमियों की जांच करना भारत और चीन के लिए एक अच्छे शुरुआती बिंदु के रूप में काम कर सकता है, जो कि कोविड-19 के बाद के युग के लिए संभावित तालमेल का पता लगा सकता है। द्विपक्षीय व्यापार की संरचना एक ऐसा ही कदम है। वर्ष 2019 में 93 अरब अमेरिकी डॉलर के वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार की मात्रा में भारत को 75 अरब अमेरिकी डॉलर का चीनी निर्यात और चीन को 18 अरब अमेरिकी डॉलर का भारतीय निर्यात शामिल है। भारत के व्यापार घाटे की अनियंत्रित वृद्धि एक दशक से अधिक समय से द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण बिंदु बना हुआ है। वर्ष 2020 की शुरुआत से, भारत के घरेलू विनिर्माण को बढ़ाकर और चीन की घरेलू खपत में युगपत विस्तार कर आयात पर निर्भरता कम करने की खोज दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन को कम करने के लिए एक अभूतपूर्व अवसर प्रदान कर सकता है। चीन में घरेलू खपत का विस्तार भारतीय कंपनियों के लिए आईटी सेवाओं, दवाइयों, उपकरणों, कृषि उत्पादों और कच्चे माल में बाजार के अवसरों में बदल जाएगा। इसी प्रकार, भारत में घरेलू विनिर्माण पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने से चीनी निर्यातकों को चीन से निर्मित उत्पादों के निर्यात के बजाय भारत में अपने विनिर्माण को और अधिक स्थानीय बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं का पुनर्व्यवस्थापन भी भारतीय और चीनी कंपनियों के बीच सहयोग के अवसर पैदा करेगा क्योंकि दोनों देशों में आपूर्ति श्रृंखलाएं अपने वैश्विक ग्राहकों की जरूरतों के अनुकूल हैं।

निवेश प्रवाह का पुनर्व्यवस्था एक अन्य डोर है जिसे पारस्परिक लाभ के लिए अपनाया जा सकता है। भारत में चीनी कंपनियों का निवेश 2014 के बाद से व्यापक रूप से विविध क्षेत्रों में बढ़ा है। हालांकि, इस अवधि में विनिर्माण और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों को कमतर आंका गया, जिससे भारत को बहुत निराशा हुई। कोविड-19 के बाद का युग इस असंतुलन को सुधारने का अवसर प्रस्तुत करता है। भारत में घरेलू क्षमता की कमी वाले क्षेत्रों में विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने की चाहत रखने वाली चीनी कंपनियां बहुत आवश्यक कार्य उत्पन्न कर सकती हैं जो आर्थिक सुधार में सहायता करेंगी, वहीं आयात पर भारत की निर्भरता को कम करेंगी। बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में बहुपक्षीय संस्थानों जैसे एशियाई इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) और न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) के माध्यम से चीनी पूंजी को भी भारत के बुनियादी ढांचे के घाटे को पाटने और दीर्घकालिक आर्थिक विकास का समर्थन करने में मदद मिलेगी।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य सेवा, गतिशीलता, नवीकरणीय, रसद, और उच्च तकनीक वाले इलेक्ट्रॉनिक्स में सहयोग बढ़ाने से भारत अपने विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करने के प्रयासों में वृद्धि करेगा। आत्मनिर्भरता की पहल का लाभ उठाने की चाहत रखने वाली भारतीय कंपनियों को आयात पर निर्भरता को कम करने और घरेलू आपूर्ति श्रृंखलाओं में रिक्तता को भरने के लिए कई क्षेत्रों में चीन की प्रौद्योगिकी की आवश्यकता होगी।

चीन के साथ भारत की भौगोलिक निकटता एक और अप्रयुक्त डोर है। दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में चीन की स्थिति और घरेलू खपत को बढ़ाने के अपने प्रयासों से वैश्विक महत्वाकांक्षा वाली भारतीय कंपनियों को अवसर मिलेंगे। क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) ऐसा सुनहरा मौका है जिससे किसी भी सदस्य देश में भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशी निवेश किया जा सकता है, यदि वे चीन के घरेलू बाजार का फायदा उठाना या दक्षिण-पूर्व एशिया में विस्तार करने वाली आपूर्ति श्रृंखलाओं में खुद को निहित करना चाहते हैं। सदस्य देश न होने के बावजूद भारतीय कंपनियों को आरसीईपी के लाभ से रोका नहीं जा सकता।

भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशी सूची की अनुमति देने के संबंध में भी विकास हुआ है। इसका परिणाम यह हो सकता है कि भारतीय स्टार्टअप (भारत के कम से कम आधे हिस्से को चीन से निवेश प्राप्त हुआ) आईपीओ के लिए सिंगापुर, हांगकांग या शांगहाई का रूख कर सकते हैं। इन क्षेत्राधिकारों में खुदरा निवेशक भारत और चीन जैसे विकासशील देशों में डिजिटल खपत के रुझान की संभावनाओं की बेहतर सराहना के कारण भारतीय इंटरनेट कंपनियों को उच्च मूल्यांकन दे सकते हैं। इससे भारतीय कंपनियों को विदेशी स्वामित्व से उत्पन्न चिंताओं या भारत में निजी असूचीबद्ध संस्थाओं के नियंत्रण की भी अनुमति मिल जाएगी।

ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां आर्थिक संबंधों के साथ-साथ द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, मीडिया और पर्यटन में बेहतर सहयोग भारतीयों और चीनी लोगों के बीच मजबूत सांस्कृतिक संबंध स्थापित करने में मदद कर सकता है, जो ऊपर वर्णित तालमेल को साकार करने के लिए आवश्यक है। सिनेमाघरों में बॉलीवुड फिल्मों की रिलीज के अलावा चीन में ऑनलाइन सामग्री की बढ़ती मांग इंडियन ओटीटी (ओवर द टॉप) सामग्री के लिए अधिक उदार लाइसेंसिंग शासन के माध्यम से लाभ पहुंचा सकती है। कोविड-19 टीके प्रचलित होने के साथ, दोनों देशों के बीच यात्रा की मांग को पूरा करने के लिए यात्रा प्रतिबंधों में ढील दी जा सकती है।

दोनों सरकारें जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद जैसे वैश्विक मुद्दों पर सहयोग जारी रख सकती हैं। शहरीकरण के प्रबंधन में चीन का अनुभव भारत के लिए उपयोगी हो सकता है और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी मानव प्रतिभा का पोषण करने में भारत का अनुभव चीन की मदद कर सकता है। इन स्पष्ट और प्रत्यक्ष अवसरों के अलावा, द्विपक्षीय सहयोग के लिए बहुत सारे अवसर होंगे क्योंकि दोनों देश न्यू नॉर्मल के अनुकूल हैं। चाहे जो भी विचार विकसित हों, कोविड-19 के बाद के युग में भारत-चीन संबंधों को आकार देने के लिए आशावादी होना बेहद जरूरी है। यदि कोविड-19 महामारी एशिया की ओर वैश्विक शक्ति में बदलाव की बढ़ोतरी का प्रतीक है, तो यह मानवता के लिए अति आवश्यक है कि भारत और चीन दोनों समान माप में इस तरह के बदलाव से लाभान्वित हों।

(लेखक लिंक लीगल इंडिया लॉ सर्विसेज में एक भागीदार हैं)