बीसीआईएम पर क्यों झिझकता भारत?

बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक कॉरिडोर (बीसीआईएम) चीन के खुनमिंग से प्रस्थान होकर म्यांमार, पूर्वोत्तर भारत, बांग्लादेश से गुजरकर भारत के कोलकाता तक जाने वाले यातायात बुनियादी संरचनाओं के निर्माण और आर्थिक व्यापारिक सहयोग की पहल है। दक्षिण पश्चिम चीन, पूर्वोत्तर भारत, म्यांमार और बांग्लादेश अपेक्षाकृत अविकसित है। यदि राष्ट्रीय स्तर का आर्थिक कॉरिडोर का निर्माण होता है, तो विभिन्न पक्षों की श्रेष्ठताओं की आपसी आपूर्ति के लिए लाभदायक होगा, ताकि उचित अंतर्राष्ट्रीय श्रम विभाजन पैदा हो सके, उद्योगों का ढांचागत बंदोबस्त किया जा सके और विभिन्न पड़ोसी क्षेत्रों के आर्थिक विकास की गति को तेज़ किया जा सके। यदि बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक कॉरिडोर का निर्माण पूरा होता है, तो दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया और पूर्वी एशिया के तीनों क्षेत्रों के संयुक्त आर्थिक विकास को आगे बढ़ाया जा सकेगा।
देर से आया तीसरा कार्य दल का सम्मेलन
बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार क्षेत्र का आर्थिक सहयोग 20वीं शताब्दी के 90 के दशक के अंत में चीन के युन्नान प्रांत के शिक्षाविदों द्वारा पेश किया गया था, जिसे बांग्लादेश, भारत व म्यांमार तीन देशों के शिक्षाविदों की सक्रिय प्रतिक्रिया मिली। 2013 के मई माह में चीनी प्रधानमंत्री ली खछ्यांग की भारत यात्रा के दौरान औपचारिक रूप से बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांमार आर्थिक गलियारे का निर्माण करने की योजना पेश की। दोनों पक्षों ने एक स्वर में मंजूरी दी कि वे औद्योगिक उद्यान क्षेत्र, बुनियादी संरचनाओं आदि परियोजनाओं में सहयोग करेंगे, साथ मिलकर बीसीआईएम का निर्माण करेंगे और चीन-भारत दो बड़े बाजारों के घनिष्ठ जोड़ को आगे बढ़ाएंगे। भूतपूर्व भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बीसीआईएम पर सक्रिय प्रतिक्रिया दी। इस योजना की प्रक्रिया पर सलाह मश्विरा करने के लिए भारतीय विदेश मंत्रालय ने तुरंत तदनुरूप कार्य दल का गठन किया।
बीसीआईएम के संयुक्त कार्य दल की पहली बैठक 2013 के दिसम्बर माह में चीन के खुनमिंग शहर में सफलतापूर्ण रूप से बुलायी गयी। चार देशों ने साझा विकास और साझा निर्माण और पिछड़े क्षेत्रों के लिए विकास व सहयोग के मंच की खोज करने की सहमति प्राप्त की। 2014 के दिसम्बर माह में संयुक्त कार्य दल की दूसरी बैठक बांग्लादेश के कोक्स बाजार(Cox’s Bazar)में बुलायी गयी। चार देशों ने आपसी संबंध व संपर्क, ऊर्जा, पूंजी निवेश, कार्गो व सेवा व्यापार और व्यापार के सुविधाकरण, अनवरत विकास, गरीबी उन्नमूलन, मानव संसाधन और मानव आदान-प्रदान जैसे अहम क्षेत्रों पर सहयोग किया और प्रणाली निर्माण को आगे बढ़ाने की कल्पना पर विचार-विमर्श किया और बीसीआईएम के निर्माण को तेज़ करने का वचन दिया। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि 2015 के उत्तर्राद्ध में भारत को कोलकाता में संयुक्त कार्य दल की तीसरी बैठक बुलाने का निर्णय लिया गया। मौके पर चार देशों के संयुक्त अनुसंधान रिपोर्ट के जरिए चार देशों की सरकारों के बीच सहयोग प्रणाली की स्थापना पर सलाह मश्विरा किया गया।
लेकिन इस साल 25 अप्रैल को कार्य दल की तीसरी बैठक कोलकाता में बुलायी गयी। चार देशों ने अपने देश की सरकार के बीसीआईएम के निर्माण लक्ष्य, तरीके, सिद्धांत और कार्यकारिणी प्रणाली आदि मुद्दों पर रिपोर्टें दीं और सहमति भी प्राप्त की। कार्य दल की चौथी बैठक 2018 में म्यांमार में बुलायी जाएगी। मौके पर बीसीआईएम के बारे में अंतिम अनुसंधान रिपोर्ट पूरी होगी। चीन को आशा थी कि कोलकाता बैठक में अंतिम रिपोर्ट पूरी हो जाएगी। चीन ने दूसरी बैठक में संपन्न समझौते के मुताबिक “बीसीआईएम के चार देशों की सरकारों के बीच सहयोग प्रणाली के सुझाव” की तैयारी की, लेकिन इस मसौदे पर विचार विमर्श नहीं किया जा सका। वास्तव में इस बैठक में कोई भी यथार्थ प्रगति प्राप्त नहीं हो सकी।
बीसीआईएम पर यथार्थ प्रगति न मिलने के कारण के सिलसिले में मैंने अनेक बार बांग्लादेश, भारत व म्यांमार के विद्वानों व सरकारी अधिकारियों से बातचीत की। भारतीय विद्वानों का मानना है कि म्यांमार में राजनीतिक परिस्थिति की अस्थिरता और म्यांमार सरकार के असक्रिय रुख और बांग्लादेश व म्यांमार के सीमांत विवाद और शरणार्थी समस्याओं ने कॉरिडोर के विकास पर बाधा पहुंचाई है। जबकि बांग्लादेश व म्यांमार के विचार अपेक्षाकृत बराबर है। वे स्पष्ट या अस्पष्ट रूप से भारत की निंदा करते हैं कि भारत की वजह से इसे स्थगित किया जाता है। मेरे सर्वेक्षण के मुताबिक भारत की कथनी सही है और बांग्लादेश व म्यांमार के बीच समस्या मौजूद है। लेकिन बीसीआईएम के प्रति बांग्लादेश का रुख हमेशा सक्रिय रहा है। जबकि ऑंग सान सु की के सत्ता में आने के बाद चीन और बीसीआईएम के प्रति म्यांमार के रुख में बड़ा परिवर्तन आया है। चीन-म्यांमार तेल पाइप औपचारिक रुप से खुला है। म्यांमार चीन के साथ सहयोग का विस्तार करना चाहता है। इसलिए बांग्लादेश व म्यांमार दोनों देश मुख्य बाधक नहीं हैं।
मोदी सरकार का नकारात्मक रवैया
वास्तव में मनमोहन सिंह के काल में भारत की न केवल गलियारे के निर्माण के लिए बल्कि पूरे “बेल्ट एंड रोड” के प्रति अपेक्षाकृत सक्रिय प्रतिक्रिया थी। 11 फ़रवरी 2014 को भूतपूर्व भारतीय प्रधानमंत्री सिंह ने चीनी स्टेट कांसुलर यांग च्येईछी से मुलाकात के दौरान कहा कि भारत सक्रिय रूप से बीसीआईएम और “रेशम मार्ग आर्थिक पट्टी” के निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेगा।
लेकिन मोदी के सत्ता में आने के बाद बीसीआईएम के प्रति भारत के रुख में बड़ा परिवर्तन आया। मैंने मोदी सरकार द्वारा “बेल्ट एंड रोड” के विभिन्न गठित भागों की नीतियों को “सशर्त भागीदारी” “विपक्ष और हेज” और “विलंब और प्रतिस्थापन” तीन किस्मों में विभाजित किया। बीसीआईएम के बारे में भारत ने “विलंब और प्रतिस्थापन” की नीति अपनायी। चूंकि भारत ने बार-बार विलंब किया, संयुक्त कार्य दल की दूसरी बैठक 2014 के पूर्वार्द्ध से साल के अंत तक स्थगित की गयी। जबकि तीसरी कार्य बैठक 2015 से 2017 तक स्थगित की गयी। इस दौरान भारत ने भारतीय उपमहाद्वीप आर्थिक सहयोग समझौते(बीबीआईएन, भूटान, बांग्लादेश, भारत व नेपाल)और रिंग बांग्लादेश खाड़ी के बहुक्षेत्रीय आर्थिक व तकनीक सहयोग पहल को आगे बढ़ाया। भारत अमेरिका व जापान के साथ सहयोग करके तथाकथित “भारत-प्रशांत सागर आर्थिक कॉरिडोर” के निर्माण को आगे बढ़ाना चाहता है।
भारत ने संभवतः “लुक ईस्ट” पॉलिसी को मद्देनज़र कोलकाता में संयुक्त कार्य दल की तीसरी बैठक बुलायी। भारत चाहता है कि बांग्लादेश इस “थलीय पुल” के जरिए दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ आपसी संबंध व संपर्क को मजबूत करेगा। लेकिन भारतीय पक्ष के प्रतिनिधियों ने बैठक में तथाकथित एक दूसरे का बाज़ार खोलने और बांग्लादेश व म्यांमार के अति पिछड़ेपन का सवाल उठाया। भारत न सिर्फ़ विलंब की नीति अपनाता रहता है, बल्कि बीसीआईएम इस बहुपक्षीय सहयोग और चीन-भारत द्विपक्षीय आर्थिक व व्यापारिक संबंध को जोड़ता है।
विश्वास आपसी संबंध व संपर्क का आधार है
चीन के प्रति अविश्वास भारत की केंद्र सरकार द्वारा बीसीआईएम सहित “बेल्ट एंड रोड” पहल का समर्थन न करने का बुनियादी कारण है। वास्तव में भारत के पूर्वोत्तर विभिन्न प्रदेश और पश्चिम बंगाल प्रदेश बीसीआईएम के प्रति सक्रिय रुख अपनाते हैं। चूंकि चीन-भारत सीमा समस्या का हल नहीं किया जाता और भारत के पूर्वोत्तर में अलगाववादी अभी भी अस्तित्व में है, इसलिए चाहे बीसीआईएम एक क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग का पहल है, फिर भी भारत इसकी सामरिक व सुरक्षित अर्थ को नज़रअंदाज नहीं कर पाता। भारत के भूतपूर्व विदेश सचिव सरन ने कहा था कि इस कॉरिडोर से चीन सीधे हिन्द महासागर पहुंच सकेगा। वास्तव में यह समुद्री रेशम मार्ग का एक गठित भाग है। यदि भारत के साथ बीसीआईएम का निर्माण करना चाहता है, तो भारत के साथ सामरिक आपसी विश्वास को प्रगाढ़ करने के लिए चीन को भारत के साथ समान वार्ता करके शांति व आपसी लाभ पाना चाहिए, साथ ही सीमांत समस्या का हल किया जाना चाहिए।
जबकि इधर के दो सालों में नरेंद्र मोदी के पास वरिष्ठ सलाहकारों ने चीन-अमेरिका, चीन-जापान और चीन-भारत आदि बड़े देशों की भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा पर ज़्यादा ध्यान दिया और भारत की विदेश नीति में गलतफ़हमी लायी गई है। उन्होंने बिलकुल परम्परागत शक्ति दायरे के दृष्टिकोण से बीसीआईएम सहित “बेल्ट एंड रोड” पहल को देखते हैं। वे मानते हैं कि “बेल्ट एंड रोड” भारत के पड़ोसी देशों की राजनीति, अर्थतंत्र और सुरक्षा पर चीन के प्रभाव को मजबूत करेगा और इस क्षेत्र में भारत की श्रेष्ठता कम करेगा। इसलिए उन्होंने यह नीति पेश की कि भारत को जापान आदि देशों के साथ सहयोग करना चाहिए और अपने और पड़ोसी देशों के बुनियादी संरचनाओं के आपसी संबंध व संपर्क को मजबूत करना चाहिए। इस क्षेत्र में भारत के असर को मज़बूत करने के बाद भारत फिर एक बार चीन के साथ आपसी संबंध, संपर्क व सहयोग पर बातचीत करनी चाहिए।
वास्तव में बांग्लादेश के विद्वानों ने पहले ही “अनेक लाईनों” का सुझाव पेश किया था। वे हालिया बीसीआईएम के निर्माण की धीमी गति के प्रति असंतुष्ट हैं। वे चाहते हैं कि “एक्सप्रेस वे” का कदम उठाकर गलियारे के निर्माण को आगे बढ़ाया जा सकेगा और मौजूदा लाईन के न खुलने की स्थिति में “दक्षिण लाईन” खोलना चाहते हैं, जो म्यांमार के राखीन राज्य से सीधा बांग्लादेश बंदरगाह जाती है। जबकि चीन के लिए यदि युन्नान से सीधे हिन्द महासागर जाना चाहता है, तो कुंजीभूत बात म्यांमार ही है। इस साल के अप्रैल माह में चीन-म्यांमार कच्चे तेल पाइपलाइन परियोजना औपचारिक रुप से शुरू हुई। यह “बेल्ट एंड रोड” पहल में क्लासिकल उदाहरण माना जाता है,जिसने चीन व म्यांमार द्वारा “बेल्ट एंड रोड” के सहयोग के लिए अच्छा आधार तैयार किया है।
इसके अलावा भारत, बांग्लादेश व म्यांमार सब एशिया इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) के संस्थापक देश हैं। साथ ही बांग्लादेश व म्यांमार रेशम मार्ग कोष के सदस्य भी हैं। जबकि चीन-भारत सहयोग और चीन की पूंजी के प्रति भारत की कुछ स्थानीय सरकार हमेशा ही सक्रिय रुख अपनाती रहती है। इसलिए एआईआईबी और रेशम मार्ग कोष के ढांचे में बीसीआईएम से जुड़े देशों में कुछ ठोस बुनियादी संरचनाओं और औद्योगिक परियोजनाओं का निर्माण करना संभव होगा।