चीनी बौद्ध धर्म में भारतीय स्रोत

बौद्ध धर्म की उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई, बाद में चीन आदि अनेक एशियाई देशों में जाकर विश्व धर्म बन गया।चीनी बौद्ध धर्म में मुख्य धर्म संप्रदाय चीन व भारत की संस्कृति के मिलन से पैदा हुए थे। इन ध...
by लेखक/ याओ वेईछ्वन
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बौद्ध धर्म की उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई, बाद में चीन आदि अनेक एशियाई देशों में जाकर विश्व धर्म बन गया।
चीनी बौद्ध धर्म में मुख्य धर्म संप्रदाय चीन व भारत की संस्कृति के मिलन से पैदा हुए थे। इन धार्मिक संप्रदायों में ज़रूर कोई न कोई भारतीय सांस्कृतिक तत्व होते हैं। कारण यह है कि बौद्ध धर्म के बुनियादी ग्रंथ और मुख्य विचारधारा प्राचीन भारत से आये हैं। जबकि चीन में प्रचलित बौद्ध धर्मों के चीनी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि ज़रूर होती है। चूंकि इन धर्मों के मुख्य प्रतिनिधि और मुख्य अनुयायी चीनी लोग हैं। यदि वे चीन में रहना चाहते तो उन्हें चीनी परिस्थिति से अनुकूल होना चाहिए। इसलिए उन्होंने भारत से आए बौद्ध धर्म के विचारों का कुछ सुधार व सृजन किया है। उल्लेखनीय बात यह है कि चीनी बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदायों में अलग-अलग चीनी व भारतीय सांस्कृतिक तत्व होते हैं। चीन के इतिहास पर उनके प्रभाव भी भिन्न-भिन्न हैं।
अपेक्षाकृत चीनी विशेषता वाले बौद्ध धर्म के अधिकांश संप्रदाय स्वन व थांग राजवंशों (ईस्वी 581-ईस्वी 907) के बाद उत्पन्न हुए थे। चीन में बौद्ध धर्म के 8 मुख्य संप्रदाय हैं, जिनमें अपेक्षाकृत ज़्यादा भारतीय संस्कृति या भारतीय बौद्ध धर्म के ग्रंथों की विचारधारा वाले सीअन जोंग(योगाकार बौद्ध संप्रदाय), सानलुन जोंग(तीन मध्यमाका बौद्ध संप्रदाय), ल्वू जोंग(विनय बौद्ध संप्रदाय) और मी जोंग(वज्रयान) हैं।
सीअन जोंग की विचारधारा ह्वेन त्सांग(ईस्वी 602 — ईस्वी 664)के भारत वापस लौटने के बाद स्थापित हुई थी। इसके ग्रंथों में मुख्यतः भारत के योगकारा बौद्ध संप्रदाय (नोट : योगकारा बौद्ध संप्रदाय, महायान बौद्ध धर्म के दो विचारधारा संप्रदायों में से एक है। योगकारा का मतलब योग व ध्यान का अभ्यास करने वाला है) के विचार हैं। ह्वेन त्सांग और ख्वेई ची(नोट :ख्वेई ची,ईस्वी 632— ईस्वी 682,थांग राजवंश के चिनचाओ छांगआन के निवासी थे। लोग उन्हें मास्टर सीअन कहकर पुकारते थे। उनके संप्रदाय का दूसरा नाम वेईशी जोंग और सीअन जोंग है ।)भारतीय बौद्ध धर्म की विचारधाराओं का अनुवाद और व्याख्यान करने के दौरान उनकी अपनी समझदारी भी है। लेकिन आम तौर पर उनका अनुवाद व व्याख्यान भारतीय बौद्ध धर्म के मूल अर्थ के अनुकूल है।
सानल्वन जोंग का नाम भारत के तीन ग्रंथों से आया था। इसकी मुख्य विचारधाराओं का प्रारंभिक रूप भारतीय चोनग्वेन संप्रदाय से आया था।(नोट : चोनग्वेन संप्रदाय भारतीय महायान बौद्ध धर्म के प्रमुख संप्रदायों में से एक है। वह मानता है कि दुनिया में सभी चीज़ें और लोगों की समझ यहां तक कि बौद्ध धर्म सब एक विरोधी व अन्योन्याश्रित संबंध है।)इस संप्रदाय के प्रतिनिधि ने तीन भारतीय ग्रंथों का व्याख्यान करने के दौरान भी अपने कुछ विचार शामिल किये। लेकिन इसकी मूल विचारधारा चोनग्वेन संप्रदाय से आया है।
चीनी संस्कृति से अपेक्षाकृत ज़्यादा असर पाने वाले संप्रदाय जेन जोंग, चिनथू जोंग, थ्येनथाई जोंग और ह्वायेन जोंग हैं, जिनमें चीन में जेन जोंग का सबसे बड़ा प्रभाव है।
जेन जोंग सबसे ज़्यादा चीनी विशेषता होने वाला एक संप्रदाय है, लेकिन इसके भारतीय बौद्ध धर्म का अपेक्षाकृत घनिष्ट संबंध भी है। इस संप्रदाय की कुछ विचारधारा सीधे《वज्राछेदिका-प्रजना-प्रामिता सूत्र》से आये थे। जेन जोंग का मानना है कि यदि दिल स्वच्छ है तो लोगों के बुद्ध बनने की संभावना है। ज्ञान की प्राप्ति के लिए बाहरी दुनिया में ढूंढने की ज़रूरत नहीं है, जबकि अपने शरीर में बुद्ध को जानना चाहिए। जब मनुष्य अपने अंदर बुद्ध को समझ लेता है, तो तभी ज्ञान हासिल कर पा लेगा और तुरंत बुद्ध बन सकता है। जेन जोंग दुनिया से अलग होकर निर्वाण को ढूंढ़ने का विरोध करता है। इसका मानना है कि “धर्म दुनिया में है और दुनिया से अलग न होने पर लोग ज्ञान पा सकते हैं।”(नोट:यह वाक्य《छठे कुलपति का मंच सूत्र (Platform Sutra of the Sixth Patriarch)》से आया था, जो बौद्ध धर्म के जेन जोंग के मास्टर ह्वेई नंग द्वारा मौखिक रूप से सुनाया जाने वाला और शिष्य फ़ा हाई आदि द्वारा संग्रहित एक ग्रंथ है। इसका मतलब है कि तपस्या करना दुनिया से अलग नहीं होना चाहिए। दुनिया से अलग होने वाली तपस्या करने से कोई सफलता नहीं हासिल हो सकेगी।)यह चीनियों द्वारा यथार्थ जीवन पर महत्व देने की परम्परा से मेल खाता है, साथ ही भारतीय बौद्ध धर्म की कुछ विचारधाराओं में जड़ भी पा सकता है। इसलिए जेन जोंग चीन व भारत की संस्कृतियों के अच्छी तरह से जोड़ने के बौद्ध धर्म का एक संप्रदाय है।
जेन जोंग लोगों से दैनिक जीवन में तपस्या करने का आह्वान करता है। यानी अपने सामान्य चलने, रहने, बैठने व लेटने को धर्म के प्रति समझ को जोड़ना चाहिए। जेन जोंग ने बौद्ध धर्म में आम जनता को लाभांश देने और लोगों को खुश रहने पर ज़ोर दिया। चीनी बौद्ध मंदिरों ने भिक्षुओं की दैनिक तपस्या और जीवन मापदंड का भी चीनी विशेषता वाली स्थिति के अनुकूल बंदोबस्त किया और चीनी बौद्ध धर्म की नियमों व धार्मिक अनुशासन की स्थापना की, जिनमें अनेक भारत व चीन से लाए गये हैं।
निसंदेह बौद्ध धर्म के विभिन्न संप्रदाय, चीन में चाहे बड़ा असर हो या छोटा, भारतीय बौद्ध धर्मग्रंथों या चीनी संस्कृति पर महत्व देने पर निर्भर नहीं होता है। वे प्रसारित विभिन्न बौद्ध धर्म की विचारधाराओं और धार्मिक यथार्थ कार्यवाइयों के अनुयाइयों में आसानी से प्रसार किये जाने या कार्यन्वित किये जाने से संबंधित हैं। सीअन जोंग जैसे धार्मिक संप्रदाय में प्रसार किये जानी वाली विचारधारा की बहुत मज़बूत सोच विचार की क्षमता है, जिसे अपेक्षाकृत ऊंचे सांस्कृतिक आधार होने वाले लोग पकड़ सकते हैं। इसलिए बहुत मुश्किल से प्रसारित किया जा सकता। हालांकि चिनथू जोंग मुख्यतः भारतीय ग्रंथ का प्रसार करता है, फिर भी इसके कम सोच विचार की क्षमता होने की वजह से आम अनुयायी अपेक्षाकृत आसान है। इसलिए चीन में उसके अनेक अनुयायी हैं।
चीन में सबसे लोकप्रिय जेन जोंग के चीन में प्रसारित करने की दो अहम शर्त हैं। एक, विकास की दिशा में वह पुरानी चीनी परम्परागत संस्कृति की प्रमुख प्रवृत्ति से अनुकूल है, लोगों के दैनिक जीवन पर ध्यान देता है और अनुयायियों से दैनिक कार्यवाइयों में बौद्ध धर्म के सर्वोच्च स्तर तक पहुंचाने की मांग करता है। जैन जोंग ने “दुनिया से अलग होने से ज्ञान नहीं पहुंचने” पर जोर दिया, जो आसानी से चीनी परम्परागत संस्कृति से नागरिकों द्वारा स्वीकार किया जा सकता है। दूसरा, जेन जोंग के भिक्षुओं का सांस्कृतिक स्तर ऊंचा होने की ज़रूरत नहीं है। उसने अनुयायियों से बहुत ज़्यादा बौद्ध ग्रंथों को सीखने की मांग नहीं की, साथ ही अनुयायियों के बौद्ध धर्म की अनेक संकल्पनाओं को समझने और परम्परागत तपस्या करने पर भी ज़ोर नहीं दिया। यह जेन जोंग में भाग लेने के शर्त को कम करता है ताकि अनुयायियों की संख्या के बढ़ने और इसके प्रभाव के विस्तार करने को बढ़ावा दे।
और तो और चीनी बौद्ध धर्म के विभिन्न धार्मिक संप्रदाय चीन व भारत की संस्कृति के जोड़ने की उपज है। चीन में किसी एक धार्मिक संप्रदाय के प्रभाव के बड़ा या छोटा होने से उनके भारतीय संस्कृति और चीनी संस्कृति के संबंध के निपटारा से संबंधित है, साथ ही उस धार्मिक संप्रदाय द्वारा प्रसारित बौद्ध धर्म के सिद्धांत के कठिन होने या आसान होने से संबंधित है।