आमिर ख़ान के प्रति चीनियों का प्यार

और एक फ़िल्म के चीन में लोकप्रिय होने से भारतीय कलाकार आमिर ख़ान को चीन में सचमुच एक सुपरस्टार का दर्जा दिया जाने लगा है। करीब 2 करोड़ चीनी युआन से बनायी गयी फ़िल्म《सीक्रेट सुपर स्टार》चीनी सिनेमाघरों में बहुत लोकप्रिय रही है।
सच कहा जाए तो कहानी या शुटिंग की तकनीक के लिहाज से《सीक्रेट सुपर स्टार》एक श्रेष्ठ फ़िल्म नहीं है। एक लड़की अपने रूढ़िवादी पिता के प्रतिरोध के साथ सिंगर बनने के सपना का पीछा करती है। जब भी मुसीबतों में फंसती, तो उसकी मां उसका साथ देती है। आख़िरकार मां और बेटी दोनों ने परम्परागत विचारधारा की कैद को तोड़कर सिंगर बनने का सपना साकार किया, साथ ही महिला का विश्वास व आजादी भी मिली। इस तरह की कहानी सामान्य है। हर साल भारतीय फिल्मों में 1 हज़ार फ़िल्मों में इसी तरह की कहानी मिल जाती है। लेकिन आमिर ख़ान द्वारा रचाई गयी यह फ़िल्म चीन में लोकप्रिय हो गयी।
यह स्थिति दिलचस्प है। हम कई स्तरों पर सोच विचार कर सकते हैः क्यों आमिर ख़ान चीन में लोकप्रिय है?उनकी फ़िल्मों में कौन-कौन से विषय चीनी दर्शकों को आकर्षित करते हैं?क्या भारतीय फ़िल्म चीनी सिनेमाघर में फिर एक बार चिरस्थायी अहम बन सकेगी या सिर्फ़ छोटे समय के लिए अहम हो सकेगी? हम फ़िल्मों से देख पाते हैं कि चीन और भारत की संस्कृतियों में क्या-क्या भिन्नताएं और समानताएं हैं?
पहले सवाल का जवाब आसान है। आमिर ख़ान बहुत सुंदर और बहुत विनोदी है। विनोदी अति अहम है। पहले व्यस्त में काम करने वाले हांगकांग वासी हास्य फ़िल्म पसंद करते थे, आज चीन के भीतरी इलाकों के दर्शक भी हास्य फ़िल्मों को पसंद करते हैं। आमिर ख़ान अकसर विशेष पात्रों का अभिनय करते हैं, जो अधिकांश चीनी और हॉलिवुड के फ़िल्म स्टारों के अभिनय से अलग है, जो लोगों को ताज़ा अनुभव दे सकते हैं। आमिर ख़ान का चरित्र दूसरा एक कुंजीभूत तत्व है। भारत में अनेक आम जनता की नज़र में वे एक सज्जन हैं। 2013 में अमेरिकी पत्रिका《टाइम्स》ने उन्हें विश्व को प्रभावित करने वाले मशहूर आदमियों की नामसूची में शामिल किया और उन्हें एक “अभिनेता और राजनीतिज्ञ” के रूप में वर्णित किया। इधर के सालों में आमिर ख़ान ने अभिनय करते समय सामाजिक समानता और महिलाओं के अधिकारों को बढ़ाने के लिए बड़ा प्रयत्न किया है।《दंगल》और《सीक्रेट सुपर स्टार》दोनों उपरोक्त विषयों पर केंद्रित हैं। यह नहीं हो सकता है कि सभी फ़िल्म स्टार जनता के जीवन में मॉडल हैं, लेकिन यदि वह फ़िल्म स्टार एक मॉडल हो, तो दर्शक उन्हें और ज़्यादा पसंद करेंगे।
दूसरा सवाल भारतीय फ़िल्म से संबंधित है। आज चीन में अधेड़ आयु वाले लोग भारतीय फ़िल्मों से परिचित हैं। जितेंद्र द्वारा अभिनय की गयी फ़िल्म《कारवां》(वर्ष 1971)और राजकपुर द्वारा अभिनय की गयी फ़िल्म《आवारा》(वर्ष 1951)पहले चीनी सिनेमाघरों में बहुत लोकप्रिय हुई, जो आज की फ़िल्म《दंगल》से कहीं ज्यादा चर्चित थीं। लेकिन बाद में भारतीय फ़िल्में चीन में लोकप्रिय नहीं रहीं। फ़िल्म उद्योग के आदान प्रदान के कारण के अलावा बॉलिवुड फ़िल्म की “नीरसता” एक बड़ी समस्या है, जिससे दुनिया में भारतीय फ़िल्मों को इतना स्वागत नहीं मिला। इस शताब्दी की शुरूआत में आमिर ख़ान आदि भारतीय फ़िल्म निर्माताओं ने इस समस्या पर गहन रूप से सोच विचार किया। उन्होंने घरेलू बाज़ार से हटकर बाहरी दुनिया पर नज़र रखी और बॉलिवुड के सुधार को आगे बढ़ाया।《लगान》एक सफल परीक्षण है जिसके मुख्य अभिनेता और निर्माता आमिर ख़ान हैं। इधर के सालों में अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म बॉलिवुड में बदलाव को देखती हैं, जिस में कुछ पुरानी विशेषताओं को बरकरार रखा जाता है, कुछ भविष्य के उन्नमुख नयी छवि दिखायी जाती है। चाहे यह बदलाव सफल हो या नहीं बाज़ार ने सक्रिय मूल्याकन किया है।
भारतीय फ़िल्मों के बॉक्स ऑफ़िस पर बेहतरीन कमाई को लेकर कुछ पेशेवर चीनी फ़िल्म निर्माता आश्वस्त नहीं हैं। कारण यह है कि भारतीय फ़िल्मों की अपनी एक अलग शैली है, जिनमें कहानी बहुत नाटकीय है। लम्बे अरसे से चीनी दर्शकों की मांग को पूरा करने के लिए अपेक्षाकृत मुश्किल है। साथ ही जापान और दक्षिण कोरिया की संस्कृति चीनी संस्कृति से मिलती जुलती है। भारतीय संस्कृति, भारत के जीवन तरीके, हास्य और फ़िल्म देखने की आदत चीनियों से भिन्न है। भारतीय फ़िल्मों की शुटिंग स्तर और कहानी सुनाने के तरीकों में श्रेष्ठता न होने की स्थिति में चीन में भारतीय फ़िल्मों की लोकप्रियता संभवतः लम्बे समय के लिए नहीं रहेगी।
उपरोक्त विचार के प्रति निश्चित रूप से विवाद पैदा होगा। ख़ास तौर पर अनेक सांस्कृतिक विद्वानों ने चीन-भारत संस्कृति के ऐतिहासिक अलगाव को अनुमति नहीं देते हैं। इस के अनेक विपक्षी सबूत हैं।《दंगल》और《सीक्रेट सुपर स्टार》की मिसाल ले, चीनियों को प्रभावित करने वाली फ़िल्मों के विषय अनोखे नहीं है, बल्कि दोनों देशों की राष्ट्रीय स्थितियों और जनता की मनोवैज्ञानिक समानता है। इसलिए विकास प्रक्रिया और मौजूदा स्थिति में चीन और भारत के बीच अनेक समानताएं हैं और मिलने जुलने की स्थितियां हैं। ये फ़िल्में दर्शकों को जोड़ने वाली सच्ची बेल्ट है। प्राचीन काल से चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आवाजाही की चर्चा करने की जरूरत नहीं है। आज दोनों देशों को सांस्कृतिक आदान-प्रदान को मज़बूत करने के दबाव का सामना करना पड़ता है।
लेखक श्या वनह्वेई शिनह्वा न्यूज़ एजेंसी के पत्रकार और स्तंभकार हैं।