हरित विकास: पारिस्थितिकी चीनी चरित्र के साथ शासन

बाहरी तौर पर, एक देश का परिस्थितिकी तंत्र किसी इंसान के शारीरिक बनावट या स्वास्थ्य, उसके आकृति विज्ञान के प्रदर्शन करने जैसा ही है। लेकिन प्रकृति में, यह देश को जीवित रहने और विकास को प्रभावित करने वाली नींव और शर्तों का पता लगाता है। मानवी सभ्यता की शुरुआत से, उत्पादन तरीके और मानवजाति की जीवनशैली बहुत बड़े बदलाव से गुजरी है।
हालांकि, एक चीज़ सतत बनी हुई है: इंसान के जीवन और विकास के लिए प्राकृतिक संसाधन हमेशा से अभिन्न आधार और गारंटी बने हुए हैं। सभी प्राकृतिक संसाधन प्राकृतिक पारिस्थितिकी से निकले हुए हैं।
यदि ग्रह की परिस्थितिकी को ढांचागत और मूलभूत नुकसान पहुंचता है, जो प्राकृतिक संसाधन वह देता है वो भी खत्म हो जाएगा।
चीन के लंबे इतिहास में, कुछ साम्राज्यों या प्रजातियों का खत्म होना सीधे तौर पर पारिस्थितिकी पतन की वजह से हुआ था। चीन दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। यदि इसके पारिस्थितिकी तंत्र को पर्याप्त नुकसान होता है, पानी, मिट्टी, हवा और वन्य जीवन संसाधन जिसने देश के 1.4 बिलियन लोगों को जिंदा रखा है, उसकी कमी हो सकती है या संकट आ सकता है। और अंत में यह अशांति, अराजकता और यहां तक कि राष्ट्र का पतन हो सकता है। तब राष्ट्रीय विकास सिर्फ बातचीत तक सीमित रह जायेगा।
एक सुरक्षित और स्थिर पारिस्थितिकी तंत्र किसी भी देश के बचे रहने और विकास के लिए बेहद मूलभूत आधार है। प्रकृति शायद इस पारिस्थितिकी तबाही से उभर जाए लेकिन अधिकतर जीव जो पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर हैं, खासकर मानवजाति, आसानी से विलुप्त हो सकते हैं। इस वजह से, चीन सरकार इन दिनों प्रकृति का सम्मान, संरक्षण और उससे सामंजस्य बिठाने के सिद्धांतों का पालन कर रही है। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने पांच क्षेत्रीय एकात्मिक योजना बनाई है जिसमें राजीनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास की विस्तृत प्रक्रिया में पारिस्थितिकी प्रगति को जोड़ा गया है।
चीनी नेता के हरित विकास पर बुद्धिमत्ता और दृष्टि की गवाही देते हुए, राष्ट्रपति शी ने “अपनी आंखों को बचाने जैसे” की तर्ज पर पारिस्थितिकी पर्यावरण को भी बचाने की बात कही है।
पारिस्थितिकी उन्नति: चीन के भविष्य का रास्ता
राष्ट्रपति शी ने पारिस्थितिकी उन्नति का समाज बनाने की बात कही है, जो पर्यावरण संरक्षण की संकल्पना में सुधार का प्रतिनिधित्व करता है। यह दार्शनिक और तर्कसंगत दृष्टिकोण से इंसान और प्रकृति के बीच के रिश्तों के विचारों पर आधारित है। मानवी इतिहास की समीक्षा से यह स्पष्ट हो चुका है कि सभ्यता का विकास अशिष्ट वास्तविकताओं से हुआ था। पारिस्थितिकी प्रगति को बनाने के पीछे मानवजाति द्वारा प्रकृति के साथ “असभ्य” व्यवहार से जुड़ा हुआ है।
मानवीय इतिहास के शुरुआती दिनों में, मानवजाति ने प्रकृति का उपयोग इस तरह किया जो पारिस्थितिकी तंत्र के संचालन के नियम के साथ चलता था या कम से कम उसने प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर नुकसान नहीं पहुंचाया। इंसानों की प्रकृति को खंगालने की क्षमता में बढ़ोतरी के साथ, मानव समाज “औद्योगिक क्रांति” के दौर में पहुंच गया। उस वक्त तक इंसान प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को पूरी तरह समझ नहीं पाया था और उसी समय मशीनों, उपकरणों और ऊर्जा का व्यापक उत्पादन के परिणामस्वरूप प्रकृति का विनाशकारी उपभोग व दोहन हुआ। इसके अलावा, “पूंजी” की संकल्पना की शुरुआत ने मानवजाति द्वारा प्रकृति के “असभ्य” दोहन और उपभोग को अधिक बढ़ावा दिया।
चीन के सुधार और खुलेपन को लेकर औद्योगिकीकरण वाली पश्चिमी उत्पादन प्रणालियों को शुरू करना एक महत्वपूर्ण रणनीतिक थी। नतीजतन, ऐसी उत्पादन प्रणालियों ने उत्पादनकर्ताओं को जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को प्रेरित किया। और “औद्योगिक सभ्यता” द्वारा बड़े पैमाने पर खनिजों, जमीन, समुद्र और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए उपलब्ध कराए गए सभी औजारों व साधनों को बढ़ावा दिया है जिसने पर्यावरण पर विनाशकारी घाव छोड़े हैं।
अपने औद्योगिकीकरण के शुरुआती दौर में, चीन के पास बहुत व्यापक स्तर के दोहन कार्यों को कम करने की क्षमता और जागरूकता दोनों की कमी थी। जब चीन ने भारी उद्योग का विकास करना शुरू किया था, उस वक्त पश्चिमी देश पहले व दूसरे औद्योगिक क्रांतियों से जन्मे पारिस्थितिकी आपदाओं के बारे में जागरूक हो रहे थे तथा उन्होंने पर्यावरण प्रदूषण को प्रौद्योगिकी व संवैधानिक साधनों के जरिये खत्म करने के लिए अपनी क्षमता में बढ़ोतरी की शुरुआत की थी, जिसने नए उत्पादन तरीकों और जीवनशैलियों को बढ़ावा दिया। उन्होंने अपने निचले स्तर की, पिछड़े और प्रदूषित उद्योगों को विकासशील देशों में स्थानांतरित करना शुरू किया,जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण प्रदूषण और पारिस्थितिकी पतन विस्थापित हो गया। विकसित देशों के प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र दोबारा अपने स्वरूप में आ गए हैं, जिससे उन्हें फिर से नीला आसमान, साफ नदियां और घने जंगल मिल गए। हालांकि, उन्होंने विकासशील देशों को पर्यावरण संरक्षण से संबंधित उनकी क्षमता को बढ़ाने को लेकर बहुत थोड़ी मदद की है।
गंभीर प्रदूषण झेल रहे चीनी नागरिकों को अब साफ पानी संसाधन, शुद्ध हवा, सुरक्षित खाना और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र की महत्वाकांक्षा हैं। चीन के लिए, सबसे महत्वपूर्ण कामों में से एक है प्रकृति के साथ उचित व्यवहार करना और स्वास्थ्य विकास करना। चीन को अब पारंपरिक उत्पादन तरीकों से जुड़े नहीं रहना चाहिए जो जीवाश्म ऊर्जा और खनिज संसाधनों पर निर्भर हैं तथा अपने विकास तरीकों में बदलाव और सामंजस्य करने की ज़रूरत है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए सतर्क प्रयास और उद्देश्य निश्चिंतता चाहिए। पारिस्थितिकी प्रगति को बढ़ावा देना लोगों को उनके उत्पादन तरीके और जीवनशैली बदलने तथा हरित विकास का रास्ता अपनाना है, में मार्गदर्शन करना है।

अब तक, चीन ने जीवाश्म ऊर्जा और खनिज संसाधनों के बदले पनबिजली, बायो-ऊर्जा, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा जैसे हरित ऊर्जा का इस्तेमाल औद्योगिक उत्पादन और सामाजिक विकास में करने के लिए कदम उठाये हैं। इसके फलस्वरूप, कई नए प्रौद्योगिकीय और हरित उद्योगों का जन्म हुआ। सबसे महत्वपूर्ण, पारिस्थितिकी प्रगति को बढ़ावा देने के लिए विकास के तरीकों में बदलाव की जरुरत है। विकसित देशों ने समुद्री, साधन और प्रदूषण नियंत्रण रणनीतियों को बहुत पहले ही अपनाना शुरू कर दिया था, और एक संपूर्ण कानूनी प्रणाली तैयार की जो वास्तव में वैश्विक नियम बन गए। पश्चिमी उपनिवेश विस्तार के समय में भी, पर्यावरण को लेकर जागरूकता बढ़ाने से लेकर एक पारिस्थितिकी रणनीति को अपनाया गया था।
कई संबंधित सबूत अमरीकी विद्वान अल्फ्रेड डब्लू क्रोस्बय की किताब “इकोलॉजिकल इम्पीरियलिस्म” में मिलेंगे। बाद में, खास तौर से 1950 के बाद, ऊर्जा रणनीति को पश्चिमी विकसित देशों ने बड़े स्तर पर अपनाया, जिसे लागू करने के लिए कानूनी श्रंखला तैयार की और अधिनियम बनाया।
बीते समय में, विकसित देशों ने जीरो-सम गेम्स या सशस्त्र संघर्षों के माध्यम से अपने संसाधनों, पारिस्थितिकी, समुद्री और ऊर्जा रणनीतियों को बढ़ावा दिया। इसके ठीक विपरीत, राष्ट्रपति शी ने चीन को पारिस्थितिकी प्रगति को “नए विचारों, समन्वित, हरित, खुला और साझे विकास” में समहित बनाने का लक्ष्य रखा है। चीन मतभेदों का विरोध करता है तथा सहयोग, सौहार्द, समन्वय और आपसी फायदों को तरजीह देता है।
वास्तविक स्थितियों पर आधारित कानूनी विकास
हाल के सालों में, चीन ने पारिस्थितिकी उन्नति से संबंधित कानूनी प्रणाली को बनाने और सुधारने को बहुत अधिक महत्व दिया है। राष्ट्रपति शी ने पारिस्थितिकी प्रगति से जुड़े विशेष कानूनों को लेकर बहुत से महत्वपूर्ण निर्देश दिए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि पारिस्थितिकी को बढ़ावा देने लिए उत्पादन तरीकों में, जीवन शैलियों, सोचने के तरीकों, और मूल्यों में एक क्रांतिकारी सुधार की ज़रूरत है, जो संस्थागत विकास और कानून के नियम के साथ ही पूरे हो सकते हैं। उन्होंने इस पर भी जोर दिया कि चीन “सबसे कठोर पर्यावरण संरक्षण प्रणाली लागू करे।” उन्होंने कानून को मजबूत करने और उसे लागू कर वन्य जीवों के संरक्षण को समृद्ध करने की इच्छा जताई, जिसके माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र और लोगों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने, बेहतर सामाजिक रीति-रिवाज को प्रोत्साहन देने और चीनी नागरिकों की अच्छी अंतराष्ट्रीय छवि बनायी रखी जा सकती है। परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मलेन के दो सत्रों में, उन्होंने दो बार परमाणु सुरक्षा कानून तैयार करने के महत्व पर जोर दिया। शी ने मिट्टी प्रदूषण बचाव व नियंत्रण पर कानून बनाने को लेकर कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए।
पिछले कुछ सालों में, चीन ने पारिस्थितिकी संरक्षण को लेकर बनाये गए कानूनी प्रणाली में बहुत बड़ी उपलब्धियां हासिल की। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
पहला, त्वरित कानून निर्माण। 2012 से, नेशनल पीपल्स कांग्रेस (एनपीसी) की स्टैंडिंग कमेटी की विधायिका योजना में पारिस्थितिकी प्रगति से संबंधित कानूनी मसौदे का अनुपात बढ़ गया है। पारिस्थितिकी कानूनी मसौदा 12वीं एनपीसी की स्टैंडिंग कमेटी द्वारा विचार किये जाने वाले कुल कानूनों का 18 फ़ीसदी है, जो इसके इतिहास में सबसे अधिक प्रतिशत है। पारिस्थितिकी प्रगति के कुछ मसौदों को स्टैंडिंग कमेटी की 13वीं एनपीसी की कानून योजना में शामिल किया जायेगा। हालांकि, चीन अब भी पर्यावरण कानून में कई विकसित देशों से काफी पीछे है।
दूसरा, संकल्पना-अनुकूल से समस्या-अनुकूल की ओर परिवर्तन। पहले, चीन का पर्यावरण कानून विदेशी कानून से अत्यधिक प्रभावित था, और कुछ नए अवधारणा और तरीके चीन में बहार से समाहित किये गए थे। चूंकि, ये कानून संभवतः चीन की वास्तविकताओं के अनुकूल नहीं थे, उनका प्रवर्तन प्रभावशाली नहीं था। हाल के सालों में, एनपीसी स्टैंडिंग कमेटी ने देश की जरूरतों और वास्तविकताओं पर आधारित कुछ नियमों को बनाया और संशोधित किया, जिसने चीन के पारिस्थितिकी प्रगति में महत्वपूर्ण किरदार निभाया।
तीसरा, प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण के कानूनों को और अधिक सुधारने के बाद, चीन ने पारिस्थितिकी संरक्षण को मजबूत करने के उद्देश्य से नियम बनाने और संसाधन इस्तेमाल कार्यक्षमता को समृद्ध करने पर ध्यान देने लगा है। उदाहरण के तौर पर, एनपीसी स्टैंडिंग कमेटी ने मिट्टी प्रदूषण संरक्षण और नियंत्रण कानून (इस साल चर्चा के बाद जिसके मंजूर होने की उम्मीद है) तथा जैवविविधता, आनुवंशिक संसाधन और वन्यजीव आवासों के संरक्षण से जुड़ी सामग्री को शामिल करने के बाद संशोधित वन्य जीव संरक्षण कानून पर विचार-विमर्श किया।
इसने समुद्री पर्यावरण संरक्षण कानून में संशोधन किया और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण को मजबूत करने के लिए गहरे समुद्री तल क्षेत्रों की खोज और साधनों के विकास का कानून बनाया। इसके अलावा, एनपीसी के संबंधित आयोगों ने एकात्मिक संसाधन उपयोग पर नियमों के निर्माण के लिए संभाव्यता अध्ययन की शुरुआत की। इसका मकसद संसाधन उपयोग की कार्यक्षमता को बढ़ाने तथा ऐसे नियमों व कानूनों की स्थापना करना जो संसाधन उपयोग के पूरे जीवनचक्र कच्ची सामग्री, उत्पादन, बिक्री और खपत से लेकर कचरा पुनरुपयोग तक को समाहित करता है।
चौथा, अंतर्राष्ट्रीय नियमों का समावेश करने से लेकर अंतर्राष्ट्रीय नियमों को बनाने में भाग लेने तक चीन बदलाव का गवाह बन रहा है। अतीत में, जब चीन ने अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की संपुष्टि की या उससे जुड़ा, उसने सम्मेलन के वर्तमान नियमों के साथ खुद को जोड़ने पर ज्यादा जोर दिया। अधिकतर मामलों में, हालांकि, विकसित देश अंतर्राष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों से जुड़ने के पहले संबंधित घरेलू नियम बनाने या उसमें संशोधन के द्वारा उसमें बदलाव चाहते हैं। ऐसा करने से ये देश अपने राष्ट्रीय हित को सुरक्षित रखने के लिए अपने घरेलू कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय बना देते हैं।
इस संदर्भ में, एनपीसी स्टैंडिंग कमेटी ने अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के मुताबिक संबंधित घरेलू कानून बनाने की गति में तेजी लायी है। चीन ने गहरे समुद्री तल क्षेत्रों की खोज और साधनों के विकास तथा परमाणु सुरक्षा जैसे नियमों को अपनाया है।
लेखक चीन की नेशनल पीपल्स कांग्रेस की पर्यावरण संरक्षण और संसाधन संवर्धन समिति के विधि कार्यालय के निदेशक हैं।