चीन-भारत करीबी व्यापार

चूंकि यूएस ने व्यापार घाटे पर युद्ध छेड़ दिया है, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार अनिश्चितताओं के बादलों से घिर गया है, इसने देशों को उनके रणनीतिक विकल्पों के पुनर्मूल्यांकन करने और जोखिम या नुकसान को कम करने के लिए मजबूर कर दिया है। यूएस मेड इन चाइना 2025, सामग्री स्थानीयकरण, बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर), प्रौद्योगिकी हस्तांतरण आदि पर विचार कर रहा है। वे सभी चीजें जो चीन करना चाहता है, यूएस और यूरोप के व्यापार के लिए चिंता बढ़ा रही है।
जैसे यूएस-चीन व्यापार लड़ाई बढ़ रहा है, रणनीतिक कौशल और उत्तेजित पुर्वार्ता भारत जैसे देशों के लिए कठिन विदेशी बाजारों में प्रवेश करने के लिए मौके प्रदान कर रही है। हालांकि, चीन-भारत सहयोग बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली में वैश्विक व्यापार को स्थिर करने और दोनों की प्रगति को निश्चित करने के लिए मजबूत करने की जरूरत है।
दर बढ़ोतरी और प्रतिशोध
दूसरे चरण के व्यापार युद्ध में ट्रम्प ने कनाडा और मेक्सिको को छोड़कर यूएस में आने वाले स्टील पर 25 फीसदी कर और अलमुनियम पर 10 फीसदी कर लगाया है। चीन का तकरीबन 14 फीसदी अलमुनियम निर्यात यूएस खरीदता है लेकिन अपने स्टील का सिर्फ 2.9 फीसदी निर्यात करता है। इसके 90 फीसदी अलुमिनियम की तुलना में यूएस में इस्तेमाल किये जाने वाले स्टील का केवल 30 फीसदी विदेशों से आता है। चीन, कनाडा, ईयू और रूस से कहीं पीछे संयुक्त राष्ट्र के लिए अलुमिनियम का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है।
अप्रैल में प्रतिशोध के तहत कदम उठाते हुए, चीन ने 128 सामानों की दर बढ़ा दी, जिसमें से 90 वस्तुएं खेती और पशु उत्पाद थे। प्रभावित उत्पादनकर्ताओं में अधिकतर यूएस के मध्य पश्चिम और कृषि क्षेत्र के किसान हैं, जो ट्रम्प समर्थकों का बहुत बड़ा हिस्सा है। उत्पादनों में फलों में सेब से लेकर अमरूद, अखरोट, सूखे अंजीर और छिलके वाले काजू शामिल हैं। उनमें सुअर का मांस और उसके उत्पाद भी शामिल हैं जिनपर 25 फीसदी का सख्त कर लगाए हैं। तब सितंबर 2018 में, राष्ट्रपति ट्रम्प ने 200 बिलियन यूएस डॉलर शुल्क चीनी आयात पर लगा दिया। चीन ने बदले की कार्यवाई करते हुए यूएस आयातों पर 60 बिलियन डॉलर के शुल्क लगा दिए। यदि चीन दोबारा प्रतिशोध की कार्यवाई करता है तो वाशिंगटन ने 260 बिलियन डॉलर के अतिरिक्त कर लगाने की धमकी दी। यूएस के साथ इस आंख के बदले आंख शुल्क द्वंदयुद्ध का बतौर प्रत्यक्ष परिणाम, दो एशियाई अर्थव्यवस्थाएं चीन और भारत करीबी व्यापार संबंध बनाने के लिए इस अहम मौके का फायदा उठा रही हैं।
भारत के लिए फंसाव
अलुमिनियम पर 31 मिलियन यूएस डॉलर और स्टील पर 134 मिलियन यूएस डॉलर के अतिरिक्त यूएस शुल्क दर की वजह से भारत प्रभावित हुआ है। जून 21, को भारत ने 29 यूएस उत्पादों जैसे कि सेब, बादाम, अखरोट और कुछ स्टेनलेस स्टील उत्पादों पर 235 मिलियन यूएस डॉलर के प्रतिशोधी कर की घोषणा की।
सौभाग्य से, भारत आसानी से चल सकता है और यूएस-चीन व्यापार युद्ध से मिले अवसरों का उपयोग कर सकता है। चीन का भारत के साथ व्यापार अंतर बढ़ता जा रहा है। भारत के लिए, निर्माण के उत्पादों की जगह चीन में लिए कृषि उत्पादों का निर्यात करना आसान है। पिछले साल 71.5 बिलियन यूएस डॉलर के कुल व्यापार के साथ भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 50 बिलियन यूएस डॉलर के पार चला गया। खराब होते दौर को तुरंत रोकने की जरूरत है, और उन क्षेत्रों जहां चीनी मांग है वह स्पष्ट शुरुआत केंद्र हैं। भारत, चीन की तरह ही गैर-अनुवांशिक रूप से संशोधित (नॉन-जीएमओ) फलों और सब्जियों का उत्पादक है।
साथ ही, प्रौद्योगिकी में यूएस के वर्चस्व को हटाने के लिए चीन लंबे समय के लिए सॉफ्टवेयर भागीदार की तलाश करेगा। भारत का सॉफ्टवेयर उद्योग ऊंचाइयों तक पहुंचने की क्षमता रखता है। यह चीन के साथ संयुक्त योजनाओं में नेतृत्व की भूमिका निभा सकता है जो यूरोपीय और अमेरिकी कंपनियों के साथ वह मौका बमुश्किल मिलता है। जिस तरह ब्रह्मोस और एस-400 मिसाइलों ने रूसी भागीदारी के जरिये क्रूज मिसाइलें बनाने का मौका दिया, उसी तरह भारत को चीनी साझेदारों के साथ संचार उद्योग में हाई-टेक विकास की खोज करने की शुरुआत करनी चाहिए। ऐसे कदमों का वैश्विक व्यापार पर महत्वपूर्ण परिणाम है। सन 2016 तक यूएस 2.2 ट्रिलियन यूएस डॉलर के सामानों के साथ दुनिया का सबसे बड़ा आयातक देश है और 1.4 ट्रिलियन यूएस डॉलर के साथ दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है, जबकि चीन निर्यात में 2.1 ट्रिलियन यूएस डॉलर के साथ सबसे बड़ा निर्यातक है और 1.4 ट्रिलियन यूएस डॉलर के साथ दूसरा बड़ा आयातक है।
भारत के लिए, सामानों के 66 बिलियन यूएस डॉलर (अप्रैल-मार्च 2017-18) के कुल व्यापार के साथ अमेरिका सबसे बड़ा निर्यात बाजार है और दूसरा सबसे बड़ा आयात का स्रोत है।
इस आर्थिक साल के पहले 11 महीनों में करीब 70 बिलियन यूएस डॉलर के सामानों की खरीदी के साथ भारत के लिए चीन आयात का सबसे बड़ा साझेदार बना हुआ है। हालांकि, भारत का चीन में निर्यात 12 बिलियन यूएस डॉलर से कम था। यदि यूएस और चीन द्वारा लगाए गए शुल्क सीमा घोषणा के मुताबिक जारी रहते हैं तो भारत के हाल में निर्यात में हुए चढ़ाव को प्रभावित करते हुए, वैश्विक व्यापार सिमटने लगेगा। खबरों के मुताबिक, अप्रैल में बीजिंग में हुए रणनीतिक आर्थिक सवांद के दौरान चीन को सोयाबीन और शक्कर बेचने का प्रस्ताव दिया। यूएस ने जनरल सिस्टम ऑफ प्रीफेरेंसस (जीएसपीसी) की समीक्षा की घोषणा भी की है, जो भारत से कुछ वस्तएं शून्य शुल्क दर पर आयात की इजाजत देता है। यह प्रणाली यूएस को भारत से किये जाने वाले 5.6 बिलियन यूएस डॉलर के निर्यात को प्रभावित करता है, जिसमें कपड़ा, रत्न और आभूषण जैसे उत्पाद शामिल हैं।

निवेश और प्रौद्योगिकी
भारत में निवेश की ओर सकारात्मक घुमाव के लिए कुछ संभावनाएं हैं। सन 2017 में पिछले साल की तुलना में यूएस में चीन का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) काफी हद तक कम हुआ है। चूंकि चीनी कंपनियां भारत के प्रौद्योगिकी क्षेत्र में जगह बना रही हैं, उस दिशा से अधिक प्रवाह की संभावनाएं है। भारत में यूएस निवेश 2015-16, 2016-17 और 2017-18 के बीच कम होकर अप्रैल 2000 से दिसंबर 2017 के बीच कुल 22 बिलियन यूएस डॉलर पहुंच गया। इसका बाह्य एफडीआई 2016 में ही अकेले 299 बिलियन यूएस डॉलर था। भारत में यूएस और चीनी एफडीआई लाने के लिए बहुत मजबूत प्रयासों की जरूरत है।
प्रौद्योगिकी विकास और आईपीआर के विवाद के मुद्दों के साथ, भारत को उद्योग प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के दौरान अपनी स्थितियों को लेकर सजग रहना होगा। भारत, चीन की तुलना में अंग्रेजी भाषा कुशलता और सांस्कृतिक संबंध के मामले में बेहतर है जिसके परिणामस्वरूप डेटा सुरक्षा और आईपीआर खोने की चिंता कम है। जबतक भारत मजबूत आईपीआर दौर पर दृढ़ है और अनिवासी पेटेंट एप्पलीकेशन को बढ़ावा देना जारी रखता है, यह भरोसेमंद प्रौद्योगिकी साझेदार के तौर पर देखा जाएगा।
आगे का रास्ता
आर्थिक संबंधों, व्यापार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर चीन-भारत संयुक्त समूह की 11वीं बैठक में बात करते हुए चीनी वाणिज्यिक मंत्री जोंग शान ने उल्लेख किया कि 2017 में चीन और भारत के बीच व्यापार परिणाम रिकॉर्ड 84.4 बिलियन यूएस डॉलर पहुंच गया, जो पिछले साल की तुलना में 20.3 प्रतिशत अधिक है।
उन्होंने जोर दिया कि चीन, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना हुआ है। द्विपक्षीय निवेश ने भी सतत बढ़ोतरी देखी है। उन्होंने अनुमान लगाया कि चीनी उद्योगों द्वारा भारत में कुल निवेश 8 बिलियन यूएस डॉलर से अधिक है जबकि पिछले तीन सालों में भारत का चीन में निवेश औसतन 18.5 फीसदी बढ़ा है। जोंग शान ने कहा कि दोनों देशों ने बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली और क्षेत्रीय आर्थिक सहकारिता में बहुत करीब से एक दूसरे को सहयोग और समर्थन किया तथा नए अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक क्रम के संयुक्त निर्माण में अहम योगदान दिए जिसने विकासशील देशों के सरोकार को सुरक्षित रखा है।
चीनी मंत्री ने चीन-भारत व्यापार के आगे के विकास और कई इलाकों में आर्थिक सहयोग को प्रस्तावित किया। पहला, चीन बेल्ट एंड रोड पहल को भारत के 15 साल के विजन प्लान, मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के साथ परस्परनुबंध कराने के लिए भारत के साथ हाथ मिलाने को इच्छुक है।
दूसरा, चीन ने व्यापार सहज बनाने के लिए संयुक्त कार्य दल स्थापित करने और निवेश सहयोग के लिए औद्योगिक क्षेत्रों पर काम करने वाले संयुक्त दल में सुधार को प्रस्तावित किया है। चीन मानव संसाधन के विकास में भी सहयोग देने का इच्छुक है। यह भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संयुक्त रूप से बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को सुरक्षित रखने और समर्थन देने के लिए तैयार है। चीन उम्मीद कर रहा है कि क्षेत्रीय विस्तृत आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) सिर्फ उच्च गुणवत्ता और आपसी फायदे वाला ही नहीं होगा, जल्द से जल्द हस्ताक्षर कर दिया जाएगा।
भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु ने दोनों देशों के नेताओं द्वारा सर्वसम्मति के मुद्दों को संयुक्त रूप से लागू किया जाएगा और दोनों तरफ की विकास रणनीतियों को जोड़ा जाएगा चूंकि दोनों तरफ विकास अनुभवों को साझा करते हैं। प्रभु ने कहा कि भारत बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली का समर्थन करता है और उम्मीद करता है तथा क्षेत्रीय और वैश्विक व्यापार के विकास को बढ़ावा देने और बनाए रखने के लिए चीन के साथ संचार और समन्वय को मजबूत करने की उम्मीद रखता है। ऐसी संभावना है कि अपने द्वारा शुरू किए गए शुल्क लड़ाई का यूएस को खुद सबसे अधिक नुकसान होगा। कई विशेषज्ञों के मुताबिक, खासतौर पर चीन और भारत में विशाल बाजारों को देखते हुए, चूंकि सभी प्रभावित देश यूएस बाजार से अपने नुकसान की भरपाई करने के लिए आपस में व्यापार करना शुरू कर देंगे। वैश्विक आर्थिक सेवा प्रदाता डीबीएस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एशिया की दस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में, चीन और भारत समेत, 28 ट्रिलियन यूएस डॉलर से अधिक का जीडीपी होगा और जो 2030 के पहले तक यूएस को पीछे छोड़ देगा।

संबंधों की मजबूती
विश्व की दो सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश एक समान लक्ष्य की ओर काम कर रहे हैं। चीन ने भारत के कुछ कृषि उत्पादों के शुल्क हटा दिए और भारतीय दवाओं के आयात को आसान बनाने का फैसला किया है। यूएस की संरक्षणवादी नीतियों से निपटने के लिए, यूएस आयातों पर शुल्क लगाने के लिए भारत ने चीन, कनाडा, मेक्सिको और ईयू से हाथ मिलाया है।
अक्टूबर में दिल्ली में चीनी दूतावास द्वारा घोषणा के मुताबिक, यूएस द्वारा व्यापार संबंधी विवादों पर बहुपक्षीय दृष्टिकोण अपनाने के संदर्भ में भारत और चीन को अपने सहयोग को गहरा करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा और न्यायपूर्ण व्यापार सिर्फ चीन के आर्थिक विकास को ही नहीं प्रभावित करेगा बल्कि भारत के बाहरी माहौल को नष्ट कर देगा और उसकी उभरती अर्थव्यवस्था में रुकावट लाएगा।
वुहान की अपनी यात्रा के दौरान, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से आर्थिक व्यवसायों पर बात की। राष्ट्रपति शी ने प्रधानमंत्री मोदी को सुझाव दिया कि दोनों देशों को द्विपक्षीय व्यापार का नया लक्ष्य 2020 तक 100 बिलियन यूएस डॉलर रखना चाहिए। बीजिंग भारतीय व्यापार घाटे से निपटने के लिए गैर-बासमती चावल और शक्कर आयात करने की ओर देख रहा है।
भारतीय और चीनी सामानों पर अमेरिका की ज्यादा शुल्क लगाने की धमकी के अंतर्गत, दोनों देशों को द्विपक्षीय व्यापार को व्यापार सरल संयुक्त कार्यकारणी दल की स्थापना करके तथा औद्योगिक क्षेत्रों में निवेश सहयोग के संयुक्त कार्यकारिणी दल को सुधार के द्विपक्षीय व्यापार को बेहतर करना होगा। चूंकि यूएस संरक्षणवादी बन रहा है, भारत और चीन एक-दूसरे के करीब जा रहे हैं।
लेखक अंतरराष्ट्रीय व्यापार के सेवानिवृत्त वरिष्ठ प्राध्यापक हैं।