भारत और चीन में आर्थिक सुधारों की तुलना

उन्नति के प्रदर्शन को ऊंचाई तक पहुंचने के लिए आर्थिक सुधार अहम उपकरण रहा है, लेकिन यह हमेशा बड़े स्तर पर भारत और चीन दोनों में विकास की विशाल जटिलता को लाता है। हालांकि, उनके सुधार उपाय, रणनीतियां और लागू करना बेहद अलग होती हैं।
by महेंद्र पी. लामा
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26 नवम्बर 2018:दूसरी चीन-भारत सामरिक आर्थिक वार्तालाप भारत की राजधानी नयी दिल्ली में आयोजित हुई।(फोटोग्राफ़र/ सिन्हुआ के पत्रकार ली ईकांग)

उन्नति के प्रदर्शन को ऊंचाई तक पहुंचने के लिए आर्थिक सुधार अहम उपकरण रहा है, लेकिन यह हमेशा बड़े स्तर पर भारत और चीन दोनों में विकास की विशाल जटिलता को लाता है। वे राजनीतिक आर्थिक पृष्ठभूमियां जो जबरदस्त आर्थिक सुधार लाना चाहती हैं तेजी से परिवर्तित होते हुए प्रत्येक देशों में प्रचलित हुई हैं। भारत में, 1991 का आर्थिक संकट राजनीतिक अस्थिरता के साथ जुड़ गया और एक ऐतिहासिक निम्न वृद्धि काल ने हिंदू विकास दर को संवारा जिसने अंत में अवलंबी सरकार को लगभग वाशिंगटन कंसेंसस द्वारा बताए गए ढांचागत सामंजस्य कार्यक्रम लेने के लिए मजबूर किया। चूंकि चीन वैश्विक आर्थिक और वित्तीय प्रणाली से अलगाव के साथ तथासांस्कृतिक क्रांतिसे हुए लंबे विस्थापन और खलल से उभरा है, देश को ठीक होने वाले रास्ते पर जाना पड़ा जो उग्र और सतत ढांचागत और नीति बदलाव पर आधारित था।

सूचीपत्र, खंडीय क्षेत्र, तीव्रता निरंतरता, राजनीतिक प्रतिबद्धता जन स्वीकृति के मामले में सुधार उपाय और अमल करना दोनों देशों में काफी अलग हैं। प्रत्येक देश अब एक अलग चरण के आर्थिक सुधार में है। दिखाई देने, प्रकृति और क्षेत्र के मामले में आर्थिक सुधार के संबंधित प्रभावों में अलग हैं। आश्चर्यजनक ढंग से दोनों देशों में महसूस होने वाले ढांचागत बदलाव हुए हैं। कृषि के नेतृत्व वाले प्राथमिक खंड का हिस्सा धीरे-धीरे घटकर 25 फीसदी  से कम हो गया है जबकि उसी दर से तृतीय क्षेत्र में बढ़ गया। अन्य सूचक जैसे कि बचत और निवेश दर, व्यापार जीडीपी अनुपात, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और विदेशी विनिमय आरक्षित निधि ने भी अभूतपूर्व बदलाव दिखाए हैं। आश्चर्यजनक रूप से दोनों देशों में राष्ट्र के एक विशेष क्षेत्र में धीमी गति से सुधारों को लागू करने की समानता साझा करते हैं। चीन में, शंघाई, कुआंगतोंग और फुजियान जैसे समुद्रतटीय क्षेत्रों ने प्रभावशाली ढंग से लागू किये गए सुधार की वजह से संपत्ति बनाई। सन् 2000 मेंपश्चिम का विकासनीति की शुरुआत ने साबित किया कि लगभग दो दशकों के सुधारों और उसके साथ के फल शायद ही अंतर्देशीय दक्षिण-पश्चिम प्रांतो और स्वायत्त प्रदेशों जैसे कि युन्नान, तिब्बत और छिंगहाई तक पहुंच नहीं है।

भारत में, दक्षिण और पश्चिमी राज्यों ने तेज प्रगति दर्ज की और दूसरी पीढ़ी के सुधारों को अपनाया जबकि पिछड़े राज्य जैसे कि उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और पहाड़ी राज्य जैसे कि हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और उत्तराखंड कई सालों तक पीछे चलते रहे। हालांकि, दोनों देरों में पिछले दशक में पीछे चल रहे इन प्रांतो ने अद्भुत विकास छलांग लगाई है।

 

गरीबी और असमानता

गरीबी को कम करने की ताकतों में आर्थिक विकास, बढ़े उत्पादन और अधिक खपत, जो दोनों देशों में विख्यात है। गरीबी के स्वभाव के लक्षणों जैसे कि सामाजिक-आर्थिक नुकसान, राजनीतिक-सांस्कृतिक विरक्ति और राज्य संसाधनों तक पहुंच की कमी, प्रौद्योगिकी और स्थानीय वितरण द्वारा परिभाषित किया हुआ है। भारत ने गरीबी में 1994 के 45.3 फीसदी से 2012 के 21.9 फीसदी के महत्वपूर्ण कमी को दर्ज किया है। इस प्रचंड सुधार के बावजूद, 270 मिलियन लोग अब भी दयनीय गरीबी में जी रहे हैं। इसी तरह, भारत में गिनी कोएफ्फीसेंट आधारित असमानता 2011 में 36.8 अंदाजित था। भारत की प्रमुख योजनाएं जैसे कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी, शिक्षा का अधिकार और अनाज का अधिकार ने बहुत बड़ा बदलाव किया।

जब राष्ट्रपति शी ने अक्टूबर 2017 में सीपीसी की 19वीं राष्ट्रीय कांग्रेस को दिए अपने भाषण में इस बात का उल्लेख किया कि पिछले पांच सालों में 60 मिलियन लोगों से भी ज्यादा को गरीबी से बाहर निकल गया, तो कोई भी आश्चर्यचकित नहीं था। यह अविश्वसनीय सफलता के परिणाम चीन में पहले से ही दिखाई देने लगे थे। एक दशक पहले विश्व बैंक जब अपनेडॉलर डेकी वैश्विक गरीबी मानदंड का पुनर्परीक्षण कर रहा था निष्कर्ष निकाला कि 1990-2004 में 14 साल के दौरानतकरीबन 407 मिलियन चीनी नागरिक गरीबी से छुटकारा पाए हैं।इस सफलता के लिए स्पष्ट दृष्टि, विशेष ढांचागत हस्तक्षेप और शीर्ष उन्नति दौर के लिए धीरे-धीरे ध्वनि के तंत्रों के प्रारूप को खास श्रेय दिए थे। राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग (एनडीआरसी) ने 13वीं पंचवर्षीय योजना (2016-2020) के खत्म होने पर तंग श्याओफिंग केएक समाज जिसमें लोग अच्छे से आरामदायक जीवन बिता सकेस्थापित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने की समय सीमा रखी है। इस लक्ष्य को 2002 में 16वीं सीपीसी राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा ध्यान में रखा और दोहराया गया।

 

14 अप्रैल 2012:भारतीय मज़दूर सौर पैनल लगा हुए। भारत सरकार ने 2010 से “राष्ट्रीय सौर योजना” शुरू की, जिसका मकसद 2022 तक देश की सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता 20,000 मेगावाट तक पहुंचना है और ग्रिड तक पहुंच के बिना सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता 2000 मेगावाट तक पहुंचना है।(सिन्हुआ)

उत्पादन में परिवर्तन

भारत में, जब प्रभावशाली ऊंचाइयों को विशाल ढांचागत बदलाव चाहिए था तब सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयां कटाई खंड के करीब हुआ करती थीं। कई तरह के अलग-अलग हस्तक्षेप जिसमें विनिवेश से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्रतिभाग तक किये गए। देश ने उत्पादन क्षेत्रों जैसे कि ऑटोमोबाइल और घरेलू उपभोक्ता समान जैसे कि अनाज और कपड़े में आगे ले जाने वाले परिवर्तन को अपनाया है। हालांकि, चीन की तुलना में, अनुसंधान और विकास गतिविधियां निजी और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों में भारत का निधि प्रावधान छोटा रहा है। भारत के विपरीत, चीनी अर्थव्यवस्था पहले विदेश में रहने वाले चीनी लोगों के आश्चर्यजनक निवेश और बाद में बड़ी जापानी और अमेरिकी कंपनियों ने जब अपने उत्पादन आधार को चीन में स्थानांतरित करना शुरू किया तब अचानक से तेजी से बढ़ी। जल्द ही, चीन ने सोनी कैमरा, तोशिबा लैपटॉप, एचपी मशीन और अन्य लोकप्रिय अंतर्राष्टीय इलेक्ट्रॉनिक का उत्पादन शुरू कर दिया था। ये सभी चीन निर्मित ब्रांड डब्लूटीओ के उदारवादी प्रावधान की वजह से अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में जा गए। आज चीन एक बड़ा विदेशी निवेशक बनकर उभरा है। भारत ने सुस्पष्ट ढंग से चीन को वैश्विक आमदनी के लिए अहम केंद्र बिंदु के तौर पर माना है। इसका आर्थिक सर्वेक्षण 2014-15 बताता है कि, आज, चीन वास्तविक रूप से उन सरकारों के लिए जो आर्थिक तनाव से गुजर रहे हैं, को कर्ज देने वाला आखिरी सहारा बन गया है.... यह अपने आरक्षित निधि की वजह से अंतर्राष्ट्रीय  मुद्रा कोष और एक विश्व बैंक का किरदार निभा रहा है।

भारत में, ऊर्जा में सार्वजनिक क्षेत्र का वर्चस्व है जिसने प्रत्येक प्रांत में तीन पृथक उत्पति, संचार और वितरण कंपनियों में बांट दिया है। यह राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर प्रमुख रूप से बिजली नियामक आयोगों द्वारा निगरानी किया जाता है। बदलाव ने आर्थिक सहायता में तेजी से कमी, कई निजी कंपनियों का पदार्पण, लगाई गई क्षमता में तेज उछाल और गुणवत्ता में सतत सुधार और बिजली आपूर्ति में विश्वसनीयता ला दिया है। और यह सब हुआ बेहद बढ़े हुए संगत दर के बीच हुआ। इस तरह की कार्यप्रणालियों की परस्पर तुलना करना, चीन में, चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (सीएनपीसी) जैसी विशाल सार्वजनिक क्षेत्र इकाईयों ने ऊर्जा के सस्ते और टिकाऊ स्रोत की खोज में एशिया, यूरोप और अफ्रीका महाद्वीपों को छान मारा।

 

मूलभूत सुविधाओं में उछाल

एक क्षेत्र जहां सुधारों को अपनाए जाने के बाद चीन एक आदर्श बन गया वह भौतिक मूलभूत सुविधाएं जैसे कि सड़क, रेल, एयरपोर्ट, समुद्र, बंदरगाह, संचार, बैंक और यहां तक कि सामाजिक आधारभूत सुविधाएं जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य और पीने का पानी हैं। जापान और अमेरिका, चीन की मूलभूत सुविधाओं में परिवर्तन जिसमें दौर स्थापित करने वाले आर्थिक क्षेत्र शन जन शामिल हैं एक आदर्श रहे हैं। चीन का विस्तृत रूप से चर्चित बेल्ड एंड रोड पहल एक वाहन है जो उसके मूलभूत सुविधाओं के विकास के घरेलू परिपेक्ष्य को अन्य क्षेत्रों में जिसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा शामिल है।

भारत तुलनात्मक रूप से आधुनिक भौतिक आधारभूत सुविधाओं में पीछे चल रहा है। गंभीर न्यूनतम स्तर की सुविधाओं के लिए भारत को 1 ट्रिलियन यूएस डॉलर (कर्ज चुकाने के लिए 750 बिलियन यूएस डॉलर की जरूरत है) की जरूरत है। आज, भारत मूलभूत सुविधाओं में 144 देशों में से 87वें क्रमांक पर है, और यदि मांग को पूरा किया जाता, तो यह भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ाकर 9 फीसदी तक पहुंचा देता। यद्यपि भारत ने 2006 में हीइंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसकी शुरुआत की थी, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मूलभूत सुविधा और निवेश कोभारत के परिवर्तनका पांचवां स्तंभ घोषित किया। उन्होंने 2016 और 2017 में आश्चर्यजनक रूप से दो महत्वपूर्ण सुविधाओं सड़क और रेलवे योजनाओं के लिए 33 बिलियन यूएस डॉलर के कुल खर्च का प्रावधान करनिर्णयात्मक शुरुआतकी।

 

जल असुरक्षा

चीन की बेहद विशाल जन स्वास्थ्य नीतियों, असमांतर शहरीकरण, नवीनीकरण ऊर्जा को खिसकना, फैले हुए और विकेंद्रीकृत औद्योगिकीकरण, निश्चित अनाज सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन तथा विशाल हरित पर्यावरण योजनाओं के लिए पानी नाजुक है। चाइना वॉटर रिस्क द्वारा 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट टुवर्ड्स वॉटर एंड एनर्जी सिक्योर चाइना में बताया गया है कि चीन के 11 प्रांत (सूखे 11) विश्व बैंक जल कमी के 1000 घन मीटर स्तर से कम हैं जिसमें आर्थिक शक्ति च्यांगसू और शानतोंग तथा बीजिंग, शंघाई और थ्येनचिन की महानगरपालिकाएं शामिल हैं। चीन की कुल जीडीपी का तकरीबन आधा इन 11 सूखे प्रांतो से आता है। इसमें आगे बताया है कि आठ प्रांत तो अत्यंत पानी की कमी 500 घन मीटर से भी नीचे के स्तर से जूझ रहे हैं। दक्षिण से उत्तर मोड़ योजना, जिसे विश्व की सबसे बड़ी जल घुमाव योजना मानी जाती है, पर 81.4 बिलियन यूएस डॉलर खर्च होने का अंदाज है। पानी की कमी को घटाने और उसकी गुणवत्ता को सुधारने के लिए श्रेय पा चुके, पहला फिराव रास्ता जो 1432 किलोमीटर लंबा है मुख्य रूप से खुली हवा नहर का बना हुआ है। पूर्वी मार्ग का पहला चरण च्यांगसू प्रांत के च्यांगतू में यांगत्ज़े नदी से शानतोंग तक बीजिंग-हांगचो मुख्य नहर के साथ पानी ले जाता है।

करीब 53.1 मिलियन लोग उत्तरी चीन में इस परियोजना से लाभान्वित हुए हैं। यह परियोजना 2014 के आखिर में शुरू हुई और तब से करीब 10 बिलियन घन मीटर पानी दक्षिण से सूखेग्रस्त उत्तर में पहुंचाया गया। पंप किया हुआ पानी अब बीजिंग और थ्येनचिन जैसे शहरों में पहुंच गया। इसके साथ ही, हेबेई के 7 शहरों, हेनान के 11 शहरों और 37 काउंटियों के निवासियों के पास अब पथान्तर किया हुआ पानी है। भारतीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार द्वारा पूरी तरह से नियोजित परियोजनाएं जैसे कि केन-बेतवा नदी जोड़ प्रकल्प, कमी झेल रहे इलाकों के लिए भारत की जल फिराव योजनाएं गंभीर पर्यावरण और निरंतरता की चिंताओं की वजह से कागजों पर ही रह गयी हैं।

 

लेखक नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में वरिष्ठ प्राध्यापक हैं।