भारतीय सभ्यता

भारत सबसे पुरानी प्रमुख विश्व सभ्यताओं में से एक है- चीन के साथ प्राचीन सभ्यताओं से पैदा हुए चार प्रमुख देशों में से एक है। कई क्षेत्रों में भारतीय सभ्यता की कई प्रभावशाली उपलब्धियों के साथ-साथ इसके अद्वितीय मूल्यों और वैचारिक प्रणालियों ने वैश्विक सभ्यता मानचित्र पर इसकी महत्वपूर्ण स्थिति को पुख्ता किया है।
गहन दीप्तिमान शक्ति के साथ, भारतीय सभ्यता ने मानव समाज की निरंतर प्रगति में उत्कृष्ट योगदान करके हजारों वर्षों तक एशिया और दुनिया पर गहरा प्रभाव डाला है।
इसके साथ ही, भारतीय और चीनी सभ्यताएँ निकटता से जुड़ी हैं तथा गहराई से बद्धमूल हैं।
राष्ट्रीय विकास के लंबे इतिहास में, भारतीय सभ्यता ने सभी तरह के उतार-चढ़ाव का अनुभव किया है, लेकिन यह चार हजार वर्षों में जबरदस्त कठिनाइयों के बावज़ूद जीवित रहा और यहाँ तक कि 20 वीं शताब्दी के मध्य में नवजागरण का अनुभव भी किया है। यह भारतीय राष्ट्र की महानता और इसकी सभ्यता की शक्ति का प्रमाण है।
धार्मिकता, विविधता और समग्रता भारतीय सभ्यता की कुछ सबसे शानदार विशेषताएं हैं। तथापि आधुनिक समय में, भारतीय सभ्यता ने परंपरा से लेकर आधुनिकता तक परिवर्तन के दौरान कुछ नई विशेषताएं भी विकसित की हैं।
सबसे पहले, 19 वीं शताब्दी के मध्य से देश की धार्मिकता धीरे-धीरे कम हो गई है। राष्ट्रीय स्वतंत्रता प्राप्त करने के पश्चात्, भारत के सर्वप्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने देश संचालन हेतु, धर्मनिरपेक्षता को महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक के रूप में नामांकित किया है। यह धर्मनिरपेक्ष संघर्ष एवं ईश्वरीय राजनीति को सीमित करने के उद्देश्य से किया गया था।
इस नीति ने सकारात्मक फल प्राप्त किए हैं और मूल रूप से भारतीय सभ्यता के विकास के रुझानों को प्रभावित किया है। आर्थिक विकास और वैज्ञानिक प्रगति के माध्यम से, भारतीय सभ्यता अधिक आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष बन गई है। लोकतंत्र या धर्म-भारी राजनीति का अभ्यास करने वाले देशों की तुलना में, भारत ने सामाजिक विकास में बहुत अधिक सशक्त उपलब्धियां प्राप्त की हैं।
दूसरा, भारतीय अपनी राष्ट्रीय परंपराओं को संजोते हैं। भारतीय समाज ने कभी भी किसी भी कट्टरपंथी सांस्कृतिक आंदोलनों का अनुभव नहीं किया है। देश की आजादी के बाद से, भारत का सामाजिक और सांस्कृतिक विकास काफी स्थिर रहा है और पारंपरिक संस्कृति के विनाश से बचा है।
भारतीय अपनी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं का बहुत ध्यान रखते हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली की रक्षा के लिए, कई सांस्कृतिक अवशेषों और ऐतिहासिक स्थलों वाले पुराने शहर में, उन्होंने दक्षिण में एक नई राजधानी(नई दिल्ली) बनाने का विकल्प चुना। ऐसा करके, प्राचीन राजधानी पूरी तरह से अपने इतिहास और संस्कृति के साथ संरक्षित थी। तीसरा, भारतीय अन्य देशों से सीखने की परंपरा को आगे बढ़ाते हैं। भारतीय सभ्यता कभी भी स्थिर या प्रवाहहीन नहीं रही है, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों को अवशोषित करके निरंतर विकसित और समृद्ध हो जाती है।
औपनिवेशिक युग में, हो सकता है कि पश्चिमी संस्कृति को भारतीयों पर मजबूर किया हो, लेकिन स्वतंत्र भारत अपने आप को समृद्ध और विकसित करने के लिए दुनिया में हर उन्नत संस्कृति को सक्रिय रूप से अवशोषित कर रहा है। फलस्वरूप, समकालीन भारतीय लोग बहुत खुले विचारों वाले तथा सीखने के लिए उत्सुक हैं।
विदेशी सभ्यताओं से सीखकर, भारतीयों ने अद्वितीय फायदे विकसित किए हैं, जैसा कि भारत के सॉफ्टवेयर उद्योग के उत्थान से वर्णित होता है। न केवल यह भारतीयों की असाधारण गणितीय क्षमताओं का सबूत है-यह काफी हद तक उनकी अंग्रेजी क्षमताओं से प्रेरित है।
यद्यपि भारतीय, पश्चिमी लोगों से आनुवांशिक और भाषायी रूप से जुड़े हुए हैं और भारतीय सभ्यता पश्चिमी सभ्यता के पोषण को अवशोषित करती रही है, भारतीय सभ्यता ने अद्वितीय विशेषताओं और मूल्य प्रणालियों को बनाए रखा है। भारतीय सभ्यता में परिवर्तन केवल आंतरिक विकास के रूप में आ सकते हैं- न तो परंपराओं को त्यागना और न ही लकीर के फकीर तक सीमित होना। वास्तविकता का सामना करते हुए यह इतिहास में दृढ़मूल है। परंपरागत से आधुनिक में परिवर्तन की प्रक्रिया में, भारत प्रभावशाली जीवन शक्ति के साथ चमक रहा है।
ल्यू चिएन और जी वेच्वन चीनी विज्ञान अकादमी (सीएएसएस) की एशिया-प्रशांत और वैश्विक रणनीति संस्थान में शोधकर्ता हैं। चू मिंगजोंग सीएएसएस के एशिया-प्रशांत अध्ययन संस्थान और सीएएसएस के तहत बौद्ध धर्म अनुसंधान केंद्र में एक शोधकर्ता हैं।