सीआईआईई के मौके को भुनाना

भारत में छोटे और मध्यम आकार की कंपनियों के लिए सीआईआईई एक बढ़िया नेटवर्किंग और मार्केटिंग मौका है जिससे वह वैश्विक निर्यातक और खिलाड़ी विश्व के बाजार में बन सकता है।
by चैतन्य मल्लापुर
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हाल के सालों में, चीनी उपक्रमों ने बल्ट एंड रोड से जुड़े देशों के आर्थिक निर्माण के लिए “मेड इन चाइना” का हल दिया है। यह फोटो शेनयांग, ल्याओनिंग प्रांत के नॉर्दर्न हैवी इंडस्ट्रीज ग्रुप कंपनी लिमिटेड के बड़े उपकरण उत्पादन की कार्यशाला दिखा रहा है। (सिनहुआ)

नवंबर 2018 में शंघाई में चीन अंतर्राष्ट्रीय आयात एक्सपो का आयोजन किया। इसके पीछे का उद्देश्य चीन को एक उत्पादन केंद्र से बदलकर खपत चालित अर्थव्यवस्था बनाने का है। भारत को इस मौके का फायदा उठाना चाहिए क्योंकि यह भारतीय निर्यातकों को चीन में स्थानीय बाजारों तथा सेवाओं वस्तुओं की आपूर्ति और मांग को समझने का मौका मिलेगा।

वैश्विक खरीदार और विक्रेता के मंच के तौर पर, यह एक्सपो आने वाले सालों में भारतीय और चीनी कंपनियों के बीच सहयोग बढ़ाएगा तथा विदेशी निवेश को बढ़ावा देगा जो कई व्यापार नीतियों और अनुबंधों से मिलता है। यह भारतीय उत्पादनकर्ताओं और निर्यातकों को चीनी बाजार के लिए उत्पादनों और सेवाओं की प्रदर्शनी के लिए मंच देगा। भारतीय व्यापारियों को इस एक्सपो पर बारीकी से ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह चीनी बाजारों में बड़ी पहुंच के माध्यम से बढ़ते व्यापार नुकसान को ठीक करने में मदद कर सकता है।

 

सीआईआईई के मौके का फायदा उठाएं

सन 1978 में सुधार और खुलेपन के बाद से चीन की अर्थव्यवस्था कई गुना बढ़ गयी है। सन 2010 में, जापान को पीछे छोड़ने के बाद, चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई। आज यह उत्पादन शक्ति केंद्र और दुनिया में सामानों का सबसे बड़ा निर्यातक है। भारत, जो उभरती अर्थव्यवस्था है और चीन का मजबूत प्रतिस्पर्धी है, इसके नक्शे कदम पर चल रहा है। हालांकि, भारत के लिए चिंता का विषय है इसका चीन के साथ व्यापार में हो रहा बढ़ता घाटा, जो 74 फीसदी तक बढ़कर 2013-14 में 36 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 2017-18 में 63 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है। यह असंतुलन चीन को निर्यात की तुलना में बढ़ रहे आयात की वजह से हो रहा है जिसका कारण घरेलू बाजारों में सामानों की कमी या अनुपलब्धता और विदेशी उत्पादकों की कीमत स्पर्धात्मकता है। सन 2017-18 में लगभग 90 बिलियन अमेरिकी डॉलर जो 2013-14 के 66 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 36 फीसदी अधिक है, के द्विपक्षीय व्यापार के साथ चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।

सन 2017 में, चीन द्वारा आयोजित बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शिखर मंच में भारत ने हिस्सा नहीं लेने फैसला लिया। इसमें 29 देशों के प्रतिनिधियों और 100 से अधिक देशों के दलों ने हिस्सा लिया था। इस परियोजना का उद्देश्य रेल, सड़क और समुद्र के माध्यम से एशिया, यूरोप और अफ्रीका को जोड़ना जिसके जरिये पूरे क्षेत्र में व्यापार को सुगम बनाना है। चीन ने इस परियोजना पर अगले पांच सालों में 800 बिलियन अमेरिकी डॉलर निवेश करने की योजना बनाई है। बीआरआई के साथ जुड़ना भारत के लिए चीन के साथ व्यापार में हो रहे घाटे की भरपाई करने का एक बेहतरीन मौका होगा।

इस मामले में अब तक बेहद कम प्रगति होने की वजह से भारत को यह निश्चित करने की जरूरत है कि वो सीआईआईई जो संभावनाएं दे रहा है उसे जाया करे। भारत में चीन से आयात होने वाले सामानों में प्रमुखतः इलेक्ट्रिकल मशीन, मैकेनिकल सामान, टेलीकॉम उपकरण, कंप्यूटर हार्डवेयर और बाहरी सामान, जैविक रसायन, उर्वरक, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक, प्लास्टिक सामान और लोहा और स्टील हैं। प्रमुख निर्यातों में जैविक रसायन, खनिज ईंधन, तांबा वस्तु, सूती और तेल, नमक, प्लास्टर की सामग्री और जानवरों सब्जियों के तेल और चर्बी शामिल हैं। भारत को चीन के बाजारों में गहराई से जाना होगा उनके स्थानीय जरूरतों को पूरा करने के लिए। अपने निर्यात को बढ़ाने के लिए, एशिया महासागर व्यापार अनुबंध के तहत अरंडी के तेल, पुदिना, ग्रेनाइट और हीरों पर शुल्क माफी देने की पेशकश कर रहा है। भारत अब चीन के साथ व्यापार अनुबंध कर रहा है।

 

आगे का रास्ता

भारत को अपने बाजारों में और अधिक चीनी निवेश लाने की जरूरत है। चीन के एफडीआई के सामान्य हिस्से के भाग अंतर्वाह अप्रैल 2000 से जून 2018 तक भारत के कुल एफडीआई अंतर्वाह का सिर्फ 0.53 फीसदी है। उन सालों में चीन से अंतर्वाह एफडीआई भाग भारत में बढ़कर 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।

जो भाग चीन से सर्वाधिक निवेश प्राप्त कर रहे हैं उसमें ऑटोमोबाइल उद्योग, धातु संबंधी उद्योगों, सेवाओं, इलेक्ट्रिकल उपकरण और औद्योगिक मशीनरी हैं। बढ़ते मजदूर वेतन की वजह से आने वाले सालों में चीन में उत्पादन विभाग एक बड़े बदलाव की उम्मीद कर रहा है।

इस वजह से चीन की उत्पादन कंपनियों को बांग्लादेश, लाओस और अफ्रीकी देशों की ओर देखने को मजबूर कर दिया। चीन, एक ऐसा देश जिसकी जनसंख्या 1.4 बिलियन है वो भारतीय उत्पादों जैसे कि दवाओं, सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं और खेती के उत्पादन जैसे कि फल, सब्जियां और मांस के लिए विविधता से भरा बाजार दे सकता है। यह प्रदर्शनी अपने भविष्य के संस्करणों में निर्यातकों की मदद चीन की आंतरिक जरूरतों और घरेलू उपभोक्ता मांग को पूरा करने में मदद करेगा।

एक्सपो में लगे स्टाल्स भारतीय उत्पादकों को विविध तरह के उपभोक्ताओं को समझने में अपने ब्रांड जागरूकता से माध्यम से मदद करेंगे। भारत के छोटे और मध्यम आकार की कंपनियों के लिए यह एक बड़ा नेटवर्किंग और मार्केटिंग मौका होगा जिससे वे निर्यातक और वैश्विक बाजार के खिलाड़ी बन सकते हैं। भारत को इस मौके का इस्तेमाल करने की जरूरत है जो इसे वैश्विक उत्पादन केंद्र में बदलेगा और वैश्विक आपूर्ति श्रंखला में और गहराई से जोड़ेगा। यह एक्सपो भारत के तेजी से बढ़ते उपभोक्ता मांग, रोजगार निर्माण, प्रतिस्पर्धात्मकता बनाये रखना और सबसे महत्वपूर्ण यह व्यापार में हो रहे नुकसान के अंतर को आयात में कमी लाकर और निर्यात को बढ़ावा देकर मिटा सकता है।

भारत कोमेक इन इंडियाआधारित अपने सपनों को प्रभावशाली ढंग से बदलाव करमेड इन इंडियाब्रांड में करने की जरूरत है। यह पाने के लिए, नीतियों को गुणवत्ता उत्पादन, प्रतिस्पर्धात्मकता, नए विचार और प्रौद्योगिकी संचालित उपकरण पर ध्यान देने की जरूरत है।

 

लेखक मुंबई में रहने वाले विदेश नीति विश्लेषक हैं।