शांगहाई सहयोग संगठन के ढांचे में चीन-भारत सहयोग का आउटलुक

शांगहाई सहयोग संगठन की प्रणाली में क्षेत्रीय सुरक्षा व स्थिरता, आपसी संपर्क, ऊर्जा, वित्त, शिक्षा आदि क्षेत्रों में सहयोग चीन-भारत दोनों देशों और शांगहाई सहयोग संगठन के सभी सदस्य देशों के हितों से मेल खाता है। विश्वास है कि दोनों देश द्विपक्षीय अंतर्विरोध को दरकिनार करते हुए शांगहाई सहयोग संगठन के विकास में भाग लेकर आगे बढ़ावा दे सकेंगे।
by लोंग शिंगछ्वन, शंग यांगयांग
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9 जून, 2017: कज़ाखस्तान की राजधानी अस्थाना में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के अन्य सदस्य देशों के नेताओं के साथ-साथ भारतीय और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री, राज्य के प्रमुखों की परिषद की 17वीं बैठक में एक साथ तस्वीर खींचवाते हुए। बैठक में, भारत और पाकिस्तान को आधिकारिक तौर पर एससीओ में सदस्य राज्यों के रूप में शामिल किया गया। [सिन्हुआ]

शांगहाई सहयोग संगठन की स्थापना की शुरूआत में भारत ने बड़ी रुचि दिखायी। 2005 में भारत ने शांगहाई सहयोग संगठन का पर्यवेक्षक देश बनने का आवेदन किया। 2009 में येकातेरिनबर्ग शिखर सम्मेलन में भारत ने पहली बार शिखर कमेटी में हिस्सा लिया। यह इस बात का द्योतक है कि भारत का शांगहाई सहयोग संगठन में प्रवेश की प्रगति वास्तविक तौर पर तेज हो चुकी थी। 2015 में शांगहाई सहयोग संगठन के ऊफ़ा शिखर सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान को शांगहाई सहयोग संगठन में शामिल करने की प्रक्रिया संबंधी प्रस्ताव को मान लिया गया। भारत और पाकिस्तान ने इस संगठन में हिस्सा लेने की तैयारी शुरू की। 2017 के जून माह के अस्ताना शिखर सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान को शांगहाई सहयोग संगठन का औपचारिक सदस्य देश बनने की पुष्टि की गयी। भारत द्वारा शांगहाई सहयोग संगठन में भाग लेने से चीन और भारत के लिए नया बहुपक्षीय सहयोग मंच तैयार हुआ।
शांगहाई सहयोग संगठन यूरोपीय और एशियाई महाद्वीप में सबसे बड़ा क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय सहयोग संगठन है। यूरोप और एशिया के महाद्वीप में सबसे बड़ा क्षेत्रफल और सबसे बड़ी आबादी वाले तीन देश चीन, भारत और रूस मौजूदा शांगहाई सहयोग संगठन के तीन सबसे बड़े सदस्य देश भी हैं, जो क्षेत्रीय शांति व स्थिरता पर अहम कर्त्तव्य निभा सकते हैं। सही मायने में चीन-रूस और भारत-रूस संबंध चीन-भारत संबंध से बेहतर हैं। यदि चीन और भारत शांगहाई सहयोग संगठन की सहयोग प्रणाली का कारगर प्रयोग कर सक्रिय रूप से बहुपक्षीय सहयोग करेंगे, तो न सिर्फ़ शांगहाई सहयोग संगठन के विकास के लिए, बल्कि चीन-भारत द्विपक्षीय संबंधों के विकास को आगे बढ़ाने में भी लाभदायक है।

क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता को आगे बढ़ाना
अफगानिस्तान में अमेरिका द्वारा चलाये गये आतंक-रोधी युद्ध को 16 साल हो चुके हैं। अमेरिका करोड़ों अमेरिकी डॉलर खर्च कर चुका है और युद्ध में लाखों लोग घायल हुए हैं। लेकिन अभी भी शांति व स्थिरता की संभावना नहीं देखी जा सकती है। यह स्पष्ट है कि अफगानिस्तान की स्थिरता सिर्फ अमेरिका और नाटो की सैन्य कार्यवाई से हासिल नहीं की जा सकती है, बल्कि चीन और भारत जैसे अफगान के पड़ोसी देशों की भागीदारी की आवश्यकता भी है।
चूंकि सभी सदस्य देश आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के खतरों का सामना करते हैं, इसलिए शांगहाई सहयोग संगठन अफगान समस्या को बड़ा महत्व देता है। 2012 शांगहाई सहयोग संगठन के पेइचिंग शिखर सम्मेलन में हस्ताक्षर किये गये《चिरस्थायी शांति और समान समृद्धि वाले क्षेत्र का निर्माण करने के शांगहाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के राजाध्यक्षों का घोषणा पत्र》में यह प्रस्तुत किया गया कि संयुक्त राष्ट्र संघ के जरिए अफगान समस्या का हल किया जाना चाहिए। अफगानिस्तान और ईरान दोनों शांगहाई सहयोग संगठन के पर्यवेक्षक देश हैं। भारत और पाकिस्तान के शांगहाई सहयोग संगठन में प्रवेश करने के बाद शांगहाई सहयोग संगठन अफगान समस्या में और अहम भूमिका अदा कर सकेगा।
अफगानिस्तान पश्चिमी एशिया, दक्षिणी एशिया और मध्य एशिया के केंद्र में स्थित है। जबकि चीन और भारत एशिया में दो सबसे बड़े देश हैं। यदि अफगानिस्तान आतंकी संगठन का शरणार्थी बनता, तो चीन और भारत की सुरक्षा को धमकी दे सकेगा। लेकिन अफगानिस्तान की जटिल परिस्थिति है, जहां अंतर्विरोध और हित दोनों होते हैं। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत और अमेरिका के बीच अनेक मतभेद मौजूद हैं। लेकिन सही माइने में अंतर्रविरोध का हल करना चाहते है, तो विभिन्न पक्षों को समान सुरक्षा की खोज करनी चाहिए और किसी अन्य देश की सुरक्षा से खुद की सुरक्षा की रक्षा नहीं करनी चाहिए। यदि किसी एक पक्ष को समर्थन देकर अन्य एक पक्ष का विरोध किया जाता है, तो सब लोग असुरक्षित रहेंगे।
चीन अफगानिस्तान में अपेक्षाकृत ज्यादा पूंजी लगाने वाला देश है। चीन ने अफगानिस्तान को अनेक सहायता दी और लोगों को ट्रेनिंग दी। भारत ने भी अफगान सरकार को अनेक आर्थिक सहायता दी और अफगान सरकार और सेना को प्रशिक्षण भी दिया। अफगानिस्तान की स्थिरता को साकार करने में चीन और भारत का समान लक्ष्य है। इसके अलावा अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत तीनों देशों के आपसी विश्वास को बढ़ाने में चीन रचनात्मक भूमिका अदा कर सकता है।

आपसी संपर्क और ऊर्जा सहयोग
शांगहाई सहयोग संगठन का सहयोग क्षेत्र प्रारंभिक काल की “तीन शक्तियों” पर प्रहार करने से चतुर्मुखी सहयोग तक फैल चुका है। ऊर्जा और आपसी संपर्क इनमें अहम भाग है। रूस और मध्य एशियाई क्षेत्र में प्रचुर ऊर्जा है। तेल व गैस और कोयला आदि खनिजों का भंडार और उत्पादन मात्रा सब विश्व की अग्रिम पंक्ति में रहा है, जिन्हें 21वीं शताब्दी का विश्व ऊर्जा सप्लाई स्थल माना जाता है। दो सबसे बड़े नवोदित बाजार होने के नाते ऊर्जा पर चीन और भारत की मांग तेज़ी से बढ़ रही है। तेल का आयात 60 प्रतिशत से ज्यादा है। शांगहाई सहयोग संगठन के ढांचे में चीन-भारत ऊर्जा सहयोग करने से न सिर्फ दोनों देशों की ऊर्जा सुरक्षा को उन्नत किया जा सकता है, बल्कि शांगहाई सहयोग संगठन के ऊर्जा निर्यातित देश को विशाल और स्थिर बाजार भी तैयार किया जा सकेगा।
मध्य एशियाई क्षेत्र के तेल संसाधन को जोड़ने के लिए भारत ने तुर्कमानिस्तान-अफगान-पाकिस्तान-भारत (टीएपीआई) प्राकृतिक गैस पाइलाइनप का निर्माण करने की योजना बनायी। नरेंद्र मोदी के सत्ता पर काबिज होने बाद लुक नॉर्थ पॉलिसी पेश की गई, जिसका मकसद भारत और मध्य एशियाई क्षेत्रों के सहयोग को तेज़ करना है। लेकिन टीएपीआई की लम्बाई 1700 किलोमीटर है, जो अफगानिस्तान और पाकिस्तान से गुजरती है। वहां की सुरक्षा स्थिति गंभीर है, जहां का अधिकांश स्थल पहाड़ी क्षेत्र है। वहां का भौगोलिक वातावरण जटिल है और तकनीक व पूंजी की अति ऊंची मांग भी है। चीन के संबंधित कारोबारों के पास तेल व गैस पाइपलाइन की प्रचुर निर्माण क्षमता है, खास तौर पर चीन अल्पाइन क्षेत्र में निर्माण के अनुभव शेयर कर सकता है। साथ ही भारत एशियाई बुनियादी संरचना पूंजी बैंक (एआईआईबी), शांगहाई सहयोग संगठन की बैंक आदि के जरिए वित्तपोषण का समर्थन पा सकेगा, ताकि तेल व गैस पाइपलाइन के यथाशीघ्र ही निर्माण को आगे बढ़ा सके और अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत को तेल व गैस सौंप सके।
तेल व गैस पाइपलाइन का निर्माण करते समय चीन और भारत बुनियादी संरचनाओं के आपसी संपर्क व सहयोग, खास तौर पर सड़क और रेल मार्ग आदि का निर्माण कर सकते हैं। दोनों देश न सिर्फ़ पाइपलाइन से जुड़े देशों के आर्थिक विकास के लिए अच्छी स्थितियां तैयार कर सकते हैं, बल्कि सामाजिक स्थिरता के लिए भी मददगार सिद्ध होगा। साथ ही पाइपलाइन के निर्माण को सुभीता पूर्ण करने और निर्माण के बाद रक्षा के लिए भी लाभदायक होगा। चूंकि चीन मध्य एशिया के विभिन्न देशों से गुजरने वाली प्राकृतिक गैस पाइपलाइन का निर्माण कर चुका है, इसलिए भारत इन पाइपलाइनों का उपयोग करने या समानांतर पाइपलाइन बनाने के लिए चीन के साथ सहयोग कर सकता है, जो पाइपलाइन निर्माण की बड़ी लागत को कम करेगा और निर्माण समय बचाएगा।
अफगानिस्तान की सुरक्षा परिस्थिति और पाकिस्तान द्वारा पाइपलाइन टूटने की चिंता के मद्देनजर चीन और भारत शांगहाई सहयोग संगठन के ढांचे में क्षेत्रीय सुरक्षा व विश्वास प्रणाली को आगे बढ़ा सकते हैं, ताकि पाइपलाइन से जुड़े देशों के हितों को जोड़कर पाइपलाइन का सुभीता पूर्ण इस्तेमाल किया जा सके। स्थिर सप्लाई व मांग के संबंध और आपसी लाभ वाले दाम की स्थापना करने के लिए शांगहाई सहयोग के ढांचे में चीन और भारत “क्रेता” की हैसियत से मध्य एशिया के विभिन्न “विक्रेताओं” से वार्ता भी कर सकते हैं, ताकि क्रेता पक्ष की ऊर्जा सुरक्षा और विक्रेता पक्ष के आर्थिक लाभांश को सुनिश्चित किया जा सके।

वित्तीय और शैक्षिक सहयोग को मजबूत करना
हाल के वर्षों में, सदस्य देशों के बीच लगातार आदान-प्रदान बढ़ने के साथ, सदस्य देशों के बीच सहयोग का ध्यान आर्थिक क्षेत्र में विस्तार करने को लेकर शुरू हो गया है। क्षेत्रीय व्यापारी आवाजाही को आगे बढ़ाने और सदस्य देशों के बीच वित्तपोषण प्रणाली के निर्माण को मजबूत करने के लिए चीन ने 2010 में शांगहाई सहयोग संगठन के वित्तीय सहयोग को गहराने का सुझाव पेश किया, शांगहाई सहयोग संगठन के विकास बैंक की स्थापना पर अध्ययन किया, एक साथ पूंजी लगाकर लाभांश पाने के नये मॉडल पर सोच-विचार किया। साथ ही स्थानीय मुद्रा निपटान सहयोग का विस्तार कर क्षेत्रीय आर्थिक व व्यापारिक आवाजाही को आगे बढ़ाया। शांगहाई सहयोग संगठन के विकास बैंक की स्थापना इस क्षेत्र के पूंजी निवेश और वित्तपोषण के एकीकरण को साकार करने में मदद करेगी और शांगहाई सहयोग संगठन की रक्षा भी करेगी। भारत के पास अनेक श्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिभाएं हैं। चीन और भारत ने एकसाथ मिलकर एआईआईबी और ब्रिक्स देशों के नव विकास बैंक (एनडीबी) की स्थापना की। वित्तीय क्षेत्र में दोनों के सहयोग के अनुभव शांगहाई सहयोग संगठन के विकास बैंक में प्रसारित किये जा सकते हैं।
16 अगस्त, 2007 को आयोजित शांगहाई सहयोग संगठन के बिश्केक शिखर सम्मेलन में विभिन्न सदस्य देशों ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन द्वारा शांगहाई सहयोग संगठन के विश्वविद्यालय के आह्वान पर सहमति दी। वर्तमान में, शांगहाई सहयोग संगठन के विश्वविद्यालय में 5 देश और 82 उच्च शिक्षालय हैं, जिनका प्रारंभिक पैमाना हो चुका है। चीन के पेइचिंग विश्वविद्यालय और छिंगह्वा विश्वविद्यालय समेत 20 उच्च शिक्षालयों ने शांगहाई सहयोग संगठन के विश्वविद्यालय के सहयोग में भाग लिया है। विभिन्न उच्च शिक्षालयों ने क्षेत्रीय शास्त्र, शिक्षा शास्त्र और ऊर्जा शास्त्र आदि क्षेत्रों को केंद्रित कर छात्रों को भेजने और छात्रों के संयुक्त प्रशिक्षण आदि पर सिलसिलेवार सहयोग किये हैं। और तो और शांगहाई सहयोग संगठन के विश्वविद्यालय ने गैर-सरकारी राजदूत का रोल भी निभाया और विभिन्न सदस्य देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए पुल की स्थापना भी की।
चीन और भारत विश्व में दो सबसे बड़े छात्रों को भेजने वाले देश हैं। पारंपरिक तौर पर भारतीय छात्र अपने अध्ययन के लिए ब्रिटेन और अमेरिका आदि विकसित देशों को चुनते हैं। जबकि आजकल ज्यादा से ज्यादा भारतीय छात्र चीन में पढ़ाई करने आने लगे हैं। भारत की उच्च स्तरीय शिक्षा में अपनी श्रेष्ठताएं भी हैं। खास तौर पर आईटी प्रशिक्षण विश्वविख्यात है। भारत अपने देश के जाने-माने स्कूलों को शांगहाई सहयोग संगठन के विश्वविद्यालय में शामिल करवा सकता है और चीन-भारत और चीन-शांगहाई सहयोग संगठन के सदस्यों के बीच छात्रों की आवाजाही को आगे बढ़ा सकता है। भारत दक्षेस के सदस्य देशों के निर्माण और दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय (एसएयू) के प्रचलन के अनुभव को शांगहाई सहयोग संगठन के साथ साझा भी कर सकता है।

बहुपक्षीय सहयोग में बाधा डालने से द्विपक्षीय विरोधाभासों को रोकना
चूंकि इससे पहले दक्षेस को भारत-पाक विवाद का हल करने में धीमी प्रगति मिली थी, भारत-पाक विवाद का हमेशा के लिए कारगर समाधान नहीं किया जा सकता है। भारत और पाकिस्तान के शांगहाई सहयोग संगठन में भाग लेने को स्वीकार करने या न करने पर अनेक लोग चिंतित हैं कि भारत और पाकिस्तान द्विपक्षीय विवाद को शांगहाई सहयोग संगठन में ला सकते हैं और शांगहाई सहयोग संगठन के विकास में बाधा भी डाल सकते हैं। हालांकि अनेक सालों के प्रयासों के बाद शांगहाई सहयोग संगठन ने आखिरकार भारत और पाकिस्तान को साथ शामिल होने को स्वीकार कर लिया, फिर भी भारत और पाकिस्तान की भागीदारी से संभवतः लायी गयी कुप्रभाव की भूमिका पर चिंता अभी भी मिटायी नहीं जा सकती है।
लेखकों का मानना है कि भारत और पाकिस्तान ने शांगहाई सहयोग संगठन में प्रवेश करने की कोशिश की। निसंदेह वे इससे कुछ न कुछ पाना चाहते हैं, जबकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को उनके बीच अंतर्विरोध नहीं दिखाना चाहते हैं। चीन-भारत संबंध से यह भी देखा जाए कि हालांकि दोनों के बीच कुछ अंतर्विरोध मौजूद हैं, फिर भी पिछले 10 से ज्यादा सालों में द्विपक्षीय व्यापार तेज गति से आगे विकसित होता रहा है। उच्च स्तरीय आवाजाही व्यस्त रही है। अंतर्राष्ट्रीय मामलों में चीन और भारत घनिष्ट सहयोग बरकरार रखते हैं। खास तौर पर वैश्विक मौसम समस्या पर दोनों ने समान और विभिन्न कर्त्तव्यों के सिद्धांत पर बरकरार रखा है और पश्चिमी विकसित देशों से सौदा भी किया।
वास्तविक रूप से देखा जाए शांगहाई सहयोग संगठन की व्यवस्था में चीन और भारत द्वारा क्षेत्रीय सुरक्षा व स्थिरता, आपसी संपर्क और ऊर्जा, वित्त एवं शिक्षा आदि क्षेत्रों में सहयोग करना दोनों देशों और शांगहाई सहयोग संगठन के सभी सदस्य देशों के हितों से मेल खाता है। विश्वास है कि दोनों देश द्विपक्षीय अंतर्विरोध को दरकिनार करते हुए एक साथ शांगहाई सहयोग संगठन के विकास में भाग लेकर इसे आगे विकसित कर सकेंगे।

लेखक लोंग शिंगछ्वन है, जो शीह्वा नॉर्मल विश्वविद्यालय के भारतीय अनुसंधान केंद्र के प्रधान हैं। जबकि शंग यांगयांग शीह्वा नॉर्मल विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय राजनीति विभाग में एमए कर रहे हैं।